मो0 सलीम
डेस्क: जाने-माने बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी जिनको साल 2014 मे नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था, ने बीते महीने एक बयान में उन्होंने ग़ज़ा में रहने वाले बच्चों की सुरक्षा की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि ‘फ़लस्तीन के बच्चे और ग़ज़ा के बच्चे हमारे अपने बच्चे हैं, अगर हम खुद को समाजिक मानते हैं तो सब कुछ ऐसे नहीं होने दे सकते।’
उन्होंने कहा है कि युवाओं पर युद्ध का पड़ने वाला प्रभाव “बहुत, खतरनाक है। इससे विद्रोह की भावना, बदला लेने की भावना, नफ़रत की भावना बढ़ रही है। यही कारण है कि हमें मज़बूती से इसके उपाय तलाशने होंगे। बच्चों कभी भी युद्ध और सशस्त्र संघर्ष के लिए ज़िम्मेदार नहीं होते लेकिन उन्हें इसकी सबसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। ये कीमत उन्हें जीवन भर चुकानी पड़ती है।’
तारिक खान डेस्क: नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने कुम्भ मेले को लेकर सरकार पर…
आफताब फारुकी डेस्क: असम के दीमा हसाओ ज़िले की एक खदान में फंसे मज़दूरों को…
सबा अंसारी डेस्क: इंडिया गठबंधन के घटक दल शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता संजय राउत…
तारिक खान डेस्क: खनौरी और शंभू बॉर्डर पर धरने पर बैठे किसानों का सब्र का…
सबा अंसारी डेस्क: संभल शाही जामा मस्जिद के कुए को हरिमंदिर बता कर पूजा की…
संजय ठाकुर डेस्क: संभल की जामा मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद के बीच उत्तर…