तारिक़ आज़मी संग शाहीन बनारसी
डेस्क: समाजवादी पार्टी भले ही विधानसभा में बहुमत के आकडे से काफी दूर रही है, मगर एक मजबूत विपक्ष इस बार विधानसभा में रहेगा। क्योकि 2017 के आकड़ो को देखे तो विधानसभा में विपक्ष 100 के भी करीब नही था। मगर इस बार ऐसा नही है। विपक्ष पिछली बार से मजबूत इस बार विधानसभा में है। यहाँ आपको ध्यान दिलाते चले कि लोकतंत्र हेतु मजबूत विपक्ष की आवश्यकता सदा रही है।
सपा की इस स्थिति में हारने वाली सीट सबसे बड़ी अगर बात करेगे तो नकुड से धर्म सिंह सैनी, सुल्तानपुर से अनूप सांडा की रही। वही भाजपा प्रत्याशी दीना नाथ भास्कर भी ऐसे ही परिस्थितियों में चुनाव जीते है। जहा उनकी जीत में सहायक AIMIM को मिले वोट बने है। वैसे लोकतंत्र में सभी को चुनाव लड़ने की आज़ादी है और सभी भारत के नागरिक जो चुनाव लड़ने के लिए पात्रता पूरी करते है। मगर हमारा यहाँ मतो एक विभाजन को बताने का सिर्फ मकसद है।
नकुड विधानसभा में बनी AIMIM गेम चेंजर
नकुड विधानसभा क्षेत्र से सपा प्रत्याशी धर्म सिंह सैनी को 1,03,799 वोट मिले हैं जबकि बीजेपी प्रत्याशी मुकेश चौधरी को 1,04,114 वोट मिले हैं। नकुड़ विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य सीट मानी जाती है और यहां पर ओवैसी की पार्टी AIMIM ने भी उम्मीदवार खड़ा किया था। शायद ओवैसी जो हमेशा खुद को मुस्लिम समुदाय का हितैषी और रहनुमा होने का दावा करते है ने यहाँ मुस्लिम मतो को देख कर ही अपना प्रत्याशी उतारा था। जो आखिर में गेम चेंजर बन गया।
इस सीट पर धर्म सिंह सैनी की हार का सबसे बड़ा कारण AIMIM उम्मीदवार रिजवाना बनी। रिजवाना को 3591 वोट मिले। जबकि धर्म सिंह सैनी की हार महज 315 वोटों से हुई है। अब अगर सच का आइना देखे तो ओवैसी की पार्टी को मिलने वाले मत 99 फीसद मुस्लिम समुदाय के होते है। इस बार मुस्लिम मत एकतरफा सपा के खाते में गया। यहाँ अगर रिजवाना के मतो को जोड़ कर देखे तो ये सीट धर्म सिंह सैनी गेम चेंजर बनी ओवैसी की पार्टी AIMIM प्रत्याशी रिजवाना के कारण हार गए। अगर रिजवाना चुनाव ना लड़ी होती तो उनके अधिकांश वोट धर्म सिंह सैनी को ही मिलते।
धर्म सिंह सैनी नकुड़ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं और यहीं से कांग्रेस के कद्दावर नेता इमरान मसूद भी चुनाव लड़ते थे। हालांकि चुनाव के ठीक पहले इमरान मसूद ने कांग्रेस छोड़ समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली थी। बाद में सपा ने उन्हें टिकट न देकर धर्म सिंह सैनी को टिकट दिया था। इमरान मसूद ने धर्म सिंह सैनी को समर्थन करने का ऐलान भी किया था। धर्म सिंह सैनी को स्वामी प्रसाद मौर्या का करीबी बताया जाता है और उन्होंने कई दफे यह कबूल किया है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के अधिकांश फैसले में उनकी भी राय होती है। धर्म सिंह सैनी ने 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के इमरान मसूद को हराया था। 2017 का विधानसभा चुनाव भी धर्म सिंह सैनी करीब 4000 वोटों से ही जीते थे।
सुल्तानपुर में सपा के अनूप सांडा के हार में आखिरी कील ठोकी ओवैसी की पार्टी AIMIM के प्रत्याशी ने
सुल्तानपुर की सीट पर सपा ने अनूप सांडा पर भरोसा जताया था। इस सीट पर बाहुबली सोनू सिंह, मोनू सिंह ने इस सीट पर अन्दर खाते में अनूप सांडा को समर्थन किया था। इस सीट पर भाजपा ने विनोद सिंह पर भरोसा जताया था और उन्हें चुनाव मैदान में उतारा था। जबकि ओवैसी की पार्टी AIMIM ने यहाँ से मेराज अकरम को प्रत्याशी बनाया था। यह सीट प्रतिष्ठा का विषय बन चुकी थी।
यहाँ से सपा के अनूप सांडा ने 91,706 मत पाए और भाजपा के विनोद सिंह ने 92,715 मत पाए। इस प्रकार से अनूप सांडा को भाजपा के विनोद सिंह ने महज़ 1009 मतो से पराजित कर दिया। मगर अनूप सांडा की हार और भाजपा की जीत में सबसे अधिक सहायक ओवैसी की AIMIM बनी। ओवैसी की पार्टी AIMIM के मेराज अकरम ने यहाँ से 5,251 मत हासिल किया। अब अगर यहाँ से मेराज अकरम के इन मतों को देखे तो यह अधिकतर मुस्लिम मत ही थे, जो उनके चुनाव न लड़ने की स्थिति में सपा के खाते में जा सकते थे।
