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इसराइल-ईरान-हिजबुल्लाह-हमास-हुती संघर्ष: जीत के लिए शुरू जंग मध्य पूर्व को रणक्षेत्र बनाने के बाद जीत से कितनी दूर, कितनी पास….?, ज़मीनी संघर्ष में हिजबुल्लाह कितना मजबूत या कमज़ोर है..?

तारिक आज़मी

डेस्क: इसराइल ने हिजबुल्लाह पर कथित नियंत्रण के लिए लेबनान में ज़मीनी आक्रमण करते के साथ ही बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। इसराइल की सेना का कहना है कि इस जंग में उसके 8 सैनिक मारे गए है। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने मारे गए सैनिको को श्रधांजलि देते हुवे कहा है कि ‘हम यह जंग जीतेगे’। अब बात ये उठती है कि नेतन्याहू की चल रही यह जंग क्या जीत की तरफ इशारे भी कर रही है, या फिर अभी सिर्फ आम नागरिको का ही नुकसान हो रहा है?

पहले दिन के ज़मीनी हमले में जहा इसराइल अपने 8 सैनिको के मारे जाने का ग़म मना रहा है वही हिजबुल्लाह का दावा है कि उसने इजराइल के 20 सैनिको को मारा है और कई टैंक नष्ट कर दिए है। ईरान समर्थित सशस्त्र संगठन हिज़्बुल्लाह ने दावा किया है कि उसने लड़ाई के दौरान इसराली टैंकों को नष्ट कर दिया है और इस बात का ध्यान रखा है कि उसके पास इसराइली सेना को पीछे धकेलने के लिए पर्याप्त सैनिक और गोला-बारूद है। जबकि इससे पहले इसराइली सेना ने घोषणा की थी कि लेबनान के सीमावर्ती गांवों में कथित “आतंकवादी बुनियादी ढांचे” को नष्ट करने के उसके अभियान में और ज़्यादा पैदल और बख्तरबंद सैनिक शामिल हो गए हैं।

इस बीच लेबनानी अधिकारियों के मुताबिक़ कि मध्य बेरूत के बचौरा इलाक़े में इसराइली हवाई हमले में कम से कम पाँच लोग मारे गए और आठ घायल हो गए। इसराइली हमले में जिस बहुमंज़िला इमारत को निशाना बनाया गया, उसमें हिज़्बुल्लाह से जुड़ा स्वास्थ्य केंद्र था। यह लेबनान की संसद और संयुक्त राष्ट्र के क्षेत्रीय मुख्यालय से कुछ ही मीटर की दूरी पर मौजूद है। बेरुत के सेंटर में यह पहला इसराइली हमला है जबकि रात में दक्षिणी उपनगर दहिए में भी अन्य इसराइली हमले हुए। इससे पहले बुधवार शाम को लेबनान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि पिछले 24 घंटों में देश में इसराइली हमलों में 46 लोग मारे गए और 85 घायल हुए हैं। इनमें आम लोग और हिज़्बुल्लाह के लड़ाके भी शामिल हैं। लेबनानी अधिकारियों के मुताबिक़ दो सप्ताह के इसराइली और अन्य हमलों में लेबनान में 1,200 से अधिक लोग मारे गए हैं और क़रीब 12 लाख़ लोग विस्थापित हुए हैं।

हिज़्बुल्लाह एक शिया इस्लामी ग्रुप है जो लेबनान में काफ़ी ताक़तवर है। इसे इसराइल, अमेरिका, ब्रिटेन और कई अन्य देशों ने आतंकवादी संगठन घोषित किया हुआ है। लेबनान पर अपने ज़मीनी हमले के दूसरे दिन इसराइली सैनिकों का पहली बार हिज़्बुल्लाह के लड़ाकों से सामना हुआ। इसराइली रक्षा बल (आईडीएफ) ने बुधवार को एक बयान में कहा कि लड़ाकू विमानों के समर्थन से सैनिकों ने दक्षिणी लेबनान के कई इलाक़ों में ‘सटीक हथियारों और नज़दीकी मुठभेड़ों में आतंकवादियों का सफाया कर दिया और आतंकवादी बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया।’ मगर थोड़ी देर बाद ही आईडीएफ ने घोषणा की कि इस कार्रवाई में उसके आठ सैनिक मारे गए। इनमें से ज़्यादातर एलिट ईगोज़ और गोलान इलाक़े के टोही इकाइयों के कमांडो थे।

