तारिक़ आज़मी
वाराणसी में ही क्या पुरे प्रदेश में बाढ़ अपने विकराल रूप के तरफ बढती जा रही है। नदिया खुद को सड़क तक लाने के लिए बेचैन है। आलिशान मकान हो या फिर आसपास की झोपड़ी, पानी ने अपनी जद में सबको ले रखा है। इंसानियत सिसकियाँ भर रही है। बेशक जिनके आशियाने पानी की लहरों में समाये हुवे है वह गरीब ही है। अन्यथा ऐसे खतरों की जगह कौन आशियाँ बनाएगा? उन गरीबो की तिनका तिनका जोड़ कर बनाई गई गृहस्थी आज पानी में डूबी हुई है।
मगर हमारी बस्ती के लोग तो आतिश पसंद थे, घर मेरा जल गया और समंदर करीब था। इसको चाहने वाले भी कम नही है। किसी की मज़बूरी का लुत्फ़ उठाने वालो की कमी आपको समाज के हर तबके में मिल जायेगे। बाढ़ में घिरे घरो को देखने और बाढ़ के पानी से हुई बर्बादी का लुत्फ़ लेने वाले भी आपको इसी शहर में मिल जाएगा।। बस आप अपने आसपास के किसी पुल का नज़ारा देख ले। तस्वीरे देखे, कैसे लोग सेल्फी ले रहे है। कैसे बड़े ही गौर से बढ़े हुवे पानी को निहार रहे है। कई आवाज़े भी आपको इस दरमियान सुनाई पड़ जायेगी। “अबे व देख, कलिहा ऊ वाला छतवा दिखात रहल, आज देख रजा डूब गयल हओ।”
थोडा और नज़र घुमायेगे तो कुछ ऐसे भी आवाज़े सुनाई देगी। “ओठींन देख रे, एत्तरे से पानिया बढेते, ऊहा वाला नगोल देख सुबहिये दिखाई देत रहा, अब नाई दिखेते।” बेशक ऐसे हालात में भी लोग लुत्फ़ उठाने से बाज़ नही आते है। शाम को कभी आपका गुज़र पुराने पुल अथवा नक्खीघाट के पुल की तरफ हो जाए तो गौर से देखिये। सैकड़ो की ताय्दात में लोग इस बर्बादी का लुत्फ़ देखने के लिए खड़े दिखाई देगे। सच कहे तो उनको पनिया देख के मजा आ जाता है। एक तरफ प्रशासन बाढ़ पीडितो की सहायता के लिए परेशान रहता है। दुसरे तरह पुलिस इनको मैनेज करने के लिए परेशान रहती है कि कऊनो उपरा से नीचे न टपक जाए।
समझ नही आता है कि आखिर इंसान किसी और की बर्बादी को देख कर लुत्फ़ कैसे ले सकता है। घसीटू च से लेकर कल्लन च, और बेलन गुरु से लेकर चिमटा उस्ताद तक आपको इस बाढ़ का लुत्फ़ लेते दिखाई दे जायेगे। वैसे ऐसे लोगो के लिए अगर टिकट लगाया जाए तो बाढ़ पीडितो को काफी राहत मिल जाएगी। जैसे एक आदमी जो बाढ़ देखने आया हो वह 5 किलो आंटा अथवा चावल बाढ़ पीडितो के लिए लेकर आये। सच बताता हु रात तक रोज़ कई टन राशन इकठ्ठा हो जाएगा। ससुरा कऊनो काम नही तो चले गए किसी की बर्बादी का लुफ्त लेने ? आखिर तुम्हे सुकून क्या मिलता है?
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