कानपुर पुलिस कमिश्नर साहब, आपके एक-दो नही बल्कि 6 थानेदार क्या कर रहे थे जो ये जुलूस इतना लंबा चला गया ? क्या जवाबदेही होगी उनकी तय, क्या इन अनसुलझे सवालो का मिलेगा जवाब ?
कमिश्नर साहब, हम निष्पक्ष पत्रकार है। हमारा वसूल एक शेर में बयां होता है कि हम जाहिद-ए-कलम झूठा कोई मंज़र न लिखेगे, शीशे की कहता होगी तो पत्थर न लिखेगे। सवाल वाजिब है तो उठेगा ही।
शाहीन बनारसी/ मो0 कुमेल
कानपुर में आज दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प हुई है। इस झड़प में कितने लोग घायल है इसकी जानकारी अभी तो सामने नही आ रही है। मगर कानपुर कमिश्नरेट पुलिस की बड़ी लापरवाही सामने ज़रूर आ रही है। आप पुरे मामले को अगर ध्यान से देखे तो आपको भी ये बात समझ में आएगी कि कानपुर पुलिस कमिश्नरेट ने क्या चुक किया है।
पुरे मामले में मिली जानकारी के अनुसार भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा की एक कथित टिप्पणी का मुस्लिम समुदाय विरोध कर रहा है। समुदाय का कहना है कि नुपुर शर्मा के द्वारा रसूल के शान में गुस्ताखी किया गया है। जिसका मुस्लिम समुदाय द्वारा विरोध किया जा रहा है। इसी क्रम में आज कानपुर के मुस्लिम बाहुल्य इलाको में अघोषित बंदी थी। ये बंदी किस संगठन ने आहूत किया था इसकी जानकारी किसी को नही है। इसी कारण इस बंदी को अघोषित बंदी कहना मुनासिब होगा।
कौन ज़िम्मेदार ?
मगर एक हकीकत है कि इस बंदी का एलान पुलिस के चहिते और खुद को समाजसेवक कहने वाले हयात ज़फर हाशमी के द्वारा किया गया था। सोशल मीडिया पर बंदी का एलान करने वाले इस सरकारी कोटेदार ने बारहवफात की तरह ही सुबह बंदी के दिन बंदी का एलान वापस ले लिया था। मगर बात इतनी फ़ैल चुकी थी कि इसको रोकना मुश्किल ही नही नामुमकिन था। बंदी हुई और हयात ज़फर हाशमी की मंशा पूरी हुई। ये उसी तरीके से था जिस तरीके से जब जिलाधिकारी ने कोरोना के खतरे को देखते हुवे बारहवफात के जुलूस की अनुमति नही दिया था। मगर इसी हयात ज़फर हाशमी ने खुद को मुसलमनो का मसीहा साबित करते हुवे जुलूस निकालने की घोषणा कर दिया था। त्यौहार वाले दिन सुबह इसने अपनी घोषणा वापस ले लिया।
मगर वक्त तो हाथ से गुज़र चूका था और हर गली में इसकी घोषणा के अनुसार नवजवान लड़के जुलूस निकाल बैठे। नतीजा क्या हुआ इसको बताने की ज़रूरत नही है। कानून व्यवस्था ताख पर धरी रह गई। यही वह जगह थी जहा से हयात ज़फर हाशमी का मनोबल बढ़ जाता है। इसके बाद पुलिस ने ज़फर हयात हाशमी को शांति भंग में चालान किया। मुचलका भर कर ये ज़फर हयात हाशमी के चमचो ने फिर उसका जुलूस निकाल कर सम्मान किया। अगर पुलिस ने उसी वक्त मामले में गंभीरता दिखाई होती तो आज ज़फर हयात हाश्मी की ये हिमाकत करने की हिम्मत नही हो पाती।
क्या रही पुलिस की खामी
आज एक तरफ जहा राष्ट्रपति के पैत्रिक ग्राम में एक कार्यक्रम में शामिल होने स्वयं राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री कानपुर ग्रामीण में आये हुवे है। इसी दरमियाना ये घटना बेशक एक बड़ी प्रशासनिक लापरवाही मानी जायेगी। आज जुमा भी थी। जुमे की नमाज़ के बाद आज कुछ युवको का समूह बेकनगंज थाना क्षेत्र स्थित दादामिया चौराहे पर इकठ्ठा हुवे और वहा से जुलूस की शक्ल में दलेल पुरवा, रूपम चौराहे होते हुवे परेड चौराहे पर स्थिति सद्भावना चौकी के पास तक पहुच गए। ये अच्छी खासी दुरी है और इस दुरी को तय करने के लिए कानपुर कमिश्नरेट के एक नही कुल 6 थाना क्षेत्र से होकर गुज़रना पड़ता है। थाना चमनगंज, अनवरगंज, बेकनगंज, बजरिया, कर्नलगंज और मूलगंज थाना क्षेत्र से ये जुलूस गुज़रा।
जुलूस में मिल रही जानकारी के अनुसार लगभग 100-150 लोग इकठ्ठा हो गए थे। अब सवाल ये उठता है कि ये जुलूस बिना अनुमति के उठा था। 6 थाने, यानी 6 थानेदार, उनकी पिकेट, फैंटम दस्ता किसी ने इस जुलूस को रोका और टोका नही ? आखिर जुलूस इतनी दूर गया कैसे? अगर रोका और टोका गया होता तो शायद ये विवाद नही होता। मामला वही रुक जाता। वही थम जाता जुलूस। मगर शायद सभी थाने एक दुसरे को गेद पास कर रहे थे। आखिर में ये बड़ी घटना हो ही गई। पूरा प्रशासनिक अमला इस समय पसीने बहा रहा है। मुक़दमे दर्ज होंगे, कार्यवाही होगी। कुछ दोषी तो कुछ गेहू के साथ घुन भी पिसेगे। मगर क्या जवाबदेही उन थानेदारो की मुक़र्रर होगी जिनके इलाको से होकर ये जुलूस गुज़रा।
यही नही कमिश्नर साहब, क्या जवाबदेही एलआईयु की निर्धारित होगी। क्या उनसे सवाल होगा कि आखिर इतनी बड़ी घटना के पीछे का क्या राज़ था। क्या एलआईयु से पूछा जायेगा कि जब बंदी का एलान हुआ तो उनको सुचना कैसे नही हुई। क्या उन्होंने शांति समिति के सदस्यों को इसके लिए एकजुट करके कोई घटना न हो प्रेरित किया। बेशक जवाब तो एलआईयु का भी होना चाहिए। क्या जवाब सद्भावना चौकी प्रभारी का होगा जहा घटना हुई। बम चले, नही चले, गोली चली, नही चली, ये सभी सवालों के जवाब बाद में होंगे, मगर क्या उनसे सवाल होंगे जिन्होंने विवाद को सांप्रदायिक रूप दे डाला। कमिश्नर साहब, सवाल है तो उठेगे।
कमिश्नर साहब, हम निष्पक्ष पत्रकार है। हमारा वसूल एक शेर में बयां होता है कि हम जाहिद-ए-कलम झूठा कोई मंज़र न लिखेगे, शीशे की कहता होगी तो पत्थर न लिखेगे। सवाल वाजिब है तो उठेगा ही।