तारिक आज़मी
डेस्क: किसी काबिल शहर के बज़्म का एक हिस्सा है कि ‘इश्क न जाने जात और पात, भूख न देखे झूठा भात।’ मगर इस तरक्की पसंद ज़माने में शायद ये बात चंद लोगो को हज़म नहीं होती है। धर्म व्यक्तिगत मसला हो है, मगर तरक्की पसंद इस ज़माने में इसी सोच का विकास नही हुआ, वर्ना विकास की तो लहर चल रही है। जिसको देखो विकास की बात करता है।
आज मीडिया में आजमगढ़ की एक शादी छाई हुई है। खबर के लफ्ज़ बता रहे है कि शादी की तारीफ हो रही है। मामला आजमगढ़ के बरदह थाना क्षेत्र का है जहा मुस्लिम लड़की और हिन्दू लड़के की शादी मंदिर में होती है। ख़ास तवज्जो खबरों में इस लफ्ज़ पर है कि एक मुस्लिम लड़की ने अपने प्यार के लिए छोड़ा धर्म। शादी हिंदू रीति रिवाज से ठेकमा बाजार में स्थित राम जानकी मंदिर में हिन्दू धर्म के मानने वाले लड़के से किया। वैसे खबर में ये भी बतया गया है कि शादी में वधु पक्ष से कोई नही था और वर पक्ष से उसके माता पिता भी नहीं थे। वर पक्ष के कुछ रिश्तेदारों ने आशीर्वाद दिया।
साथ ही खबरों में इस बात का भी ज़िक्र है कि दोनों के बीच काफी समय से प्रेम था और इस शादी को दोस्तों ने खड़े होकर करवाया है। खबरों में इसका भी ज़िक्र है कि दोनों ने राम जानकी मंदिर में शादी के बाद कोर्ट मैरेज भी किया है और उसका प्रमाणपत्र नही मिला था। अब मिल गया है शायद। इस पुरे खबर में कुछ ऐसा नही है जिसको सुर्खियों का हिस्सा बनाया जाए। काफी शादियाँ ऐसे होती है। मगर ख़ास तौर पर मीडिया के द्वारा इस खबर को रोचकता के साथ पेश किया गया। भाई खबर है तो अच्छी बात है उठनी भी चाहिए। मगर क्या बताये हमारे काका के चुल बहुत रहती है।
काका ठहरे हमे काका, उनको चुल हो और वह मुझे अपनी बातो में उलझाए न तो बात कैसे बनेगी। वही हुआ भी, आज तनिक सुबह जल्दी क्या हुई और नाश्ता काका के साथ करने की सोच लिया तो काका ने आलू के पराठो का पूरा टेस्ट ही मेरा मिर्चे भरा कर डाला। काका ने खबर हमारे सामने रखते हुवे कहा ‘का बे पत्रकार तनिक इस खबर पर अपनी प्रतिक्रिया तो दो।’ मैंने सरसरी तौर पर खबर पढ़ी तो अपने नज़रियो को पेश करता हुआ बोला कि ‘काका देखे, धार्मिक आस्था हमारा व्यक्तिगत मसला होता है। मैं काफी ऐसे लोगो को जानता हु जो है तो मुस्लिम मगर नमाज़ नहीं पढ़ते, साथ ही कई ऐसे भी हिन्दू समुदाय को जानता हु जो है तो हिन्दू मगर मूर्ति पूजा नहीं करते है।’
मैंने आगे अपने शब्दों को बढाया ताकि काका टोका टाकी न कर सके और कहा कि ‘काका धार्मिक स्वतंत्रता हमारा संविधान देता है जिसके तहत हम स्वतंत्र रूप से किसी भी धर्म को अपना सकते है,किसी भी धर्म की मान्यताओं को अपना सकते है, इसका अधिकार हमको संविधान देता है। इसके लिए किसी को दिक्कत भी नहीं होनी चाहिए।’ काका ने ठंडी साँस लेते हुवे आलू पराठे का आखरी कौर मुह में डालते हुवे कहा कि ‘बबुआ अगर है सीन उल्टा होता तब?’ मेरे होठो पर हंसी आ गई और हमारे मुह से निकल गया ‘कुछ नहीं होता, बस क़ाज़ी जी हवालात में रहते, दक्षिणपथ सड़क और थाने पर रहता, साथ ही दोनों कपल की जाँच होती रहती कि कही मामला कुछ और तो नहीं है।’
वैसे बात तो हंसी की थी हंसी में ख़त्म हुई। मगर हकीकत तो शायद यही है। ऐसे मामलो में मीडिया की रिपोर्टिंग अगर आप देखेगे तो बेशक मीडिया अपने हिस्से का कुछ ज्यादा ही काम कर दे रहा है। आखिर शादी जैसी खबरे जो हर शहर में लगन के दिनों में 100 रहती है, क्या वह सभी कवर होती है? बेशक ये मुमकिन नहीं है, वैसे ही ये भी शादी थी, फिर इसको ख़ास तवज्जो क्यों मिली ? एक ऐसा एक साथ का रिश्ता जिसमे वर और वधु दोनों के माँ बाप न हो, तो उनके दिलो का हाल भी ऐसी खबरों का हिस्सा होना चाहिए। बकिया सब ठीक ठाक है।
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