आदिल अहमद
डेस्क: महाराष्ट्र में सियासी संकट के दरमियान आज राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा कल फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया है। इस पर शिवसेना ने कड़ी आपत्ति जताते हुवे सुप्रीम कोर्ट का रुख कर लिया है। शाम 5 बजे इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई किया और अभी से आधे घंटे के बाद यानी रात 9 बजे फैसला आ सकता है। शिवसेना ने राज्यपाल के आदेश को चुनौती दिया है। सुप्रीम कोर्ट में आज सभी पक्षों की बहस हो चुकी है।
फ्लोर टेस्ट कराने के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर बुधवार को सुनवाई शुरू हुई। शिवसेना की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने बहस शुरू की। सिंघवी ने बहस शुरू की। सिंघवी ने कहा, नेता विपक्ष रात को दस बजे राज्यपाल से मिलने गए और फिर कल 11 बजे के लिए फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया गया। हालांकि शिंदे गुट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने कहा, खरीद-फरोख्त पर अंकुश के लिए फ्लोर टेस्ट जल्द से जल्द कराया जाना ही बेहतर है। वहीं गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी की ओर से एसजी तुषार मेहता ने कहा, पहले भी 24 घंटे के भीतर बहुमत परीक्षण कराने के आदेश दिए गए हैं। इसकी मंशा पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, कांग्रेस के दो विधायक देश से बाहर हैं और दो एनसीपी के विधायक कोरोना से संक्रमित हैं। इस मामले में राज्यपाल ने बहुत तीव्रता से फैसला लिया है। 24 घंटे में बहुमत परीक्षण के लिए कहा गया है। गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी को पता था कि मामला सुप्रीम कोर्ट के पास है। मान लीजिए 11 जुलाई को कोर्ट विधायकों की याचिका खारिज कर देता है और 2 दिनों में स्पीकर अयोग्यता का फैसला देता है। ऐसे में क्या वो कल मतदान कर सकते है? यह मामला सीधे तौर पर अयोग्यता से जुड़ा है। सिंघवी ने कहा, अगर कल महाराष्ट्र विधानसभा में शक्ति परीक्षण नहीं होता है तो कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा। इस बीच गुरुवार को शक्ति परीक्षण के पहले बागी विधायक गुवाहाटी से गोवा पहुंच चुके हैं।
शिंदे गुट की ओर से वकील नीरज कौल ने सुप्रीम कोर्ट में बात रखी। उन्होंने कहा, शक्ति परीक्षण रोका नहीं जा सकता, हॉर्स ट्रेडिंग रोकने के लिए जल्द ही होना चाहिए। फ्लोर टेस्ट अयोग्यता के किसी लंबित मामले पर निर्भर नहीं करता है। जिस मुख्यमंत्री को बहुमत का भरोसा हो, वह फ्लोर टेस्ट का सामना करने के लिए तत्पर रहता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ही पहले के फैसलों में कहा है कि यदि मुख्यमंत्री अनिच्छुक दिखे, तो लगता है कि वह जानता है, वह हारने वाला है। शिंदे गुट के वकील नीरज कौल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा, फ्लोर टेस्ट को रोका नही जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विधायकों की खरीद-फरोख्त रोकने के लिए जल्दी से जल्दी फ्लोर टेस्ट कराने की बात कही है। कौल ने कहा,16 विधायकों की अयोग्यता का मामला डिप्टी स्पीकर के पास लंबित है ये दूसरे पक्ष की दलील है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले कहते हैं कि इससे फ्लोर टेस्ट पर कोई प्रभाव नही पड़ता है।
नीरज कौल ने कहा, सरकार को जब लगा वो अल्पमत में आ गई तो डिप्टी स्पीकर का इस्तेमाल करके अयोग्यता का नोटिस भेजना शुरू कर दिया। इस आधार पर फ्लोर टेस्ट कैसे रोका जाए। ये क्या दलील है कि राज्यपाल दो दिन पहले ही कोविड से रिकवर हुए हैं। फ्लोर टेस्ट के खिलाफ जाकर वे जो करना चाहते हैं वह लोकतंत्र विरोधी है। यह लोकतंत्र के भले के लिए नहीं है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा, तो वो कार्यवाही कैसे निष्प्रभावी हो जाएगी? जिस पर सिंघवी ने दलील दिया कि मान लीजिए याचिका खारिज कर दी गई और स्पीकर ने अयोग्य घोषित कर दिया, तो हम कल फ्लोर टेस्ट के परिणाम को कैसे उलट सकते हैं? यह एक अपरिवर्तनीय प्रक्रिया है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने सवाल किया कि क्या फ्लोर टेस्ट की कोई समय सीमा है?
