एच0 भाटिया
नई दिल्ली: मनरेगा मजदूरों को अपनी मांगो के समर्थन में धरना देते हुवे जंतर मंतर पर आज पुरे एक माह गुज़र गए है। इस एक माह के दरमियान मजदूर नेताओं का कहना है कि उनसे वार्ता तो हुई है। मगर कोई निष्कर्ष नही निकला है। इनका कहना है कि केंद्र ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और अन्य नीतियों के लिए बजट में 33 प्रतिशत कटौती सहित उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों को सुलझाने में विफल रहा है। मजदूरों के लिए योजना का लाभ प्राप्त करना कठिन हो गया है। हालाँकि इस संबध में कल द हिंदू ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मंत्रालय के अधिकारियों ने श्रमिकों के साथ मुलाकात की है, लेकिन मनरेगा मजदूरों के एकीकृत समूह ‘नरेगा संघर्ष मोर्चा’ का कहना है कि कोई समाधान नहीं निकला है।
बताते चले कि मनरेगा के कार्यान्वयन में चिंता के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं। इसमें हाल ही में बजट में 33 प्रतिशत की कटौती, काम की मांग करने वाले कर्मचारियों को वापस करना और कार्यक्रम के तहत पेश किया गया निराशाजनक मेहनताना शामिल हैं। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मनरेगा के तहत सबसे कम राशि का आवंटन किया गया है। 2023-24 बजट में मनरेगा के लिए आवंटन में आश्चर्यजनक रूप से भारी कमी करते हुए इसे 60 हज़ार करोड़ रुपया किया गया। वित्त वर्ष 2023 के लिए संशोधित अनुमान 89,400 करोड़ रुपये था, जो 73,000 करोड़ रुपये के बजट अनुमान से अधिक था।
कल रविवार को आंदोलन के 30वें दिन शनिवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए नरेगा संघर्ष मोर्चा के नेता राज शेखर ने कहा कि यह विरोध योजना पर सरकार के ‘तीन तरफा हमले’ के खिलाफ है। सरकार द्वारा हाल ही में तीन निर्णय लिए गए हैं। पहला, मनरेगा बजट में एक तिहाई की कटौती कर दी गई है, दूसरा मोबाइल ऐप आधारित उपस्थिति (नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम) प्रक्रिया शुरू की गई है और तीसरा आधार-आधारित भुगतान प्रणाली को अनिवार्य बना दिया गया है। डिजिटल रूप से श्रमिकों की हाजिरी लेने वाली प्रणाली को केंद्र सरकार ने 1 जनवरी, 2023 से लागू किया। मनरेगा योजना के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने की लिए इस प्रणाली को जरूरी बताया गया है।
मनरेगा के तहत ऐप आधारित हाजिरी दर्ज करने की प्रणाली – नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम (एनएमएमएस) – लागू की गई है, जिसको लेकर श्रमिकों में आक्रोश और असमंजस की स्थिति है। मजदूरों का कहना है इन निर्णयों ने उनको गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिससे उनके लिए काम ढूंढना मुश्किल हो गया है, अगर वे काम पाने में कामयाब हो जाते हैं, तो अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए और आधार की आवश्यकता के कारण मजदूरी प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। देश भर से मनरेगा मजदूरों के जत्थे बारी-बारी से जंतर-मंतर पर आएंगे और जंतर मंतर पर यह धरना-प्रदर्शन 100 दिनों तक चलेगा।
संगठित किसान मजदूर संगठन की ऋचा सिंह ने कहा, इन 30 दिनों में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधिकारी हमसे केवल एक बार मिले हैं। हमसे मिलने वाले अधिकारी ने धैर्यपूर्वक हमारा पक्ष सुना, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी के कार्यकर्ता धरना स्थल पर डेरा डाले हुए हैं। सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश में भी मनरेगा मजदूरी बिल बड़ी संख्या में लंबित हैं। उन्होंने पूछा, ‘क्या उन्होंने यह नहीं कहा कि यूपी में डबल इंजन की सरकार है? फिर यहां भी वेतन कैसे लंबित है?’
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