वल्लभाचार्य पाण्डेय
उत्तर प्रदेश में छुट्टा पशुओं की समस्या एक मानव जनित सामाजिक समस्या है जिसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव कृषि पर पड़ा है for। गाँव गाँव में सैकड़ों की संख्या में छुट्टा पशु खुले आम घूम रहे हैं और फसल को बर्बाद कर रहे हैं। किसानों की व्यथा अंततः विभिन्न मंचों के माध्यम से राजनैतिक दलों, प्रशासन एवं सरकार तक भी पहुंच चुकी है। विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा प्रमुखता से उठता रहा। स्वयं प्रधानमन्त्री तक को इस समस्या को स्वीकारते हुए शीघ्र समाधान का आश्वासन देना पड़ा। विभिन्न दलों के घोषणा पत्र और चुनावी भाषणों के दौरान छुट्टा गोवंश की समस्या की चर्चा हुयी। अगले सप्ताह तक प्रदेश में नयी सरकार का गठन हो जाना है, आगामी सरकार के समक्ष भी इस समस्या के समाधान हेतु कारगर उपाय करने का दबाव होगा। आइये, जमीनी सच्चाई को स्वीकारते हुए समस्या और समाधान पर कुछ समझने की चेष्टा करें।
कुछ गाँवो में यदि संचालन प्रारम्भ भी हुआ तो सरकारी मशीनरी की कागजी खानापूर्ति के चलते कई महीने तक संचालक को पैसे का भुगतान ही नही हुआ ऐसे में गौशालाएं दुर्व्यवस्था की शिकार हुईं और प्रायः बंद भी हो गयीं। दरअसल इस योजना के कुशल संचालन के लिए जिस इच्छाशक्ति की आवश्यकता थी उसका सरकार या प्रशासन में सर्वथा अभाव रहा। केवल घोषणाएं की जाती रही और जमीनी सच्चाई तथा वास्तविकता जानने की कोई कोशिश नही की गयी । यही कारण रहा कि स्थिति बद से बदतर होती चली गयी और यह खेती किसानी के लिए अभिशाप हो गया। स्थिति यहाँ तक आ गयी कि आज गाँव की सड़क हो, बाजार हो या कि फोरलेन राजमार्ग हर जगह समूह में छुट्टा गोवंश दिखाई दे रहे हैं , आये दिन इनके कारण सड़क दुर्घटनाएं हो रही है जहाँ एक तरफ लोग चोटिल हो रहे हैं और मौत तक हो जा रही है। वहीं दूसरी तरफ गोवंश घायल होकर तड़प रहे हैं इनकी तीमारदारी करने कोई नही पहुंच रहा है, कुछ वर्ष पहले तक गोवंश को लेकर जो श्रद्धा भाव था जिसके कारण कहीं भी बीमार या घायलावस्था में गोवंश देखने पर आस पास के लोग सेवा को स्वतः तत्पर हो जाया करते थे वह सेवा भाव अब कम होते होते झल्लाहट की स्थिति में आ गया है। पशु चिकित्सालयों को सूचित करने पर वहां से कोई सकारात्मक सहयोग प्रायः नहीं मिल पाता है। गोवंश की यह दयनीय स्थिति केवल इसलिए है कि इनके लिए कोई स्थायी गोवंश आश्रय स्थल की स्थापना नहीं हो सकी।
किसान से गोबर या कम्पोस्ट खरीदने की घोषणा भी केवल जबानी जमा खर्च के अलावा कुछ नही रही। व्यावहारिक बात करें तो कृषि के तरीके में बदलाव के कारण पशुओं के चारे के उत्पादन में कमी हो गयी है। हार्वेस्टर के प्रयोग से भूंसा या पुआल का काफी अंश बर्बाद हो जाता है इस कारण पशु चारे की औसत कीमत (पुवाल या भूंसा) 6-8 रुपये प्रति किलोग्राम तक हो गयी है। एक वयस्क गोवंश को औसतन 8-10 किलोग्राम पशु चारे की आवश्यकता होती है इसके अलावा पानी, खली चुनी, चोकर, दाना, दवा आदि का भी खर्च है। कोरोना संकट, नोटबंदी, आर्थिक मंदी, महंगाई आदि के कारण एक आम पशुपालक के लिए निष्प्रयोज्य पशु को रख पाना कठिन हो रहा है। छुट्टा पशुओं की समस्या के चलते हरे चारे की खेती और उत्पादन नगण्य हो गया है इसका भी असर पशु पालन पर पड़ रहा है।
ट्रैक्टर और अन्य कृषि यंत्रों के बढ़ते चलन के कारण खेती के कार्यों में बछड़ों, सांड और बैल का प्रयोग अब काफी कम हो गया है, अतः ऐसे पशुओं को सार्वजनिक छोड़ देना आम बात हो गयी है।वैसे भी देसी नस्ल के अलावा विदेशी नस्ल के बछड़े कृषि कार्यों के लिए प्रायः अनुपयोगी ही होते हैं। इसी प्रकार दूध न देने वाले पशुओं को भी मंहगाई के कारण प्रायः छुट्टा छोड़ देने का चलन बढ़ा है। जबकि नैतिक और सामाजिक दृष्टि से देखें तो यह बहुत ही गैरजिम्मेदारी भरा कृत्य है कि आप पशु पालन करते हैं और पूरा लाभ प्राप्त करने के बाद निष्प्रयोज्य जानवरों को सार्वजनिक स्थानों पर खुल्ला अपने हाल पर जीने मरने के लिए छोड़ देते हैं। गांवों में चारागाह या अभयारण्य जैसी कोई व्यवस्था शेष नही बची है ऐसे में इन छुट्टा जानवरों के पास जीवन बचाने के लिए कृषि फसल को चरने के अलावा कोई विकल्प ही नही है।
तीन वर्ष पहले उत्तर प्रदेश की सरकार ने सड़क पर घूमते गोवंश के लिए गौशाला के निर्माण और उनके रखरखाव के लिए संसाधन जुटाने हेतु 0.5 प्रतिशत ‘गो-कल्याण सेस’ लागू किया है । यह कर शराब, टोल प्लाजा और सरकारी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों आदि से वसूल जा रहा है, सोच यह है कि इस कर के द्वारा जो पैसा जमा होगा उसकी मदद से प्रदेशभर में छुट्टा गोवंश के लिए शेल्टर होम बनाया जाएगा लेकिन धरातल पर ऐसा कुछ होते नही दिखा।
छुट्टा गोवंश की समस्या का स्थायी समाधान सरकार और समाज को ही निकालना होगा कुछ नये प्रयोग करने होंगे लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी होगा व्यावहारिक नीति बनाना और उसे दृढ इच्छाशक्ति के साथ क्रियान्वित करना। कुछ सुझाव निम्न हैं
यदि उपरोक्त सुझावों की व्यवहारिकता पर विचार करते हुए नीतियां बने और उन पर ईमानदारी से अमल किया जा सके तो छुट्टा गोवंश की समस्या को एक संसाधन के रूप में स्थापित किया जा सकेगा जिससे गोवंश के साथ ही रोजगार, कृषि और ग्रामीण आर्थिकी का भी कल्याण संभव होगा। उम्मीद है आगामी सरकार इस मुद्दे को गम्भीरता से लेगी।
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