आफताब फारुकी
डेस्क: इलेक्टरोल बांड को लेकर याचिका दाखिल करने वाले देश के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने एक साक्षात्कार में कहा है कि इलेक्टरोल बांड देश का सबसे बड़ा घोटाला है। उन्होंने इस साक्षात्कार में विस्तार से बात करते हुवे उस मुद्दे पर भी अपने विचार व्यक्त किये कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाने के बाद भी चुनाव आयोग ने इसको गंभीरता से नही लिया। उन्होंने कहा कि सिर्फ चुनाव आयोग ही क्यों समस्त संवैधानिक संस्था तक सवालो के घेरे में है।
2 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अज्ञात इलेक्टरोल बॉन्ड योजना का मार्ग प्रशस्त करने वाले वित्त अधिनियम, 2017 द्वारा पेश किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के समूह में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने तीन दिनों तक मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं में से एक के लिए बहस करने वाले सिब्बल ने इंटरव्यू की शुरुआत में कहा कि वह आमतौर पर उन मामलों पर नहीं बोलते हैं, जिनमें उन्होंने बहस की है। हालांकि मामले की गंभीरता के कारण उन्होंने मामले के बारे में बोलने का विकल्प चुना।
उन्होंने कहा, “यह पहली बार है कि मैं वास्तव में किसी ऐसे मामले के संबंध में इंटरव्यू दे रहा हूं जिसमें मैंने तर्क दिया। मैं आम तौर पर ऐसा नहीं करता हूं और फिर भी मेरा मानना है कि यह इतना महत्वपूर्ण मामला है कि मुझे देश के सामने तथ्य रखने की जरूरत है।” सिब्बल ने कहा कि यह योजना सत्तारूढ़ पार्टी को वित्त पोषित करने के लिए लागू की गई, जिससे वह देश की सबसे अमीर पार्टी बन गई। उन्होंने कहा कि ‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ नाम ही गलत नाम है, क्योंकि इसका चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने बताया कि इस योजना के पीछे वास्तविक मंशा पार्टी को मिलने वाली फंडिंग है।
इलेक्टरोल बॉन्ड मामले में अदालत के समक्ष दायर एक बयान में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि नागरिकों को किसी राजनीतिक दल की फंडिंग के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत जानकारी का अधिकार नहीं है। जब राजदान ने केंद्र के इस रुख के बारे में पूछा तो सिब्बल ने कहा कि यह गुमराह करने वाला बयान है। उन्होंने इस संबंध में कहा, “….यह भ्रामक है, क्योंकि वे ऐसा करते हैं। यदि आप इलेक्टरोल बॉन्ड के माध्यम से नहीं, बल्कि 20,000 रुपये से अधिक का दान देते हैं तो जनता को जानने का अधिकार है।
उन्होंने कहा कि विसंगति देखें, यदि आप इलेक्टरोल बॉन्ड के माध्यम से कुछ दान करते हैं, जो 1,000 रुपये 10,000 रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक हो सकता है तो आप इसे इलेक्टरोल बॉन्ड के माध्यम से कर सकते हैं और जनता को पता नहीं चलेगा। लेकिन अगर आप इसे इलेक्टरोल बॉन्ड के माध्यम से नहीं करते हैं तो जनता को जानने का अधिकार है, क्योंकि 20,000 रुपये से ऊपर की कोई भी चीज़ घोषित करनी होगी। तो इसका तर्क क्या है? भाजपा जानती है कि यह सारा पैसा उनके पास आएगा, इसी तरह वे इस देश में चुनावों को नियंत्रित कर रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा, “मैं आपको बता दूं कि यहां वास्तव में गंभीर सांठगांठ शामिल है। कॉर्पोरेट क्षेत्र पार्टी को दान देता है। कॉर्पोरेट क्षेत्र मीडिया को नियंत्रित करता है। सभी बड़े कॉर्पोरेट घरानों के पास अपने मुख्यधारा के मीडिया चैनल हैं। इसलिए वे पार्टी को दान देते हैं और पार्टी विज्ञापन देती है उन चैनलों को और उस माध्यम से पैसा भेजा जाता है। फिर वह चैनल भाजपा की विचारधारा का प्रचार करता है जो कि एक बहुत ही गंभीर सांठगांठ है और इस देश के लोगों को इसके बारे में पता भी नहीं चलता है।”
सिब्बल ने बताया कि चुनाव आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के विरोध के बावजूद यह योजना लागू की गई। सिब्बल ने आगे कहा, “चुनाव आयोग ने लिखित रूप में इसका विरोध किया लेकिन जब बात अदालत में आई तो उसने कभी कुछ नहीं कहा। भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने विरोध किया और फिर भी यह योजना आगे बढ़ी, क्योंकि यह तत्कालीन वित्त मंत्री द्वारा भाजपा को समृद्ध करने के लिए बनाई गई आदर्श रणनीति थी और वह इसमें सफल हुए। अब अगर आपके खजाने में इतना पैसा आएगा तो कोई भी पार्टी कैसे मुकाबला करेगी? वास्तव में यह लोकतंत्र का विध्वंस है। संविधान का अनुच्छेद 324 स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की बात करता है। इस प्रकार के धन से चुनाव न तो स्वतंत्र हो सकता है और न ही निष्पक्ष हो सकता है। तो यह हमारी चुनावी प्रणाली का पूर्ण विध्वंस है।”
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