तारिक़ आज़मी
चुनाव समाप्त हो चुके है। कल आपको इस समय तक रिज़ल्ट सामने होंगे कि किसके सर पर सजा है ताज और कौन रह गया है बेताज। किसको आवाम ने बनाया है मसनदनशी तो किसको दिया है फिर मिलेंगे का आश्वासन। 7 मार्च को चुनावों के अंतिम मतदान के महज़ दो घंटो के बाद ही आपके पसंदीदा चैनलों ने भीड़ लगा लिया। सबके सब एक होड़ मचा रहे थे कि कौन सबसे ज्यादा सत्तारूढ़ दल को सीट जितवा रहा है। इस एग्जिट पोल को देख कर कुछ बेवजह की खुशियों में डूब पड़े तो कुछ बेवह के गम में सराबोर हो चुके है। मगर शायद आपको पता नही होगा कि पिछले 20 सालो में अब तक 37 मर्तबा एग्जिट पोल मुह के बल गिर चुके है।
पहले हम आपको इसके मुताल्लिक बताते चलते है। सर्वे में देशबंधु के एग्जिट पोल में कहा गया है कि समाजवादी पार्टी अपने गठबंधन दलों के साथ सरकार बनाएगी। उसके अनुसार सपा को साफ़ साफ़ बहुमत मिल रहा है। वही सपा का भी दावा कुछ ऐसा ही है। इसके अलावा एक अन्य सर्वे ने भी सपा की सरकार बनने का दावा किया है। 4-पीएम और द पॉलिटिक्स डॉट इन का अनुमान है कि अखिलेश यादव सरकार बनाने में सफल होंगे। इस सर्वे के अनुमान है कि सपा को 238 सीटें मिलेंगी जबकि भाजपा 157 सीटें पर ही सिमट कर रह जाएगी। जहा देशबंधु का सर्वे समाजवादी पार्टी को 228 से 244 सीटें मिलने का दावा कर रहा है और भाजपा को अधिकतम 150 सीटें दे रहा है। इन सभी सर्वे के बीच समाजवादी पार्टी के मुखिया का दावा है कि सपा गठबंधन को 300 सीटें मिलेंगी।
नतीजे कल इस वक्त तक आपके सामने होंगे। आपको पता होगा कि कौन जीता और कौन हारा। किसको आवाम ने मसनदनशी बना रही है। तो किसको अगले बार का वायदा कर रही है। मगर टीआरपी की जंग में महज 1 फीसद से भी कम वोटरों के नज़रिये को देख कर कैसे अंदाज़ लगाया जा सकता है कि पूरा विधानसभा किस तरफ जा रहा है। अब आपको एक छोटा सा उदहारण देता चलता हु। एक खबरिया चैनल का सर्वे मैं देख रहा था। वह सीट के अनुसार भी बाते कर रहे थे। उन्होंने एकतरफा जीत वाराणसी दक्षिणी और कैंट में भाजपा की कर दिया। जबकि ज़मीनी हकीकत एकदम अलग है। दक्षिणी में जहा किशन दीक्षित ने ज़बरदस्त मुकाबला किया है और अजीत सिंह ने भी बढ़िया चुनावी समीकरण बिगाड़ा है। तो वही कैंट में कांग्रेस की ने ज़बरदस्त टक्कर जहा भाजपा को दिया है, वही सपा की पूजा यादव ने भी सियासी समीकरण जमकर बिगाड़े है।
फिर ऐसी स्थिति में कोई कैसे किसी एक प्रत्याशी की जीत को सुनिश्चित मान सकता है ये समझ से परे है। मगर टीआरपी की जंग ज़बरदस्त है। किसी को भी जीत दिलवा सकती है। अब किसकी जवाबदेही बनेगी इसके ऊपर। शायद किसी की भी नही बनती है। वरना पिछले दो दशक में 37 मर्तबा मुह के बल गिरने वाला एग्जिट पोल आपसे दावा कर सकता है कि वह ही एक्जैकट पोल है। आप मान भी लेंगे क्योकि चैनल पसंदीदा है। अब कौन कितना सच इसमें परोस के आपके सामने लाया है कौन कितना झूठ। इसके आकड़ो को आप समेटते हुवे रात को आराम से सोये सुबह आपको रुझान मिलेंगे और शाम तक आपको निष्कर्ष मिल जाएगा। कल फिर रात को मिलते है। फर्क थोडा सा रहेगा सिर्फ कि कही ख़ुशी रहेगी तो कही गम।
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