यहाँ ये भी गौरतलब हो कि मेराज अकरम ने चुनाव हल्के में नही लड़ा था बल्कि चाप के चुनाव लड़ा था और मुस्लिम रहनुमा होने का दावा करते हुवे एक्जहती की बात करते हुवे मुस्लिम मतो के तुस्टीकरण का काफी प्रयास किया था। शायद यही कारण था कि पुरे प्रदेश में AIMIM को प्राप्त मतों में सबसे अधिक मत उन्हें ही मिले है। 5,251 मत प्राप्त करने वाले मेराज अकरम भले खुद विधायक नही बन सके मगर पुरे चुनावों में उन्होंने मुस्लिम रहनुमा होने का दावा ज़रूर किया है। माना जाता है कि मेराज अकरम को 99 फीसद मुस्लिम मत पड़े है।
औराई से भाजपा के दीना नाथ भास्कर की जीत में सहायक रही AIMIM
ऐसी ही परिस्थिति औराई से बनी। यहाँ कभी बसपा के तेज़ तर्रार नेता दीना नाथ भास्कर भाजपा के टिकट से उम्मीदवार थे। उनके मुखालिफ सपा ने अंजनी को अपना प्रत्याशी बनाया था। टक्कर काफी कांटे की थी। यहाँ से दीना नाथ भास्कर को कुल 93।691 मत मिले और सपा के अंजनी को 92,044 मत प्राप्त हुवे थे। इस प्रकार से भाजपा के दीना नाथ भास्कर ने ये चुनाव महज़ 1647 मत से जीता। अब यहाँ से ओवैसी साहब जो मुस्लिम रहनुमा और हमदर्द होने का दावा करते रहते है ने यहाँ से तदही को टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा और रहनुमाई का दावा करते हुवे मुसलमानों के लिए अधिकार की बात कहते हुवे चुनाव लड़ा।
इस सीट पर भाजपा की जीत का अंतर उतना भी नही था जितना ओवैसी मिया के प्रत्याशी तदही ने पाया था। यहाँ से AIMIM के प्रत्याशी को कुल 2190 मत मिले है। अब अगर इन मतो को देखे तो ये अधिकतर मत AIMIM के इस चुनाव में न होने से सपा के खाते में दिखाई देते। फिर ऐसी स्थिति भाजपा की जीत कहा होती इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
बिजनौर में AIMIM बनी गेम चेंजर, फायदा पंहुचा भाजपा को
ऐसी ही परिस्थिति बिजनौर में बनी। बिजनौर विधानसभा सीट पर भाजपा ने सूचि को अपना प्रत्याशी बनाया था और उन्होंने जीत हासिल किया। वही सपा गठबंधन ने यहाँ आरएलडी के टिकट से नीरज चौधरी को टिकट दिया था। जिन्हें मामूली अंतर से हार मिली। इस सीट पर भी गेम चेंजर ओवैसी की पार्टी AIMIM बनी। यहाँ प्रत्याशियों को मिलने वाले मतों को देखे तो यहाँ भाजपा ने कुल 97,165 मत पाए थे और वह आरएलडी के नीरज चौधरी को मिले 95,720 मतों से महज़ 1445 मत से जीत गई थी।
यहाँ ओवैसी की पार्टी ने मुनीर अहमद को अपना प्रत्याशी बनाया था। मुनीर अहमद ने इस सीट के लिए काफी मेहनत किया और मुस्लिम रहनुमा होने का दावा करते हुवे चुनाव लड़ा। हर नुक्कड़ पर मुनीर अहमद ने मुस्लिम हितो की बात किया और उन्होंने इस चुनाव में 2290 मत प्राप्त किया। अब अगर इस सीन को देखे तो अगर मुनीर अहमद ये चुनाव नही लड़ते तो ये मत अधिकतर आरएलडी के खाते में जाते। ऐसी स्थिति में चुनावी नतीजे कुछ और ही होते। यहाँ मुनीर अहमद भले ही चुनाव में अपनी ज़मानत नही बचा पाए मगर चुनावी गेम चेंजर ज़रूर बन गये।
हमने सिर्फ चार सीट पर ये आकलन किया है। उत्तर प्रदेश में संपन्न हुवे चुनावो में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिल गया है और भाजपा सरकार बना रही है। भाजपा ने तीन दशक से अधिक समय का मिथक तोडा है और सरकार में वापसी किया है। वही योगी आदित्यनाथ राष्ट्रीय पटल पर अब एक बड़ा नाम होने जा रहे है। इन चार सीट के अलवा और भी सीट ऐसी है जहा AIMIM चुनाव में अपनी ज़मानत नही बचा पाई है मगर गेम चेंजर के तौर पर रही है। मुस्लिम मतों के बल पर चुनाव में उतरे ओवैसी ने भले एक फीसद भी वोट नही पाए और जनता ने सिरे से उनकी सियासत को नकार दिया। मगर सीट पर सियासी समीकरण तो ज़रूर इधर के उधर हुवे है।
नोट: इस लेख का प्रकाशन चुनाव आयोग के डाटा को आधार मान कर किया गया है। हम किसी की जीत को सवालो के घेरे में नही ला रहे है। हमारा उद्देश्य सिर्फ आकड़ो पर गौर करवाने का है। हम निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया पर कोई सवाल नही उठा रहे है और न चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर कोई संदेह व्यक्त कर रहे है।
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