तारिक़ आज़मी
वाराणसी: वाराणसी में नशे का कारोबार बड़े मजे से फल फुल रहा है। इसमें सबसे अधिक ड्रग एडिक्ट दिखाई पड़ते है। नीद की गोलियों से लेकर कोडिन सिरप आसानी से उपलब्ध हो जाने और जिम्मेदारो की ख़ामोशी से नवजवान पीढ़ी नशे के उस अंधेरी गर्त में समां रही है जिसके आगे कोई मार्ग नही है। ड्रग इस्पेक्टर और स्वास्थ विभाग की भूमिका इस मामले में पूरी तरह सन्देह के घेरे में है।
कोडिन दरअसल खासी के लिए एक औषधि है। जिसमे नींद का असर होता है। विगत वर्षो में सरकार द्वारा इसके दुरूपयोग को देखते हुवे इसको प्रतिबंधित कर दिया गया था। जिसके बाद सभी बड़ी कंपनियों ने इस समस्या के हल हेतु अपने अपने उत्पाद में ट्राईपोडीन का मिश्रण किया, नशे की इसकी क्षमता को कम करता था। मगर छोटी और अज्ञात कंपनियों ने ऐसा नही किया और कोडिन का प्रोडक्शन जारी रखा। वही सरकारी दिशानिर्देशो के अनुसार चिकित्सक की सलाह के बगैर इसको किसी ग्राहक को प्रदान करना पूरी तरह से प्रतिबंधित है।
स्वास्थ्य विभाग और ड्रग इस्पेक्टर की संदिग्ध भूमिका के बीच आसानी से उपलब्ध है कोडिन
एक दवा को नशे के तौर पर इस्तेमाल करने वालो को यह आसानी से उपलब्ध है। दुकानदार ऐसे ग्राहकों को पहचानता है और उसको यह प्रदान करता है। जिसके कारण नवजवान पीढ़ी ड्रग के इस नशे की गर्त में चंद मुनाफाखोरो के कारण डूबती जा रही है। अधिकतर गली मुहल्लों के कुकुरमुत्तो की तरह खुले मेडिकल स्टोर इसको बेचते है। पुलिस इसके सम्बन्ध में जानती तक नही है।
बड़ी मछलियों के कारण कारोबार कर रहा दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की
इस कारोबार में हमारे सूत्र बताते है कि बड़ी मछलियाँ शामिल है। कई खुद को सत्ता संरक्षित बताते है तो कई व्यापारी संगठनो के पदाधिकारी भी बताते है। बड़े दुकानदारों की बात करे तो लक्सा कौड़िया अस्पताल के आसपास सभी मेडिकल स्टोर, लल्लापुरा के अधिकतर मेडिकल स्टोर, पिशाचमोचन का मेडिकल स्टोर, आदमपुर का काशी मेडिकल स्टोर और लोहता के श्वेता मेडिकल स्टोर पर हमको इसकी उपलब्धता खुद की आँखों से दिखाई दी।
किस नाम से जाना जाता है और क्या है पूरी चेन का मुनफा?
इसको बिक्री हेतु कई हिरोईन के फुटकर कारोबारी भी अपने कारोबार में शामिल कर चुके है। यह काम दरअसल इसकी दमदार प्रॉफिट के कारण है। यह उत्पाद बेचने वाले को महज़ 65-70 रूपये का पड़ता है। जिसकी बिक्री 140-180 रूपये में होती है। इनके नाम आनरेक्स, कोडी स्टोर है जो 140 और 150 रूपये में मिलते है। जबकि एमबी नाम का सिरप 180-220 रूपये में मिलता है, खास डिमांड एमबी की है। बताया जाता है कि इसमें नशे की मात्रा ज्यादा है। मार्किट में इसकी शार्टेज हमेशा बनी रहती है।
कैसे होती है इसकी सप्लाई
इसकी सप्लाई चेन को पता किया तो मालूम चला कि इसके लिए ख़ास तौर पर पेडलर को हाकर कहते है। इनके नाम कुछ भी हो मगर इनको पप्पू, बबलू, मुन्ना, बाबु जैसे नामो से लोग पुकारते है। ऐसे नाम मोहल्ले में 10-12 एक ही गलियों में मिल जाते है। जिससे इनकी पहचान आसान न हो। ये ‘हाकर’ विक्रेताओं से जाकर आर्डर लेते है और फिर किसी झोले में रख कर इसकी सप्लाई कर देते है। अधिकतर हाकर कमीशन पर काम करते है, जिनको एक एम्पुल में 15-20 रूपये की बचत होती है। एक हाकर दिन भर में आराम से 150-200 एम्पुल बेच लेता है।
कहा है मुख्य गढ़
इसका असली गढ़ हमारे सूत्रों के अनुसार सप्तसागर मार्किट में है। मगर स्टॉक वहा नही रहाता है। स्टॉक के लिए इसके सप्लायरो ने चाँदपुर, लहरतारा, जंसा, चेतगंज और दुलाहिपुर में किसी अज्ञात स्थान पर गोदाम बना रखा है। जहा से इनका आदमी माल लेकर आर्डर के अनुसार पंहुचा देता है। पुलिस की भूमिका को भी सीधे सीधे क्लीन चिट नहीं दिया जा सकता है। मगर ड्रग विभाग और स्वास्थ विभाग की संलिप्तता बेशक संदेह के घेरे में है।
क्यों मुस्लिम समुदाय में इसकी अधिकता है
मुस्लिम समुदाय में शराब को ‘हराम’ करार दिया गया है। यानी पूरी तरह प्रतिबंधित। इसके काट के लिए कुछ धर्म के कम जानकार इसका सेवन करके ये सोचते है कि यह हराम नही है। जबकि आलिम-ए-दींन की माने तो यह बतौर दवा तो इस्तेमाल कर सकते है। मगर बतौर नशा पूरी तरह से हराम है।
क्या है नुक्सान
इसके एडिक्ट के रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना, किडनी की समस्या, शरीर में खून की कमी, मर्दाना कमजोरी जैसे नुक्सान होते है। दिमागी तौर पर वह डिप्रेशन में जल्दी चले जाते है। इसकी लत बहुत ही कम समय में लग जाती है। बताया जाता है कि महज़ तीन से चार दिनों में इसकी लत लग जाती है।
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