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चुनावी रण: वाराणसी शहर दक्षिणी के टिकटों पर टिकी सभी की नज़र, जाने कैसा होगा इस बार वाराणसी दक्षिणी के सियासत का समीकरण

ए0 जावेद

वाराणसी। आचार संहिता लगते ही चुनावी सरगर्मियां तेज़ हो चुकी है। सही की जुबां पर टिकट को लेकर सवाल है। सभी प्रत्याशी खुद को टिकट मिलने का दावा करते दिखाई दे रहे है। सपा, भाजपा, कांग्रेस और बसपा ने अपना पत्ता नही खोला है। सही के कई दावेदार खुद का दम्भ भर रहे है। वही आम आदमी पार्टी के तरफ से दावा अजीत सिंह के पास ही है। आइये समझते है इस बार किस प्रकार से चुनावी रण में समीकरण बैठेगा। हम शुरुआत आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी अजीत सिंह से करते है।

अजीत सिंह का नाम वाराणसी की सियासत में बड़ा है। अजीत सिंह ने कई महीनो पहले से ही तैयारी करना शुरू कर दिया है। शहर का हर एक इलाका उनके पोस्टरों से भरा पडा है। ऐसा नही कि अजीत सिंह का पोस्टर राजनैतिक पोस्टर जैसा हो। मगर बात ये है कि अजीत सिंह के पोस्टर पर लिखे “अशआर” लोगो का बरबस ही ध्यान आकर्षित कर रहे है। ख़ास तौर पर “मुन्तजिर चाक पर है मेरी अधूरी मिटटी, तुम जरा हाथ लगाओ तो मुकम्मल हो जाऊ” ने लोगो का ध्यान काफी खीचा हुआ है। इन पोस्टरों के पहले अजीत सिंह का पोस्टर “हम लेकर रहेगे आज़ादी” किसान आन्दोलन के समर्थन में लगा था। इस पोस्टर ने भी अजीत सिंह को अचानक चर्चा में ला दिया।

बहरहाल, अजीत सिंह की लड़ाई को केवल पोस्टर वार तक समझना शायद राजनैतिक सूझ बुझ में कमतर होगा। अजीत सिंह की सियासी पकड़ को अगर देखे तो अजीत सिंह के साथ पक्के मुहाल का काफी बड़ा युवा वर्ग खड़ा हुआ है। अजीत सिंह वर्त्तमान में पार्षद है। पार्षद पद का चुनाव भी उन्होंने एकतरफा जीता था। इसके पूर्व अजीत सिंह बसपा के बड़े नेताओं में शहर में गिने जाते थे। मगर हकीकत माने तो बसपा में जो कद अजीत सिंह को चाहिये था वह कद अजीत सिंह को मिला नही था। अजीत सिंह के आम आदमी पार्टी को ज्वाइन करने के बाद से अजीत सिंह के टिकट की लगभग घोषणा हो चुकी है। अजीत सिंह ने अपना चुनाव प्रचार शुरू भी कर दिया है। हकीकत देखे तो अजीत सिंह शायद अन्य प्रत्याशियों से दो कदम आगे खड़े दिखाई देंगे।

भाजपा के टिकट की बड़ी चल रही है जंग

दूसरी तरफ सत्तारूढ़ दल भाजपा के टिकट की बड़ी जंग जारी है। एक तरफ सीटिंग विधायक और मंत्री नीलकंठ तिवारी है तो दुसरे तरफ टिकट की चर्चाओं में अम्बरीश सिंह भोला और दयालु गुरु का नाम भी चर्चा में है। बात ये है कि तीन प्रत्याशियों के अलावा एक साइलेंट प्रत्याशी पर भी भाजपा की नज़र है। टिकट अप्लाई करने वालो में एक और नाम डाक्टर अभिनव मिश्रा का भी सामने आ रहा है। अब अगर इस समीकरण पर नज़र डाले तो काटे की टक्कर टिकट के लिए भी है। टिकट मिल जाने पर ज़मीनी स्तर पर भी मतदाताओ को रिझाने के लिए बड़ी मशक्कत करना पड़ सकता है। क्योकि इस बार चुनावों में जिस प्रकार से प्रत्याशी सामने दिखाई दे रहे है वह इस तरफ इशारा करता है कि इस बार का चुनाव एकतरफा तो बिलकुल नही होगा।

