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अबू सालेम रिहाई प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज किया सीबीआई की दलील कि “अदालत पुर्तगाल को तत्कालीन उप-प्रधानमन्त्री एल0के अडवानी द्वारा दिले आश्वासन से बाध्य नही है”, अदालत ने केंद्र से माँगा जवाब

आदिल अहमद

नई दिल्ली। अबू सालेम की रिहाई के प्रकरण में सीबीआई द्वारा दाखिल हलफनामे में सीबीआई ने शीर्ष अदालत को बताया है कि एक भारतीय अदालत 2002 में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री द्वारा पुर्तगाल की अदालतों को दिए गए आश्वासन से बाध्य नहीं है कि गैंगस्टर अबू सलेम को उसके प्रत्यर्पण के बाद 25 साल से अधिक की कैद नहीं होगी।

जिसके बाद अदालत ने सीबीआई की दलील को ख़ारिज करते हुवे जोर देकर कहा कि पुर्तगाल के अधिकारियों को दिए गए आश्वासन का पालन नहीं करने के व्यापक प्रभाव हो सकते हैं और यह अन्य देशों से भगोड़ों के प्रत्यर्पण की मांग करते समय समस्या पैदा कर सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह मामले में सीबीआई के जवाब से खुश नहीं है।

अदालत में सलेम का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने पीठ के समक्ष तर्क दिया कि पुर्तगाल में पारस्परिकता के सिद्धांत के अनुसार अदालतें 25 साल से अधिक की सजा नहीं दे सकती हैं। उन्होंने कहा कि पारस्परिकता के सिद्धांत के आधार पर, भारत सरकार ने पुर्तगाल की अदालतों को एक गंभीर संप्रभु आश्वासन दिया था कि अगर सलेम को भारत वापस प्रत्यर्पित करने की अनुमति दी जाती है, तो उसे 25 साल से अधिक की सजा नहीं दी जाएगी।

जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आज मंगलवार को केंद्रीय गृह सचिव से एक हलफनामा दाखिल करने को कहा है, जिसमें कोर्ट ने पूछा है कि क्या तत्कालीन उप प्रधानमंत्री एल0 के0 आडवाणी ने पुर्तगाल के अधिकारियों से गैंगस्टर अबू सलेम के प्रत्यर्पण की मांग करते हुए उसको 25 साल से अधिक समय तक कैद में नहीं रखने का आश्वासन दिया था या नहीं। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम।एम। सुंदरेश ने कहा कि केंद्र को इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करना होगा।

शीर्ष अदालत ने केंद्र से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। मामले की अगली तारिख 12 अप्रैल पड़ी है। बताते चले कि पुर्तगाल में 18 सितंबर 2002 को अबू सलेम अब्दुल कय्यूम अंसारी और मोनिका बेदी को गिरफ्तार किया गया था। दोनों को वहां से प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया और 1993 के मुंबई विस्फोटों में उसकी भूमिका के लिए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। 11 नवंबर 2005 को जैसे ही सलेम को भारत लाया गया, उसे बॉम्बे बम विस्फोट मामले में सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया और बाद में आतंकवाद विरोधी दस्ते, मुंबई द्वारा हिरासत में ले लिया। प्रदीप जैन हत्याकांड टाडा कोर्ट ने सलेम को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

जिसके बाद सालेम ने सुप्रीम कोर्ट की शरण लिया है और पुर्तगाल सरकार से भारत के तत्कालीन उप प्रधानमन्त्री लाल कृष्ण अडवानी के वायदों का हवाला दिया है। सालेम के वकील ऋषि मल्होत्रा ने यह भी कहा कि सलेम को 2002 में पुर्तगाल में हिरासत में लिया गया था और उसकी सजा पर उस तारीख से विचार किया जाना चाहिए न कि 2005 से जब उसे भारतीय अधिकारियों को सौंपा किया था। मल्होत्रा की दलील पर पीठ ने केंद्र सरकार, महाराष्ट्र सरकार और सीबीआई को सलीम की ओर से उठाए गए इन मसलों पर चार हफ्ते के भीतर हलफनामे के जरिए जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया था। यहाँ गौरतलब है कि सलेम के खिलाफ दर्ज दो मुकदमों में सीबीआई अभियोजन एजेंसी है जबकि तीन मामलों में महाराष्ट्र सरकार।

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