शाहीन अंसारी
डेस्क: गंगा के निर्मलीकरण और अविरल प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए उसकी सहायक नदियों को भी स्वच्छ और निर्मल बनाना ही होगा। वाराणसी नाम की पहचान देने वाली दोनों नदियों ‘वरुणा’ और ‘असि’ को पुनर्जीवित किए बिना गंगा का निर्मलीकरण संभव नहीं होगा। इन नदियों का जन सहभागिता और प्रशासनिक इच्छा शक्ति से ही पुनरुद्धार संभव होगा। नेपाली कोठी नदेसर स्थित साझा संस्कृति मंच के कार्यालय में रविवार को आयोजित बैठक में वक्ताओं ने उक्त विचार व्यक्त किये।
वक्ताओं ने कहा कि वरुणा नदी में गिर रहे मल जल और कचरे को पूरी तरह रोकना, नदी के उद्गम से संगम तक दोनों किनारों पर सघन हरित पट्टी, और शारदा सहायक से अधिक जल की उपलब्धता से नदी को पुनर्जीवित किया जा सकता है। इसके साथ ही नदी किनारे के जल स्रोतों कूप, तालाब , पोखर आदि को पुनर्जीवित करना, वर्षा जल का अधिकतम संचय किया जाना आदि भी आवश्यक होगा।
बैठक में आईआईटी मुंबई के प्रो ओम दामानी, आईआईटी बीएचयू के प्रो प्रदीप कुमार मिश्र, पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट देहरादून के प्रो अनिल गौतम, साझा संस्कृति मंच के संयोजक फादर आनंद, वरुणा नदी संवाद यात्रा के संयोजक राम जी यादव, रामजनम, डॉ मोहम्मद आरिफ, फादर आनंद, रवि शेखर, एकता, सतीश सिंह, राजकुमार ,फादर दयाकर, अंशुल अग्रवाल, रोहित, अजय पटेल, नंदलाल मास्टर, अपर्णा, सुरेश प्रताप सिंह , धर्मेंद्र दुबे, प्रेम प्रकाश आदि ने प्रमुख रूप से विचार व्यक्त किये । बैठक का संचालन वल्लभाचार्य पाण्डेय, धन्यवाद फादर प्रवीण ने किया।
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