सपा के नेताओं में भी मची है टिकट की जद्दोजेहद

समाजवादी पार्टी के टिकट के लिए भी ज़ोरदार लड़ाई है। एक तरफ राजू यादव टिकट मिलने का दम्भ भरते दिखाई दे रहे है तो दूसरी तरफ उत्तरी के पूर्व विधायक अब्दुल समद के समर्थक भी उनका टिकट मिलने का दावा करते हुवे दिखाई दे रहे है। वही अशफाक अहमद डब्लू और किशमिश गुरु का भी दावा टिकट मिलने का जारी है। इन सबके बीच बड़े दावेदारी में किशन दीक्षित का नाम सामने आ रहा है। अब अगर अल्पसंख्यक प्रत्याशी को टिकट मिलने पर सीट की बात करे तो मुस्लिम मतो के ध्रुवीकरण में दावा काफी कमज़ोर रहेगा। अल्पसंख्यक प्रत्याशी के चुनावी समर में आने के बाद भले ही मुस्लिम मतदाता का रुझान अल्पसंख्यक प्रत्याशी के तरफ चला जाए मगर बहुसंख्यक वर्ग इस निर्णय से टिकट का विरोध भी कर सकता है।

अब अगर बात करे टिकट की दावेदारी में मजबूती की तो अगर अल्पसंख्यक वर्ग को पार्टी टिकट देती है तो नाम अशफाक अहमद डब्लू और अब्दुल समद तक सीमित रहेगा। अशफाक अहमद डब्लू इसके पूर्व भी चुनाव लड़ चुके है मगर सफलता अभी तक हाथ नही लगी है। वही दूसरी तरफ देखे तो अब्दुल समद उत्तरी विधानसभा से विधायक रह चुके है। मगर इसी सीट पर वह हारे भी है। 2017 चुनाव में अब्दुल समद अंसारी भाजपा प्रत्याशी से 45 हज़ार से अधिक मतो से हार गये थे। रविन्द्र जायसवाल ने ये चुनाव लगभग एकतरफा जीता था। इस बार अब्दुल समद ने दक्षिणी से टिकट की मांग किया है।

अब ज़मीनी स्तर पर देखा जाए तो सपा के टिकट को लेकर असमंजस की स्थिति टीएमसी और आम आदमी पार्टी से संभावित गठबंधन से भी बनी हुई है। यदि टीएमसी से गठबंधन होता है तो ये सीट टीएमसी अपने खाते में लेने की कोशिश करेगी। अगर ऐसा होता है तो वाराणसी के एक बड़े राजनितिक घराने को टिकट मिलने की उम्मीद है। ऐसी स्थिति में टक्कर काटे की हो सकती है। क्योकि सभी पार्टियों की नज़र इस सीट पर अल्पसंख्यक के साथ साथ ब्राहमण मतो पर भी है। दूसरी तरफ ब्राहमण मतो की भाजपा दे होती नाराजगी को भी अन्य दल भुनाने की कोशिश कर सकते है।

मजबूत है किशन दीक्षित की टिकट दावेदारी  

वही भाजपा को टक्कर देने के लिए सपा की नज़र किशन दीक्षित पर है। किशन दीक्षित का परिवार वाराणसी के मानिंद ब्राहमण घरानों में से एक है। मृत्युंजय महादेव मदिर से सम्बंधित इस परिवार को ब्राहमणों का समर्थन मिलने की भी बड़ी सम्भावना होने के कारण किशन का दावा काफी मजबूत होता दिखाई दे रहा है। दूसरी तरफ अल्पसंख्यक मतो का रुझान सपा के तरफ रहने की संभावनाओ के बीच टिकट की दावेदारी किशन की भी मजबूत दिखाई दे रही है।

कांग्रेस के टिकट पर रहेगी बड़ी नज़र

कांग्रेस के टिकट की बात करे तो इस समय टिकट मांगने वालो की लिस्ट में अनिल श्रीवास्तव “अन्नू”, मह्लेरिया, विपिन मेहता, दुर्गा प्रसाद गुप्ता, गणेश शंकर पाण्डेय और सीता राम केशरी के साथ स्वलेह अंसारी का नाम प्रमुख है। वही चर्चाओं को आधार माने तो डॉ राजेश मिश्रा भी इसी सीट पर चुनाव लड़ना चाहते है। अब अगर समीकरणों को देखे तो दो प्रत्याशियों पर अन्य दलों की भी नज़र रहेगी। वह नाम है अनिल श्रीवास्तव अन्नू और सीता राम केशरी। वही राजेश मिश्रा पिछले चुनाव में यहाँ से मुहतोड़ हार का सामना कर चुके है।

