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सुप्रीम कोर्ट के तीन पूर्व जजों समेत 12 लोगों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को पत्र याचिका भेज किया आग्रह, उत्तर प्रदेश में चल रहे बुल्डोज़र पर अदालत करे हस्तक्षेप

शाहीन बनारसी

डेस्क: एक टीवी डिबेट में भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा कथित विवादित बयान के के विरोध प्रदर्शन के दरमियान कानपुर में जुमे की नमाज के बाद उपद्रव हो गया। शहर के कई हिस्सों में जमकर पत्थरबाजी हुई। मामले में मुख्य आरोपियों को लखनऊ से गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा 50 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। इसके साथ आरोपियों की अवैध संपत्ति पर बुलडोजर पर भी गरजने शुरू हो गए। इस घटना के बाद अगले शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद हर शहरों में पुलिस के कड़ी सिक्योरिटी के बावजूद प्रयागराज, सहारनपुर, बरेली, लखनऊ समेत दूसरे शहरों में नारेबाजी हुई वही प्रयागराज में उपद्रव शुरू हो गया। पुलिस कार्रवाई यहां भी जारी है और आरोपियों की अवैध संपत्ति पर बुलडोजर चल रहा है।

इस दरमियान उत्तर प्रदेश में मुस्लिम प्रदर्शनकारियों के दमन का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट के तीन पूर्व जजों समेत 12 लोगों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को पत्र याचिका भेजी है। इन लोगों ने मामले पर सुनवाई की मांग की है। पत्र याचिका भेजने वाले पूर्व जज समेत 12 लोगों ने कहा है कि सीएम ने लोगों को दंडित करने का बयान दिया है। पुलिस ने लोगों को पीटा और वीडियो वायरल किए। मकानों को गिराया जा रहा है।

पत्र लिखने वालों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी, जस्टिस वी0 गोपाला गौडा, जस्टिस एके गांगुली, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एपी शाह, मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस के चंद्रू, कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मोहम्मद अनवर के अलावा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील शांति भूषण, इंदिरा जयसिंह, चंदर उदय सिंह, आनंद ग्रोवर, मद्रास हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू और सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण शामिल हैं। पत्र याचिका में सुप्रीम कोर्ट से उत्तर प्रदेश में नागरिकों पर राज्य के अधिकारियों द्वारा हाल ही में हुई हिंसा और दमन की घटनाओं का स्वत: संज्ञान लेने की गुहार लगाई गई है।

इसमें कहा गया है कि भाजपा के कुछ प्रवक्ताओं की इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब पर की गई हालिया विवादास्पद टिप्पणी से देश के कई हिस्सों में और विशेष रूप से यूपी में विरोध प्रदर्शन हुए हैं। प्रदर्शनकारियों के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के बाद अपना पक्ष रखने का मौका देने की बजाय, यूपी राज्य प्रशासन ने ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ हिंसक और दंडात्मक कार्रवाई करने की मंजूरी दे दी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कथित तौर पर आधिकारिक तौर पर अधिकारियों को दोषियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित किया है। ये एक ऐसी मिसाल देने के लिए किया गया ताकि कोई भी ऐसा अपराध न करे या भविष्य में कानून अपने हाथ में न लें।

उन्होंने आगे निर्देश दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980, और उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986, को दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ लागू किया जाए। इन्हीं टिप्पणियों ने पुलिस को प्रदर्शनकारियों को बेरहमी से और गैरकानूनी तरीके से प्रताड़ित करने के लिए प्रोत्साहित किया है। इसके तहत यूपी पुलिस ने 300 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है और विरोध कर रहे नागरिकों के खिलाफ FIR दर्ज की है।

पुलिस हिरासत में युवक को लाठियों से पीटा जा रहा है, जिसके वीडियो भी सार्वजनिक हुए हैं। प्रदर्शनकारियों के घरों दुकानों को बिना किसी नोटिस या कार्रवाई के ध्वस्त किया जा रहा है। अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय का पुलिस द्वारा पीछा किया जा रहा है। सत्ताधारी प्रशासन द्वारा इस तरह की क्रूर कार्रवाई कानून के शासन का अस्वीकार्य टूटना है और नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है। ये संविधान और राज्य द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का मजाक बनाता है। पुलिस और अधिकारियों ने जिस समन्वित तरीके से कार्रवाई की है, वह स्पष्ट निष्कर्ष है कि विध्वंस सामूहिक अतिरिक्त न्यायिक दंड का एक रूप है। ये राज्य की नीति के कारण अवैध है।

इनपुट साभार नवभारत टाइम्स

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