मिस्बाह अंसारी
डेस्क: अयोध्या में राम मंदिर के बाद अब वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह को लेकर विवाद छिड़ गया है। मुस्लिम पक्ष प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट 1991 कानून की बात कर रहा है और बार बार उसकी अवहेलना को बता रहा है। वही दूसरी तरफ अब भाजपा के नेताओं द्वारा इस कानून को खत्म करने की बात कहा जा रहा है।
भाजपा सांसद हरनाथ सिंह ने कहा कि ये एक्ट न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है, जो कि संविधान की बुनियादी विशेषता है। बीजेपी नेता ने इस कानून को मनमाना और तर्कहीन करार दिया। उन्होंने कहा कि ये कानून से बौद्ध, जैन, सिख और हिंदू समुदाय के अनुयायियों के धार्मिक अधिकारों को कम करता है, साथ ही भगवान राम और कृष्ण के बीच भेदभाव पैदा करता है, जबकि दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार हैं।
इसके साथ ही हरनाथ सिंह ने पीएम नरेंद्र मोदी का धन्यवाद करते हुए कहा कि पीएम ने कहा था कि आजादी के बाद जो लोग लंबे समय तक सत्ता में रहे, वो लोग पूजा स्थलों के महत्व को नहीं समझ सके। उन लोगों ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए अपनी ही संस्कृति पर शर्मिंदगी होने की प्रवृत्ति स्थापित की। हरनाथ सिंह ने कहा कि पीएम मोदी ने कहा था कि कोई भी देश अपने अतीत को भूलकर, उसे मिटा कर और अपनी जड़ों को काटकर कभी प्रगति नहीं कर सकता।
भाजपा सांसद हरनाथ सिंह ने कहा कि इस कानून का अर्थ ये है कि विदेशी आक्रमताओं द्वारा तलवार की नोक पर ज्ञानवापी और श्री कृष्ण जन्मभूमि सहित अन्य पूजा स्थलों पर जो कब्जा किया गया, उसे पहले की सरकार द्वारा कानूनी रूप से सही ठहरा दिया गया है। बीजेपी सांसद ने कहा कि समान कृत्यों और समान परिस्थितियों के लिए दो कानून नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि कोई भी सरकार किसी भी नागरिक के लिए अदालत के दरवाजे बंद नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि ये कानून पूरी तरह से असंवैधानिक है। ऐसे में वो इस कानून को देश हित में खत्म करने की मांग करते है।
क्या है प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट 1991
दरअसल पूजा स्थल एक्ट 1991 में साफ तौर पर कहा गया है कि आजादी के पहले जिस धार्मिक स्थल का जो स्वरूप रहा है, वो उसी तरह रहेगा उसके साथ किसी भी तरह की कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। हालांकि अयोध्या मामले को इसमें एक अपवाद माना गया था। इस एक्ट को पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय बनाया गया था। उस समय राम मंदिर का मुद्दा अपने चरम पर था। सदन में उस समय लाल कृष्ण अडवानी और अटल बिहारी बाजपेई भी थे।
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