तारिक खान
प्रयागराज: अक्सर पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगते रहते है। ऐसा ही एक मामला कल अदालत में पेश हुआ जिसमे अदालत के हुक्म से दर्ज हुवे हत्या और लूट जैसी गम्भीर मामले में पुलिस ने विवेचना के महज़ 24 घंटे से कम वक्त में ही ऍफ़आर लगा दिया। सबसे बड़ी बात ये रही कि इस मामले में वादी और उसके गवाहों का भी बयान नही हुआ और न ही वादी मुकदमा को जानकारी हासिल हुई कि मामले में पुलिस ने ऍफ़आर लगा दिया।
मामले में मिली जानकारी के अनुसार 29/09/2012 को बहादुरगंज क्षेत्र में एक हत्या हुई थी। जिसमे खुद को पीड़ित बताने वाले नफीस खाँ की रिपोर्ट थाने ने दर्ज करने से मना कर दिया था। जिसके बाद उसने सभी तथ्यो के साथ 156(3) द0प्र0सं0 के तहत अदालत का दरवाज़ा खटखटाया और अदालत ने समस्त साक्ष्य देखने के बाद मामले में मुकदमा दर्ज करने का थाना कोतवाली को घटना के दस माह बाद दिनांक 08/07/2013 को आदेश दिया था। उक्त आदेश पर पुलिस ने न्यायालय के आदेश पर दिंनाकः-14/07/2013 को थाना कोतवाली, इलाहाबाद, में मुकदमा अपराध संख्या 189/2013 अन्तर्गत धाराः-323, 504, 506, 302, 354, 394, 286, 427 समय सुबह 08:20 बजे दर्ज किया। वादी का आरोप है कि पुलिस ने बगैर पीडित के पुत्र आदिल और उसकी बहन का बयान लिये उसी दिन दिंनांक 14/07/2013 को ही मुकदमें में अपनी अन्तिम रिर्पोट लगा दिया। जिसकी जानकारी पीडित को नहीं हुई।
जब पीडित को इस बात की जानकारी हुई, तो उसने अपने अधिवक्ता नसीम अहमद सिद्दीकी के माध्यम से न्यायालय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट इलाहाबाद, में पुलिस की रिर्पोट को विधिक चुनौती दिया। घटना उपरोक्त के बाबत अदालत ने अधिवक्ता नसीम अहमद सिद्दीकी के जोरदार तर्को को सुनने के बाद पुलिस की उक्त घटना के बाबत दी गयी अन्तिम रिर्पोट संख्या 150/2013 को अपने आदेश दिनांक 26/09/2022 में निरस्त कर दिया और उक्त घटना के बाबत एसएसपी से मामले की निष्पक्ष विवेचना कराने का आदेश पारित किया है।
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