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा की ये साफ है कि अयोग्यता का मामला हमारे पास है। हमने नोटिस जारी किया है। अयोग्यता का मामला कोर्ट में लंबित है। जो हम तय करेंगे कि नोटिस वैध है या नही? लेकिन इससे फ्लोर टेस्ट कैसे प्रभावित हो रहा है? इस पर सिंघवी ने कहा कोर्ट ने अयोग्यता के मसले पर 11 जुलाई के लिए सुनवाई टाली है। उससे पहले फ्लोर टेस्ट गलत। जिस पर बेंच ने पूछा कि फ्लोर टेस्ट कब करवा सकते हैं, इसे लेकर क्या कोई नियम है? अदालत के इस सवाल पर सिंघवी ने कहा कि आमतौर पर 2 फ्लोर टेस्ट में 6 महीने का अंतर होता है। इसलिए, अभी फ्लोर टेस्ट कुछ दिनों के लिए टाल देना चाहिए। 21 जून को ही यह विधायक अयोग्य हो चुके हैं।
इस पर अदालत ने कहा की अगर स्पीकर ने अभी तक यही फैसला ले लिया होता तो स्थिति अलग होती। अयोग्य करार दिए जाने का मसला हमारे सामने पेंडिंग है, लेकिन फ्लोर टेस्ट से उसका क्या संबंध हैं, साफ करें। जिसके बाद सिंघवी ने दलील दिया कि एक तरफ कोर्ट ने अयोग्यता की कार्रवाई को रोक दिया है, दूसरी ओर विधायक कल होने वाले फ्लोर टेस्ट में वोट करने जा रहे हैं, ये सीधे सीधे विरोधभास है।इस दलील पर अदालत ने कहा कि अदालत ऐसे मामलों में बहुत सीमित अधिकार का इस्तेमाल करती है। असाधारण स्थिति जब कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर के आदेश में हस्तक्षेप किया। क्योंकि उन्होंने डिप्टी स्पीकर के खिलाफ नोटिस दिया था। इसलिए हमने समय बढ़ाया। हम आपको इस विषय के विशेषज्ञ मानते हैं। इसलिए हम आपसे सवाल कर रहे हैं
सिंघवी ने कहा की अयोग्यता के निपटारे से पहले इन विधायको को वोट डालने की इजाजत नही देनी चाहिए। ये संविधान के मूल भावना के खिलाफ है। राज्यपाल ने सत्र बुलाने से पहले CM या मंत्रिमंडल से सलाह नही ली। जबकि उन्हें पूछना चाहिए था। वो लोग स्वेच्छा से पार्टी छोड़ चुके हैं। इसके लिए इस्तीफा देने की जरूरत नहीं। ये सदस्य का आचार है जो ये तय करता है कि उसने पार्टी छोड़ दी है। सिंघवी ने 34 बागी विधायकों द्वारा राज्यपाल को दिया गया पत्र पढ़ा। ये सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के मुताबिक सदस्यता छोड़ने के बराबर है।
सिंघवी ने एक बार फिर 2 एनसीपी विधायकों के कोविड संक्रमित और कांग्रेस के दो विधायकों के देश से बाहर होने की बात कही। स्पीकर ने सुनील प्रभू को व्हिप बनाया है। ।लेकिन शिंदे ग्रुप का कहना है कि वो व्हिप नहीं हैं। कल को फ्लोर टेस्ट होगा तो किसकी व्हिप मानी जाएगी? इस मामले में बैंलेंस होना चाहिए। न्याय होना चहिए। ऐसे में फ्लोर टेस्ट को टाल दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा की लेकिन हम राज्यपाल पर ये क्यों भेजे कि वो देखे कि ये 34 विधायक इस तरफ हैं या उस तरफ? जिस पर सिंघवी ने अदालत से कहा कि शिंदे समेत अन्य विधायकों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली तो वो सोच रहे हैं कि वो कुछ भी कर सकते हैं। कोर्ट ने सिंघवी से पूछा कि आप डिप्टी स्पीकर को भेजे गए उस लेटर पर भी सवाल उठा रहे हैं जिस पर 34 विधायकों ने हस्ताक्षर किया था। सिंघवी बोले, बिल्कुल। जिस पर अदालत ने कहा की ये 34 विधायक किस तरफ हैं, ये फ्लोर टेस्ट से पता चलेगा। इस पर सिंघवी ने कहा कि ऐसा कोई मामला नहीं है, जहां अदालत ने अयोग्यता की कार्यवाही पर रोक लगाई हो और फ्लोर टेस्ट की तुरंत घोषणा की गई हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बोम्मई और शिवराज मामले के बारे में हमारी समझ यह है कि इन मुद्दों को राज्यपाल के फैसले पर नहीं छोड़ा जा सकता है। फ्लोर ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां यह तय किया जा सकता है। जिस पर सिंघवी ने दलील दिया कि ये सभी मामले अयोग्यता या फ्लोर टेस्ट के हैं। ऐसी कोई मिसाल नहीं है जहां अदालत ने अयोग्यता को दरकिनार किया हो और अचानक फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया गया हो।
वही शिंदे गुट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा, फ्लोर टेस्ट को रोका नही जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विधायकों की खरीद-फरोख्त रोकने के लिए जल्दी से जल्दी फ्लोर टेस्ट कराने की बात कही है। कौल ने कहा कि 16 विधायकों की अयोग्यता का मामला डिप्टी स्पीकर के पास लंबित है ये दूसरे पक्ष की दलील है,लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले कहते हैं कि इससे फ्लोर टेस्ट पर कोई प्रभाव नही पड़ता है। कौल ने कहा कि हमारे पास सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसले हैं कि फ्लोर टेस्ट को टाला नहीं जाना चाहिए। इस बीच ये सभी विधायक सदन के सदस्य हैं और उन्हें वोट देने की अनुमति दी जानी चाहिए। 21 जून को भारी बहुमत ने प्रभु को व्हिप पद से हटा दिया। हमने स्पीकर को लिखा कि आप पर सदन का विश्वास नहीं है। 23 तारीख को स्पीकर को नोटिस देने के बावजूद अयोग्यता याचिका दायर की गई और नोटिस जारी किया गया। ऐसा नहीं है कि हम स्पीकर की कार्यवाही में हस्तक्षेप कर रहे हैं। अथॉरिटी की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत है। स्पीकर को पहले स्पीकर के रूप में अपना अधिकार स्थापित करना होगा जो इस मामले से निपट सकता है। कौल बोले, आज तक कभी भी फ्लोरटेस्ट पर न कभी रोक लगी है और ना ही इसे टाला गया है। या तो फ्लोरटेस्ट कराने का आदेश हुआ है या फिर इसे समय से पहले किया गया है।
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