ईदुल अमीन
डेस्क: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए ईडी को कड़ी फटकार लगाई लगाते हुवे कहा है कि ईडी जैसी एजेंसियों को एक कड़ा संदेश दिया जाना चाहिए, ताकि वो कानून के दायरे में रह कर काम करें। एजेंसियां कानून अपने हाथ में नहीं ले सकतीं और इस तरह नागरिकों को प्रताड़ित नहीं कर सकतीं। अदालत ने ईडी पर एक रियल्टी डेवलपर के ख़िलाफ़ बिना विवेक का प्रयोग किए जांच शुरू करने पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। साथ ही, शिकायतकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
अग्रीमेंट के तहत काम पूरा कर 2007 तक खरीदार को कब्ज़ा सौंप दिया जाना था। मगर रियल एस्टेट डेवलपर राकेश जैन ने देरी कर दी। उसकी दलील थी कि खरीदार के कहने के चलते फ्लोर में बड़े-बड़े बदलाव हुए, जिससे ऑक्यूपेशन सर्टिफ़िकेट नहीं जारी की जा सकी। इसी पर खरीदार ने राकेश के ख़िलाफ़ चीटिंग का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत के आधार पर पुलिस ने चार्जशीट दायर की। जिसे 2012 में ईडी को सौंप दिया गया।
रिपोर्ट्स बताती हैं कि ईडी ने अपनी जांच में पाया कि खरीदार के पैसों से डेवलपर राकेश ने अन्य प्रॉपर्टीज़ खरीद ली हैं। ऐसे में स्पेशल पीएमएलए कोर्ट ने उन प्रॉपर्टीज़ को जब्त करने का आदेश दे दिया। ये ऑर्डर 08 अगस्त, 2014 को जारी किया गया था। फिर इसी ऑर्डर के खिलाफ़ राकेश बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचे। इसी पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसकी इस अपील पर सुनवाई की। वहीं, डेवलपर के ख़िलाफ़ चल रही कार्यवाहियों को ख़ारिज कर दिया है।
21 जनवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस मिलिंद जाधव की सिंगल बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने राकेश जैन को जारी नोटिस को रद्द कर दिया है। इस दौरान पीठ ने कोर्ट ने ईडी के एक्शन को ‘दुर्भावनापूर्ण’ बताते हुए कहा- ‘हमें ऐसा जुर्माना लगाना ही होगा, जो मिसाल बने।’ लाइव लॉ की ख़बर के मुताबिक़ कोर्ट ने कहा, ईडी ने और शिक़ायतकर्ता ने जो भी किया है सबकुछ ‘बदनीयती’ से किया है (ग़लत नीयत से)। मनी लॉन्ड्रिंग की साजिश छिपकर रची जाती है और अंधेरे में अंजाम दी जाती है। लेकिन हमारे सामने पेश ये मामला PMLA कानून लागू करने की आड़ में अत्याचार का एक क्लासिक उदाहरण है।
धन शोधन निवारण अधिनियम यानि पीएमएलए ये वही एक्ट है, जिसके तहत मनी लॉन्ड्रिंग के ख़िलाफ़ ईडी अमूमन एक्शन लेती है। जज ने मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर इस बात को ख़ास तवज्जो देकर कहा कि ये अपराध तब माना जाता है, जब कोई जानबूझकर अपने निजी फायदे के लिए पूरे राष्ट्र या समाज के हितों को ताक पर रख दे। मिलिंद जाधव की सिंगल बेंच ने आगे कहा, इस केस में धोखाधड़ी का कोई भी फैक्ट मौजूद नहीं हैं। ऐसा कोई कानून नहीं है, जो डेवलपर को बिक्री समझौते (सेल अग्रीमेंट) करने और उसी प्रॉपर्टी में अतिरिक्त सुविधाओं/मरम्मत के लिए किसी अलग यूनिट से डील करने से रोकता हो। मुंबई शहर में विकास इसी तरह होता है।
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