अगर दो बड़े प्रत्याशियों का नाम देखे तो पहला नाम पुराने कांग्रेसी अनिल श्रीवास्तव अन्नू है। अन्नू श्रीवास्तव का बनिया समाज पर बढ़िया पकड़ के साथ अल्पसंख्यक वर्ग का भी समर्थन मिलने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता है। वही वर्ष 2000 से दक्षिणी से पार्षद रहे सीता राम केशरी व्यापारी नेता भी है। कारोबारियों का बड़ा समर्थन मिल जाने की भी उम्मीद है। पुराने कांग्रेसी सीता राम केशरी की टिकट दावेदारी मजबूर भी है। ऐसे में देखे तो दो प्रत्याशियों के अलावा डॉ राजेश मिश्रा का नाम आने के बाद मामले में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।

बसपा के प्रत्याशी का चेहरा हो रहा साफ़

वर्ष 2017 के चुनाव में बसपा ने यहाँ से राकेश त्रिपाठी को टिकट दिया था। इस सीट पर राकेश त्रिपाठी चुनाव तो बढ़िया लड़े मगर हारे भी बुरी तरह से। राकेश त्रिपाठी के चुनाव हारने के बाद उन्होंने भाजपा का दामन पकड़ लिया है। अब बसपा यहाँ से व्यापारी वर्ग के प्रत्याशी को उतारने के मूड में दिखाई दे रही है। काशीपुर के पास के निवासी एक प्रत्याशी का टिकट लगभग फाइनल होने की भी बात है। मगर यहाँ एक बात और भी साफ़ करने की ज़रूरत है कि बसपा चुनाव में कभी भी अपना प्रत्याशी बदल सकती है। ऐसा इतिहास गवाह भी है।

अगर ऐसा हुआ तो कैसा होगा

अब इन सबके साथ एक ख्याली राम के पुलाव जैसा ख्वाब देखने में कोई हर्ज नही है। समीकरण को कुछ बैठा कर थोडा मौज तो लिया जा सकता है। अब समीकरण कुछ इस प्रकार से रहे कि कांग्रेस सीता राम केशरी को टिकट देती है। अजीत सिंह आम आदमी पार्टी से चुनाव मैदान में रहते है और सपा किशन दीक्षित को टिकट देकर मैदान में उतार देती है। इस समीकरण को केवल विपक्षी पार्टी के नाम पर ही देखते है। फिर अब जोड़ घटाव पर नज़र डालते है तो बसपा यहाँ इस सीट पर कोई लड़ाई में है नही।

सपा एक तरफ अपने प्रत्याशी के साथ भाजपा के वोट बैंक में सेंध मारी कर जायेगी। अगर 20 फीसद भी ब्राह्मण मत सपा ने खीचा तो भाजपा इन मतो की भरपाई फिर यादव मतो से करना चाहेगी। वही कांग्रेस कारोबारी समुदाय के मतो को अपने तरफ करेगी और अजीत सिंह भाजपा के वोट बैंक में बढ़िया डेंट मारते दिखाई देंगे। ये ऐसी स्थिति होगी कि काटे की टक्कर में एक एक वोट के लिए सभी प्रत्याशी जूझते हुवे दिखाई देंगे। वैसे ये हमारा ख्यालीराम वाला पुलाव ही है। मगर अगर ऐसा हुई और समीकरण चुनावी कुछ ऐसे ही रहे तो मामला ज़बरदस्त कांटे की टक्कर का होता दिखाई देगा, फिर भाजपा भले किसी भी प्रत्याशी को इस सीट पर टिकट दे दे। वही दूसरी तरफ सपा के टिकट पर हर राजनैतिक जानकार की नज़र टिकी हुई है। क्योकि अगर सपा ने यहाँ से किसी अल्पसंख्यक को टिकट दिया तो एक तरीके से चुनाव एक वाकओवर हो जायेगा और भाजपा पिछले बार की तरह एकतरफा चुनाव जीत जाएगी।

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