शाहीन बनारसी
वाराणसी: पत्रावली संख्या P-29599, रजिस्ट्रेशन नम्बर 743/2004-05 जो दिनांक 6/10/2004 को पंजीकृत हुई संस्था है का नाम “बनारस व्यापार मंडल” है। बीते अगस्त में इस व्यापारी संगठन का चुनाव हुआ। चुनाव भी ज़बर्दस्त रहा। प्रशासन ने पूरी सुरक्षाव्यवस्था के साथ इस चुनाव को अंजाम दिलवाया। 2 हज़ार 500 मतदाता बना दिए गए और उनको मतदान का अधिकार दिया गया। इतने मतदाताओं के चुनाव में प्रशासन ने जमकर पसीने बहाए। चप्पे चप्पे पर नज़र रखा ताकि किसी तरीके का कोई व्यवधान न उत्पन्न हो। हमने कल अपने अंक में बताया था कि आखिर कैसे यह सिर्फ अधिकतम 151 मतदाताओं के साथ होने वाले चुनाव को इतना बड़ा करके प्रशासनिक भौकाल और सियासी भौकाल बनाने की कोशिश हुई।
संस्था का पंजीकरण पिछले 13 सालो से नही हुआ है नवीनीकृत
बनारस व्यापार मंडल संस्था जिसका पंजीकरण नंबर 743/2004-05 है, का नवीनीकरण वर्ष 2009 के अक्टूबर से ही नही हुआ है। जो संस्था के खुद को कर्ताधर्ता समझ कर लोग चुनाव इतना हो हल्ले वाला करवा रहे थे, साधारण सदस्य बनाने तक में बाईलाज में उल्लेखित नियमो और शुल्क के नियम को ताख पर रख कर नियमावली का पूरा उलंघन करते हुवे प्रोपेगंडा चुनाव करवा रहे थे वह संस्था का रिनिवल आज 13 सालो में नही करवा पाए है। अब सवाल ये उठता है कि जिस संस्था का रिनिवल विगत 13 वर्षो में नही हुआ है उसका अस्तित्व ही सवालिया निशान के साथ है के चुनाव की इतनी जल्दी क्यों थी कि रिनिवल 13 साल में नही करवाया और चुनाव करवा दिया गया।
छोटा मोटा चुनाव भी नही हुआ, 5100 रुपया नामांकन फीस थी। बस थोडा सा फीस बढ़ा देते लोग तो विधायक का चुनाव हो जाता। बहरहाल इलेक्शन कमीशन आफ इंडिया जैसे इलेक्शन फीस लेने वालो ने चुनाव चिन्ह तक आवंटित किया और जमकर बैनर पोस्टर छपे। इतना करवाने वाले लोग संस्था का रिनिवल नही करवा सके बस चुनाव करवा कर भौकाल जमा बैठे। लोगो का बस नही था कि पूरी आचार संहिता बना डाले, बस इतना ही हो सका कि चुनाव ऐसा हुआ जैसे विधायकी का चुनाव हो रहा हो। मज़ेदार बात तो ये रही कि जिस संगठन का अता पता नही है, उस संगठन के खुद को कर्ताधर्ता समझ कर लोग चुनाव करवा देते है। प्रशासन पुरे दिन परेशान होकर उस चुनाव को करवाता है जिसके बेस का ही अता पता नही है।
क्या कहते है ज़िम्मेदार
हमारे सम्पादक तारिक़ आज़मी की गुफ्तगू इस मुताल्लिक हाजी मुश्ताक अली साहब से हुई। हाजी साहब पत्रकारिता जगत में अपनी पुरानी पैठ रखते है ऐसा उन्होंने हमसे बातचीत में बताया। उन्होंने हमसे बताया कि जिस बनारस व्यापार मंडल की आप बात कर रहे है वह बनारस व्यापार मंडल जियाउद्दीन मिया के इन्तेकाल के बाद ही खत्म हो गया है। ये नया संगठन है जिसका चुनाव पहले हो गया है और आम जनता की मांग पर चुनाव हुआ है, इसका पंजीकरण बाद में होगा और अब चुनाव हो चूका है तो पंजीकरण का कार्य होगा।
फिर भी हाजी साहब की बात है हम यकीन कर लेते है, मगर क्या करे, दिमाग तो पत्रकारिता वाला है हमारे पास तो फिर सवाल पेट में दर्द की तरह जोर जोर से उमड़ घुमड़ के आ गये। सवाल ये है कि जो तंजीम रजिस्टर्ड ही नही है, उस तंजीम का चुनाव कैसा? उसके चुनाव अधिकारी कैसे? उसके कायदे कानून क्या सिर्फ दिमाग में सोच कर ही काम चल जायेगा? सवाल ये भी है कि जब संस्था पंजीकृत नही तो चुनाव के समय संस्था के नाम में “रजिस्टर्ड” क्यों जोड़ा गया। क्या महज़ इसलिए जोड़ लिया गया कि प्रशासन का इस्तेमाल अपने तरीके से किया जा सके। वर्ष 1981 में जिस संगठन के निर्माण का ठप्पा लगा कर जो चुनाव करवाया गया है उसका गठन और रजिस्ट्रेशन वर्ष 2004 में हुआ है इसका हमारे पास साक्ष्य उपलब्ध है। अब जिनके पास वर्ष 1981 में संस्था के स्थापना का साक्ष्य हो उनको हम आमंत्रित करते है कि वह हमको साक्ष्य उपलब्ध करवाये। अन्यथा तब तक कृपया मुगालते में लोगो को न रखे।
अगले अंक में मैं शाहीन बनारसी आपको बताउंगी कि आखिर किस तरीके से नियमो को ताख पर रख कर आर्थिक असमानता भी इस संगठन के कथित चुनाव में फैलाई गई है। जुड़े रहे हमारे साथ आप सबको “राम-राम, दुआ सलाम।”
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