तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ: नगर निगम के साहब..! हम कह रहे थे कि “किसी को धनेसरा पोखरा याद है क्या?” कब होगा इसका अब जीर्णोधार ? अनसुलझे सवाल क्या होंगे हल ?
तारिक़ आज़मी
वाराणसी: एक तरफ जहा सरकार ने कई परियोजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए काफी धनराशि आवंटित किया है। वही दूसरी तरफ आज दशको के इंतज़ार के बाद भी एतिहासिक महत्व रखने वाले धनेसरा पोखरे को अपने अस्तित्व के लिए सिसकियाँ भरना पड़ रहा है। पीली कोठी के लबेरोड इस पोखरे पर अतिक्रमण ने दुबारा पाँव फैला दिया है।
वर्ष 2018 के अक्टूबर माह की वह रात मुझको आज भी याद है। जब पुरे जनपद के हर थाने की फ़ोर्स पीलीकोठी स्थित इस पोखरे पर इकठ्ठा थी। अवसर था रामलीला समिति सहित रामलीला के पात्रो का विरोध प्रदर्शन होना। इसी पोखरे पर राम-केवट संवाद होता है। जहा केवट के द्वारा इसी पोखरे में नौका के माध्यम से राम-सीता-लक्ष्मण को पार करवाया जाता है और उसके बाद पीलीकोठी चौराहे पर स्थित रामलीला के मंच पर संवाद होता है।
पोखरे पर हुवे अतिक्रमण और अपनी हाल पर बदहाली की दास्ताँ सुनाते इस पोखरे में नौका चलने तक की जगह नही बची थी। पोखरा लगभग कूड़े के ढेर में तब्दील हो रहा था। जिसके बाद रामलीला समिति ने इसको लेकर विरोध करते हुवे रामलीला मौके पर रोक दिया था। रामलीला के पात्रो द्वारा इस धरने का समर्थन किया गया था। अचानक बढ़ी बात पर सियासत तो खामोश थी मगर पुरे जनपद का प्रशासन परेशान था। यह वह समय था जब आदमपुर का प्रभार विजय चौरसिया के हाथो था और जैतपुरा का प्रभार नया नया शशि भूषण राय के हाथो गया था।
आखिर प्रशासन ने काफी मान मनौव्वल के बाद रामलीला उस दिन चालु करवा दिया था। खूब जोर शोर से पत्रावली दौड़ना दुसरे ही दिन से चालु हो गई थी। सियासी हडकम्प भी बढ़ चुकी थी। प्रशासनिक हलचल भी काफी थी। फाइल पर फाइल तैयार हुई और ज़बरदस्त कार्यवाही की तैयारी हुई। फिर आती है वर्ष 2019 की गमियाँ। शिद्दत की गर्मी के बीच मई माह में आखिर नगर निगम का बुलडोज़र गरजने के लिए मौके पर आ जाता है। पुरे जनपद की फ़ोर्स मौके पर शांति व्यवस्था के लिए आती है। जमकर अतिक्रमण तोड़े जाने लगते है। अवैध अतिक्रमण के साथ साथ कई मगरुरियत भी जमीदोज होने लगती है।
इस दरमियान दौड़ भाग का सिलसिला जारी रहता है। ज़बरदस्त दौड़ केवल उनकी ही नही होती है जिन्होंने अतिक्रमण किया था। बल्कि उनकी भी भाग दौड़ होने लगती है जिन्होंने इस पोखरे की संपत्ति को प्लाटिंग करके बेचा था और आज भी सफ़ेदपोशी के चोगे में है। बड़ी बड़ी बाते और बड़ा पाव खाते वाले भी अपनी बाइक और कार दौड़ा रहे थे। दूसरी तरफ तोड़ फोड़ जारी थी। जमकर तोड़ फोड़ हुई। सुबह से लेकर शाम हो गई। अतिक्रमण पूरा टूट नही पाया था। दुसरे दिन फिर बुलडोज़र गरजने लगा था।
फिर अचानक न जाने क्या होता है। बुलडोज़र की सांसे थकान से लगता है फूलने लगती है। सब कुछ शांति शांति होती है। बुलडोज़र की आवाज़े थमने लगती है। फिर वक्त गुजरने लगता है। वर्ष 2019 पूरा गुज़र गया जिसके 6 महीने बाकि थे। 2020 में कोरोना ने पूरा साल गुज़ार दिया। 2021 भी गुज़र गया। 22 भी आधा गुज़र चूका है। दो साल पुरे हो चुके है। मगर धनेसरा पोखरा अभी भी उम्मीद की आस लिए बैठा है कि अब मेरी साज सज्जा होगी। दुसरे तरफ दुबारा पटिया से अतिक्रमण हो चूका है। मगर सब कुछ खामोश है। 18 ऐसे भवन जो इस पोखरे की संपत्ति पर होने की बात सामने आई थी। वह भी ख़ामोशी से मुस्कुरा रहे है। वही सूत्र बताते है कि इस ख़ामोशी के लिए सत्तारूढ़ दल के एक अल्पसंख्यक नेता खुद को बताने वाले ने बड़ी मेहनत और मशक्कत किया था। हकीकत क्या है वह तो विभाग और अतिक्रमणकारी ही जाने।
अब सवाल ये उठता है कि वर्ष 2018 से चली फाइल जो ज़बरदस्त स्पीड में 2019 के जून तक थी को अचानक पॉवर ब्रेक कैसे लग गया? रामलीला समिति जो इस पोखरे के साज सज्जा के लिए कलमी जंग छेड़े थी आज अचानक खामोश क्यों है? क्यों खामोश है बुलडोज़र की वह आवाज़? क्यों सब कुछ जैसा पहले था वैसा होता जा रहा है। आखिर कहा है वह आपत्तियां? कहा है वह एतराज़ ? कब होगा इस पोखरे का जीर्णोधार ? बात तो इत्ती सी है नगर आयुक्त साहब, कि कौन सुनेगा? किसको सुनाऊ? बस मोरबतियाँ तो इसीलिए चुप रहती है।