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पुलिस हिरासत में हुई अतीक और अशरफ की हत्या के तार सुन्दर भाटी गैंग से जुड़े, मौके से बरामद असलहो जैसे ही असलहे मुसेवाला हत्याकांड में हुवे थे इस्तेमाल, क्या इस बड़े सवाल का मिलेगा जवाब ?

तारिक आज़मी (इनपुट: तारिक खान)

माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस हिरासत में पुलिस की आँखों के सामने हत्या हो जाती है। पुलिस ने मौके से तीन शूटर को गिरफ्तार किया है। वही मिल रही अपुष्ट जानकारी के अनुसार पुलिस ने एक होटल से तीन और लोगो को गिरफ्तार किया है। पुलिस सूत्रों की माने तो इस हत्याकांड की कड़ी सुन्दर भाटी गैंग से जुडती हुई दिखाई दे रही है।

कस्टडी में हत्या के बाद पूरा प्रदेश सन्न है। हत्या को अंजाम देने वाले तीनों शूटर्स की क्राइम कुंडली खंगाली तो एक शूटर सुन्दर भाटी गैंग से सम्बन्धित निकला। इस बीच सूत्रों के हवाले से खबर मिल रही है कि अतीक और अशरफ की हत्या के पीछे जेल में बंद एक सज़ायाफ्ता माफिया का हाथ है। पुलिस को मौके से तुर्की मेड पिस्टल 9 एमएम जिगाना बरामद हुई है। जबकि एक कंट्रीमेड 30 बोर (पॉइंट 762) तथा एक पिस्टल एक 9 एमएम पिस्टल गिरसान मेड इन टर्की मौके से पुलिस को बरामद हुई है। इसी प्रकार की पिस्टल का इस्तेमाल सिद्दू मुसेवाला हत्याकांड में हुआ था। तीनो ही असलहे महंगे और मारक असलहो में गिने जाते है।

पुलिस को शक है कि इस दोहरे हत्याकांड की साजिश जेल में रची गई। जेल में बंद सजायाफ्ता माफिया के गुर्गों ने ही तीनों शूटर्स को अत्याधुनिक असलहे मुहैया करवाए। इतना ही नहीं तीनों शूटर्स को इस हत्याकांड के बाद बड़ा माफिया बन जाने के सपने दिखाए गए थे। गिरफ्तार होने पर जेल में कोई दिक्कत न होने देने का भरोसा दिलाया गया था। जेल में बंद रहने और पेशी के दौरान तीनों शूटर्स की इस माफिया से दोस्ती हुई थी। उमेश पाल हत्याकांड के बाद से ही तीनों ने अतीक और अशरफ को मारने का प्लान बना लिया था। जिसके बाद से से ही तीनों ने पुलिस कस्टडी रिमांड के दौरान अतीक और अशरफ के आने जाने की रेकी भी की थी।

इस हत्याकांड में शामिल अरुण मौर्य कासगंज, लवलेश तिवारी बांदा और मोहित उर्फ़ सनी हमीरपुर के रहने वाले है। इनमें से मोहित उर्फ़ सनी सुंदर भाटी गैंग का सदस्य बताया जा रहा है और उस पर 14 आपराधिक मुक़दमे दर्ज हैं, जिसमे हत्या का प्रयास, मादक पदार्थ तस्करी आदि शामिल है। वहीं अरुण मौर्य पर भी एक मामला दर्ज बताया जा रहा है। जबकि लवलेश तिवारी पर महिलाओं से छेड़खानी, मादक पदार्थ तस्करी और आईटी एक्ट के मामले दर्ज है। ऍफ़आईआर  के मुताबिक तीनों ने पुलिस को बताया है कि वे इस हत्याकांड के बाद प्रदेश में अपने आप को माफिया के तौर पर स्थापित करना चाहते थे। इसके लिए वे कई दिनों से अवसर की तलाश में भी थे। तीनों ने कहा कि उनका प्लान हत्याकांड को अंजाम देने के बाद भागने का था, लेकिन पुलिस की मुस्तैदी की वजह से वह फरार नहीं हो सके।

बड़ा सवाल क्या मिलेगा इसका जवाब ?

पुलिस सूत्रों की माने तो ये तीनो शूटर्स तीन दिनों से उस जगह की रेकी कर रहे थे जहा कल यह हत्याकांड हुआ था। अब सवाल ये खड़ा होता है कि अमूमन प्रयागराज में दो जगह मेडिकल होता है। एक एसआरएन और दूसरा केल्विन हॉस्पिटल। अमूमन धूमनगंज पुलिस केल्विन में ही मेडिकल करवाती है। फिर सवाल ये है कि पुलिस मेडिकल के लिए लेकर इस जगह आएगी यह बात शूटरो को कैसे पता चली। पुलिस की शैली पर उठ रहे सवाल वाजिब भी है कि तीन शूटर्स इतनी पुलिस सुरक्षा में कैसे हत्याकांड को अंजाम दे बैठे और पुलिस कर्मी के हवाले खुद को कर बैठे। फुटेज में देखा गया कि शूटर्स गोली चला रहा है और उसके पीछे पुलिस वाला खड़ा होकर निहत्था उसको पकड रहा है। इस पुरे घटनाक्रम म किसी भी पुलिस वाले को अपना सरकारी असलहा निकालने की ज़रूरत ही नही पड़ी? क्या गोली चलती हुई रोकने के लिए बल प्रयोग नही हो सकता था?

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