अनुराग पाण्डेय
डेस्क: शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तारेश्वरानद सरस्वती ने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर बड़ा बयान देते हुवे है है कि ‘शिखर और ध्वज के बिना मंदिर में प्रतिष्ठा की गई तो वह मूर्ति तो राम की दिखाई देगी लेकिन उसमें आसुरी शक्ति आकर बैठ जाएगी’। उन्होने कहा है कि ‘पीएम मोदी तीन बार धर्मनिरपेक्षता की शपथ ले चुके हैं…..। इसलिए किसी धर्म कार्य में उनका सीधा अधिकार नहीं बनता’।
उन्होंने कहाकि ‘मंदिर परमात्मा का शरीर होता है। उसका शिखर, उनकी आंखें होती हैं। उसका कलश, उनका सर और ध्वज पताका उनके बाल होते हैं। इसी चरण में सब चलता है। अभी सिर्फ धड़ बना है और धड़ में आप प्राण प्रतिष्ठा कर देंगे तो यह हीन अंग हो जाएगा। मोदी जी ने कह दिया है कि विकलांग मत कहो, दिव्यांग कहो, तो आज की तारीख में यह दिव्यांग मंदिर है। दिव्यांग मंदिर में सकलांग भगवान को, जिनके सकल (सभी) अंग हैं, उन्हें कैसे प्रतिष्ठित कर सकते हैं?’
स्वामी अविमुक्तारेश्वरानद ने इस साक्षात्कार में कहा है कि ‘वह तो पूर्ण पुरुष है, पूर्ण पुरुषोत्तम है, जिसमें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है। मंदिर के पूरा होने के बाद ही प्राण प्रतिष्ठा शब्द जुड़ सकता है। अभी वहां कोई प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो सकती है, अगर हो रही है तो करने वाला तो कुछ भी बलपूर्वक कर लेता है। अभी सर बना नहीं है। उसमें प्राण डालने का कोई मतलब नहीं है। पूरा शरीर बनने के बाद ही प्राण आएंगे और जिसमें अभी समय शेष है। इसलिए जो अभी कार्यक्रम हो रहा है, धर्म की दृष्टि से उसे प्राण प्रतिष्ठा नहीं कहा जा सकता। आप आयोजन कर सकते हैं…रामधुन करिए, कीर्तन करिए, व्याख्यान कीजिए। ये सब कर सकते हैं, लेकिन प्राण प्रतिष्ठा शब्द का इस्तेमाल मंदिर बन जाने के बाद ही लागू होगा।’
पीएम मोदी के यजमान बनने के सवाल पर स्वमी अविमुक्तारेश्वरानद सरस्वती ने कहा कि ‘हमारी कुछ धार्मिक मान्यताएं हैं। पत्नी को दूर रख कर कोई भी विवाहित व्यक्ति किसी भी धर्म कार्य में अधिकारी नहीं हो सकता। आप विवाहित हैं। आपकी पत्नी है। न होती तो अलग बात है। आपका उसके साथ क्या संबंध है, क्या नहीं है? बातचीत होती है कि नहीं होती है। साथ में रहते हैं कि नहीं रहते हैं। यह अलग बात है, लेकिन धर्म कार्य में उसका अधिकार है। वह आधा अंग है। जिस समय साथ में सप्तपदी होती है, उस समय यह वचन होता है कि धर्मकार्य में तुमको मैं अपने बगल में स्थान दूंगा। यह पहले से वचन दिया जा चुका है, इसलिए धर्मकार्य में उसको अवसर तो देना पड़ेगा। आप उसको (पत्नी) वंचित नहीं कर सकते हैं।’
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