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केंद्र सरकार के शपथ पत्र से उलट चलता है महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, कुलपति के जारी आदेश “बिना टीकाकरण प्रमाणपत्र के नही भर सकते परीक्षा फार्म”, सफ़ेद हाथी है विश्वविद्यालय की वेब साईट पर उपलब्ध फोन नम्बर

तारिक आज़मी

वाराणसी स्थित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ शायद केंद्र सरकार से दो गज आगे चलता है। विश्वविद्यालय के वेब साईट पर हमको कुलसचिव का एक निर्देश पत्र प्राप्त हुआ। जिसमे साफ़ साफ़ उन्होंने निर्देशित किया है कि बिना कोविड टीकाकरण के किसी भी छात्र-छात्रा का परीक्षा फार्म नही भरा जायेगा। जबकि वही केद्र सरकार ने पिछले सप्ताह इस सम्बन्ध में मुल्क की सबसे बड़ी अदालत में शपथ पत्र दाखिल करते हुवे कहा है कि किसी व्यक्ति को उसकी सहमती के बिना टीकाकरण करने के लिए मजबूर नही किया जा सकता है। केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि उसने ऐसी कोई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी नहीं किया है जिसमें किसी भी उद्देश्य के लिए टीकाकरण प्रमाणपत्र साथ रखना अनिवार्य हो।

कुलपति के इस निर्देश से विश्वविद्यालय के छात्र छात्राओं में लगभग अफरा तफरी का माहोल कायम है। निर्देश प्राप्त होने के बाद सभी सम्बद्ध महाविद्यालयों में टीकाकरण प्रमाण पत्र की मांग करना शुरू कर दिया है। इस मांग के बाद जिन छात्र छात्राओं ने अभी तक टीके नही लगवाए थे अथवा जिसकी पहली डोज़ ही लगी थी वह सभी टीकाकरण केद्र पर खड़े दिखाई दे रहे है। बेशक कोविड टीकाकरण देश के सभी नागरिको को करवाना चाहिए। हम इस बात का समर्थन करते है। मगर इस तरीके से विश्वविद्यालय द्वारा फरमान जारी करके टीकाकरण के लिए मजबूर करना शायद सरकार की मंशा से दो कदम आगे का फैसला है।

गौरतलब हो कि पिछले सप्ताह ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी टीकाकरण गाइडलाइंस के मुताबिक किसी व्यक्ति को उसकी सहमति के बिना टीकाकरण के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। दिव्यांग व्यक्तियों को टीकाकरण प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने से छूट के मुद्दे पर केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि उसने ऐसी कोई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी नहीं किया है जिसमें किसी भी उद्देश्य के लिए टीकाकरण प्रमाणपत्र साथ रखना अनिवार्य हो।

इस हलफनामे में केंद्र ने यह भी कहा था कि जारी महामारी के मद्देनजर व्यापक जनहित में कोरोना टीकाकरण किया जा रहा है। विभिन्न प्रिंट और इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्मो के जरिये यह सलाह दी गई है और विज्ञापन दिए गए हैं कि सभी नागरिकों को कोरोना का टीकाकरण कराना चाहिए और इसके लिए व्यवस्था व प्रक्रिया निर्धारित की गई है। मगर कोई ऐसी एसओपी नही जारी किया गया है कि टीकाकरण का प्रमाण पत्र होना आवश्यक है।

अब ऐसी स्थिति में विश्वविद्यालय के कुलसचिव का निर्देश शायद कुछ अधिक ही सख्त है। 14 जनवरी को जारी इस निर्देश का हम विरोध तो नही करते है मगर तरीके सवाल ज़रूर पैदा कर रहे है कि जब ऐसा निर्देश जारी करना था कि परीक्षा फार्म भरने की निर्धारित तारिख के एलान के बाद क्यों जारी किया गया। टीकाकरण के निर्देश इसके पहले भी जारी किये जा सकते थे। फिर आखिर ऐसी हड़बड़ी में निर्देश जारी करना कहा से उचित है।

नहीं काम करते है वेब साईट पर उपलब्ध कोई भी फोन नम्बर

हमने इस सम्बन्ध में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के वेब साईट पर उपलब्ध फोन नम्बरों पर संपर्क करने का प्रयास किया। मगर सभी नम्बर केवल सफ़ेद हाथी ही साबित हुवे। किसी भी नम्बर पर काल संभव नही बता रही थी। नंबर सभी आउट आफ सर्विस बता रहे है। सबसे अचम्भे की बात तो ये है कि विश्वविद्यालय के साईट पर हेल्प लाइन नम्बर दस डिजिट का दिया हुआ है। हमने जब इस नम्बर पर सम्पर्क किया तो वह नम्बर भी स्वीट आफ थे। अब समझ से परे है कि क्या केवल वेब साईट पर फोन नंबर जगह भरने के लिए ही प्रयोग किया गया है ?

एक प्रयास के बाद परीक्षा नियंत्रक का हमको व्यक्तिगत मोबाइल नंबर प्राप्त हुआ। लगभग 20 बार फोन करने के उपरांत भी उनका नंबर इस मुद्दे पर बयान देने के लिए नही उठा। आखिर जब फोन उठाना ही नही है अथवा हेल्प लाइन नंबर को बंद रखना है तो फिर छात्र अथवा अभिभावक के लिए ऐसे नम्बर वेब साईट पर उपलब्ध करवाने का क्या मतलब होता है शायद कुलसचिव ही समझ सकते है। या फिर वेब साईट पर कालम भरने की औपचारिकता पूरी करने के लिए ऐसा किया गया है।

गलत फरमान है कुलसचिव का : छात्र नेता अमित यादव

इस मामले में छात्र नेता अमित यादव ने हमसे अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुवे कहा कि जब केंद्र सरकार ने खुद शपथ पत्र देकर सुप्रीम कोर्ट में देकर कहा है कि किसी भी मामले में कोविड टीकाकरण प्रमाण पत्र देना आवश्यक नही है अथवा कोई बाध्यता नही है। तो फिर आखिर कुल सचिव ने परीक्षा फार्म हेतु इसकी बाध्यता क्यों रखा हुआ है ये समझ से परे है। वेब साईट पर उपलब्ध कोई भी फोन नम्बर कभी काम ही नही करता है और छात्र-छात्राओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मगर विश्वविधालय प्रशासन इसको समझने को तैयार ही नही है। केंद्र सरकार के नियमो का पालन विश्वविद्यालय को भी करना चाहिए, अपना अलग से कोई फरमान जारी करने के पूर्व ऐसे नियमो का भी ध्यान देना चाहिए।

क्या कहते है ज़िम्मेदार

इस सम्बन्ध में हमने पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले डॉ0 हरीश चन्द्र से फोन पर बात किया तो उन्होंने किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देने से मना करते हुवे रजिस्ट्रार डॉ सुनीता पाण्डेय से संपर्क करने के लिए कहा। हमने डॉ सुनीता पाण्डेय से उनकी प्रतिक्रिया लेने के लिए उन्हें कई काल किया। मैडम ने हमारा फोन नही उठाया और इस दरमियान वह अन्य काल उठा रही थी। इसकी पुष्टि हमको इस बात से होती है कि रजिस्ट्रार मैडम के फोन पर हमारी वोटिंग जा रही थी। मगर हमारी जाती हुई फोन की घंटी पर उन्होंने फोन नही उठाया। हमारे कई प्रयास के बाद भी रजिस्ट्रार से हमारी बात नही हो पाई है।

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