ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण: अदालत के फैसले के बाद आया मुस्लिम पक्ष का बयान, कहा हम करेगे हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील

शाहीन बनारसी

वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में आज आये जिला जज की अदालत के फैसले के बाद से अब मुस्लिम पक्ष की प्रतिक्रिया सामने आने लगी है। आज फैसले से नाखुश दिखाई दे रहे मुस्लिम पक्ष के तरफ से पहली प्रतिक्रिया अंजुमन मसाजिद इंतेजामिया कमेटी के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने हमसे फोन पर बात करते हुवे दिया है। उन्होंने कहा है कि हम इस फैसले के खिलाफ उपरी अदालत में अपील दायर करेगे। हमारी लीगल टीम इस फैसले का मुताल्ला कर रही है। जल्द ही हम इसको उपरी अदालत में लेकर जायेगे।

वही इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुवे एआईएमआईएम अध्यक्ष सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने अंजुमन मसाजिद इंतेजामिया कमिटी को सलाह देते हुवे कहा है कि इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील किया जाना चाहिए। आज अदलत द्वारा दिए गए इस 26 पेज के फैसले पर सभी आलिमो के तरफ से भी ऐसी ही प्रतिक्रिया आ रही है। समाचार लिखे जाने तक जमियत ओलेमा-ए-हिन्द की जानिब से कोई बयान नही आया है। मौलाना मदनी के पीआरओ द्वारा बताया गया है कि इस मुताल्लिक अभी आपस में मशविरा चल रहा है। जल्द भी बयान जारी किया जायेगा।

बताते चले कि कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद में श्रृंगार गौरी मंदिर में हर रोज पूजा करने की याचिका को जायज ठहराया है। इस याचिका के खिलाफ अंजुमन मसजिद इंतेजामिया कमेटी ने आदेश 7 नियम 11 के तहत याचिका दाखिल किया था जिसको आज जिला जज की अदालत ने खारिज करते हुवे फैसला सुनाया कि याचिका सुनवाई योग्य है। अदालत ने फैसले में कहा है कि मस्जिद पक्ष की तरफ से दायर याचिका में मेरिट नहीं। इससे साथ ही कोर्ट के आदेश के बाद अब इस मामले पर सुनवाई की जा सकती है।

बताते चले कि 20 मई को सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी ज़िला जज को याचिका की मेरिट पर फ़ैसला लेने का आदेश दिया था। वाराणसी ज़िला जज डॉ ऐके विश्वेश ने 24 अगस्त को सुनवाई पूरी की थी। मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि ये याचिका सुने जाने योग्य नहीं है। मस्जिद पक्ष ने दलील दी थी कि श्रृंगार गौरी में पूजा करने की याचिका 1991 के पूजा स्थल कानून के खिलाफ है।

गौरतलब हो कि संसद में सन 1991 में ‘प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट’ पारित हुआ था। इसमें निर्धारित किया गया कि सन 1947 में जो इबादतगाहें जिस तरह थीं उनको उसी हालत पर कायम रखा जाएगा। साल 2019 में बाबरी मस्जिद मुकदमे के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अब तमाम इबादतगाहें इस कानून के मातहत होंगी और यह कानून दस्तूर-ए-हिंद की बुनियाद के मुताबिक है।

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