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इसरायली सेना का लेबनान की राजधानी बेरुत के कुछ हिस्सों पर हवाई हमला

आदिल अहमद

डेस्क: इसराइली सेना ने कहा है कि वो लेबनान की राजधानी के कुछ हिस्सों पर हवाई हमले कर रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बेरूत के दाहिया इलाके से धुआं उठता दिख रहा है। इससे पहले इसराइल ने आज भी दक्षिणी लेबनान में हिज़्बुल्लाह के कई ठिकानों पर बमबारी जारी रखी है। इसराइल हिज़्बुल्लाह संघर्ष के बीच ऐसी ख़बरें भी हैं कि इसराइल हवाई हमलों के बाद लेबनान में ज़मीन के रास्ते भी घुस सकता है।

ऐसे में हिज़्बुल्लाह के पास लेबनान में जितना बड़ा समर्थन होगा, इस संघर्ष का दायरा उतना बड़ा हो सकता है। लेबनान में हिज़्बुल्लाह समर्थक और हिज़्बुल्लाह विरोधी लोगों के बीच अंतर को आसानी से नहीं बांटा किया जा सकता है। इस मामले में कई ऐसे पहलू हैं जिनपर विचार करना ज़रूरी है।

लेबनान कई समुदायों में बंटा हुआ एक देश है, जहाँ लोगों की धार्मिक पहचान उनकी राजनीति पर गहरा असर डालती है। मसलन हिज़्बुल्लाह के कई समर्थक शिया मुसलमान हैं। जबकि बड़ी संख्या में इसके विरोधी और आलोचक गैर-शिया हैं, जिनमें सुन्नी मुसलमान और ईसाई भी शामिल हैं। हालांकि ये बातें कुछ हद तक ही सही हैं। लेबनान में अलग अलग धार्मिक और वैचारिक मान्यताओं वाले कई समूह हैं जो हिज़्बुल्लाह से बिल्कुल अलग हैं।

हालिया समय तक हिज़्बुल्लाह के मुख्य राजनीतिक सहयोगियों में से एक, उस समय की सबसे बड़ी ईसाई पार्टी ‘फ्री पैट्रियॉटिक मूवमेंट’ थी। कई साल से इन दोनों के बीच एक-दूसरे का समर्थन करने का व्यवहारिक समझौता था। हालाँकि यह समझौता टूट चुका है, लेकिन यह दिखाता है कि लेबनान में अलग-अलग समूह धार्मिक मान्यताओं से हटकर गठबंधन बना सकते हैं। लेबनान में कुछ लोग हिज़्बुल्लाह के निरस्त्रीकरण की अपील करते हैं तो कुछ लोग इसके बड़े समर्थक हैं क्योंकि इसके पास बड़ी लड़ाकू क्षमता है।

हिज़्बुल्लाह की सैन्य ताकत और लेबनान की राष्ट्रीय सेना की कमजोरी का मतलब है कि बहुत से लोग मानते हैं कि इसके पास हथियार होना ज़रूरी है। इज़राइल ने साल 1982 में लेबनान पर आक्रमण किया था और साल 2000 तक देश के दक्षिणी हिस्से पर अपना कब्ज़ा रखा था। इसके एक हिस्से पर अभी भी इसराइल का कब्ज़ा बना हुआ है।

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