तारिक़ आज़मी
वाराणसी: वाराणसी के दालमंडी स्थित सराय हड्हा और आसपास के इलाकों में काम करने वाली संस्था बनारस व्यापार मंडल के नवीनीकरण का आदेश हो गया है। रजिस्ट्रार ने 15 दिनों के भीतर सभी से आपत्ति भी तलब किया है। साथ ही 37 सदस्यों की कमेटी का गठन कर उनके लिस्ट का प्रकाशन किया है जो इस संगठन हेतु पदाधिकारी चुनेगी। रजिस्ट्रार ने इसके सूचि का भी प्रकाशन किया है।
इस दरमियान संस्था के जीवित महामंत्री मो0 असलम ने संस्था को समाप्त करने हेतु प्रत्यावेदन भी दे दिया साथ ही मोहम्मद असलम के द्वारा उक्त मामले में अपराध पंजीकरण हेतु अदालत का भी सहारा लिया गया। इस दरमियान कई आपत्तियों को दाखिल भी किया गया। चल रही कागज़ी दौड़ में राशिद सिद्दीकी जो चुनाव में अध्यक्ष पद पर चुने गए थे के द्वारा एक रसीद रिनिवल हेतु कटवा कर खुद को अध्यक्ष घोषित करते हुवे संस्था के रिनिवल का दावा पेश कर दिया गया।
लगभग एक साल तक चले इस कागज़ी घोड़ो की रेस में दोनों पक्षों को रजिस्ट्रार द्वारा अपत्तियो पर सुनवाई किया गया। जिसके बाद फैसला आया कि संस्था के पंजीकृत 37 लोगो के द्वारा संस्था का चुनाव किया जायेगा और उनके द्वारा प्रतिनिधि चुना जायेगा। यानी सब मिला कर ये हुआ कि जितने शोर शराबे के साथ चुनाव इस संस्था का हुआ था वह पूरा चुनाव ही अवैध था और चुनाव दुबारा वैध तरीके से चुने हुवे केवल 37 सदस्यों के द्वारा ही किया जायेगा और संगठन के पदाधिकारी नियुक्त किये जायेगे। रजिस्ट्रार द्वारा 37 सदस्यों के नामो की लिस्ट जारी करते हुवे अगले 15 दिनों के अन्दर आपत्ति आमंत्रित किया गया है। यदि 15 दिनों में आपत्तियां नहीं आती है तो फिर चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी।
संस्था के मान्य सदस्य जो संस्था के पदाधिकारियों का चुनाव करेगे उनके नाम इस प्रकार है:
इस आदेश के बाद अब सब मिला कर यह सामने आया कि जिस चुनाव के लिए प्रशासन का पसीना बहाया गया वह चुनाव ही पूरी तरह से अवैध हो गया और संस्था का मान्य न तो कोई अध्यक्ष है और न कोई महामंत्री अथवा उपाध्यक्ष। चुनाव तो अब ये 37 लोग करेगे, जिसमे से जियाउद्दीन खान साहब का इन्तेकाल हो चूका है। अब बचे 36 लोग। मतलब जिस चुनाव को 2500 वोटर बना कर खूब ढोल ताशे के साथ किया गया था, वह चुनाव ही पूरा निरस्त हो गया और अब ये 3 दर्जन लोग चुनेगे कि कौन होगा व्यापारियों के लिए अध्यक्ष और कौन महामंत्री।
आप इस बात को सोच कर हस रहे होंगे कि अच्छा ख़ासा पैसा खर्च कर जिस चुनाव को लड़ा गया वह चुनाव ही नही हुआ और सारे ढोल ताशो की धमक के चुनाव की जगह अब शांति से एक कमरे में बैठ कर मंथन करके यह निर्णय लिया जायेगा कि किसके सर पर क्या ज़िम्मेदारी का बोझ दिया जाये। एक साल की कड़ी कागज़ी मशक्कत के बाद हासिल हुआ तो चुनाव का निरस्तीकरण।
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