ख़बरों के मुताबिक़ छह इसराइली सैनिकों पर हिज़्बुल्लाह लड़ाकों ने घात लगाकर हमला किया जबकि अन्य दो मोर्टार हमले में मारे गए। हिज़्बुल्लाह ने कहा है कि बुधवार को एक सीमावर्ती गांव में हुई झड़पों के दौरान उसके दर्जनों लड़ाकों ने इसराइली कमांडो पर टैंक रोधी मिसाइलें दागीं, जिससे इसराइल के दर्जनों कमांडो मारे गए और घायल हुए। हिज़्बुल्लाह ने यह भी दावा किया कि कफ़्र क़िला के बाहरी इलाक़े में अन्य इसराइली सैनिकों को विस्फोटकों और गोलीबारी से निशाना बनाया गया और मारून अल-रास के क़रीब मिसाइलों से इसराइल के तीन मर्कवा टैंक नष्ट कर दिए गए।

अब एक सवाल उठता है कि क्या हिजबुल्लाह को ज़मीनी कार्यवाही में नियंत्रण पा पाना आसान होगा ? अगर ज़मीनी हकीकत देखे तो यह इतना आसान नही लगता है। हिज़्बुल्लाह ने दक्षिणी लेबनान में बुनियादी ढांचे को तैयार करने में कई साल लगाए हैं, जिसमें व्यापक भूमिगत सुरंगें शामिल हैं। इसके पास हज़ारों लड़ाके भी हैं, जो इस इलाक़े को अच्छी तरह जानते हैं। ऐसे में यह आसान तो नही लगता कि हिजबुल्लाह के लडाको पर नियंत्रण इतनी आसानी से पा लिया जायेगा। इसका सबसे बड़ा कारण है कि हिजबुल्लाह के लड़ाके पुरे इलाके को भली भांति जानते है, जबकि इसराइल की सेना के लिए रास्ता अजनबी है।

वही हिजबुल्लाह के लड़ाके गुरिल्ला युद्ध में माहिर है। उनको गुरिल्ला युद्ध में ही प्रशिक्षण मिला हुआ है। जिसके कारण वह घात लगाकर हमला करने की शैली में किसी भी सैन्य टुकड़ी पर भारी पड़ सकते है। वही दूसरी तरफ हिजबुल्लाह के पास संख्या बल और हथियार हमास से अधिक है। हमास और हिजबुल्लाह भले ही दोनों को इरान समर्थित सशस्त्र संगठन माना जाता रहा है, मगर हमास से अधिक मजबूत संगठन हिजबुल्लाह है। ऐसे में हिजबुल्लाह को कमतर आकना कंम से कम उतना ही गलत होगा जितना इजराइल सेना द्वारा हमास को कम आकना रहा है। आज एक वर्ष गुज़र जाने के बाद भी इसराइल अपने मिशन में असफल है।

अगर बारीको देखे तो हमास के साथ शुरू हुई इसराइल की जंग एक सशस्त्र संगठन और एक देश की सेना के बीच संघर्ष था। सेना के पास हर तरीके की मारक क्षमता है, जबकि सशस्त्र संगठनो के पास उतनी सुविधाए और संख्या बल नही है। इजराइल ने जन की शुरुआत किया था तो उसका मकसद बंधको की रिहाई और हमास का खात्मा था। मगर आज एक साल गुज़र जाने के बावजूद हासिल सिर्फ इतना है कि गज़ा खँडहर में तब्दील है। पैदली कार्यवाही में कोई बड़ी सफलता हाथ नही लगी है जो भी इजराइल अपनी उपलब्धि की बात करता है वह आम नागरिको से संबधित है। रही बंधको की बात तो जीवित उतने ही बंधक इजराइल छुड़ा पाया है जिसने समझौते के तहत थे। इसके अलावा कुछ बंधको की लाशें इसराइल के हाथ लगी है।

इससे एक बात तो साबित होती है कि जिस जंग को नेतन्याहु ने आसान समझा था वह इतनी आसान है नही। बल्कि मध्य पूर्व के पुरे क्षेत्र को ही इस जंग ने रणभूमि में तब्दील कर दिया। इस सबके बावजूद भी नेतान्याहु के राजनितिक प्रतिद्वंदी भले खामोश हो गये हो, मगर आवाम का गुस्सा उनको आज भी झेलना पड़ रहा है। इस सबके बीच ईरान द्वारा हुवे मिसाइल हमले में डिफेन्स सिस्टम की खुली असली पोल भी नेतन्याहू की किरकिरी कर रहा है।

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