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ईसाई धर्म के अनुसार अपने मृतक पिता के अंतिम संस्कार की मांग करने हेतु दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का खंडित फैसला, अदालत ने कहा ‘ये देश की धर्मनिरपेक्षता के साथ धोखा है’

फारुख हुसैन

डेस्क: सुप्रीम कोर्ट में कल मंगलवार को एक ऐसे मामले की सुनवाई हुई जिसको जानकार हर कोई अचंभित है कि इस सभ्य समाज को आखिर हुआ क्या है। एक व्यक्ति के अंतिम संस्कार से जुड़े इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये भारत की धर्मनिरपेक्षता पर धब्बा है। दरअसल एक पुत्र अपने पिता के अंतिम संस्कार की अपने धर्म अनुरूप इजाज़त मांग रहा था, जिनका शव 20 दिनों से शव गृह में पड़ा है।

छत्तीसगढ़ के बस्तर में रहने वाले रमेश बघेल के पिता का शव बीते क़रीब 20 दिनों से एक शवगृह में रखा हुआ है। पैतृक गाँव, घर और ज़मीन होने के बावजूद रमेश बघेल अपने पिता सुभाष बघेल का अंतिम संस्कार नहीं कर पा रहे हैं। रमेश का आरोप है कि ईसाई होने के कारण उनके पैतृक गाँव छिंदावाड़ा के ग्रामीणों ने पिता का अंतिम संस्कार करने की अनुमति नहीं दी। यह गाँव छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले के दरभा तहसील में आता है।

इस मामले में सात जनवरी से लेकर अब तक रमेश ने स्थानीय प्रशासन, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। जिस मामले में कल सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के अधिकारियों को सुप्रीम फटकार भी लगाई है। सुभाष बघेल नाम के ईसाई व्यक्ति के शव को गांव में नहीं दफ़नाए दिए जाने पर जस्टिस बीवी नागरत्ना ने छत्तीसगढ़ के अधिकारियों से कहा, ‘यह धर्मनिरपेक्षता के साथ धोखा है। लोगों के बीच भाईचारा और बंधुत्व, देश को और मज़बूत बनाएगा।’

हालांकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने खंडित फ़ैसला सुनाया है। लाइव लॉ के मुताबिक़, जस्टिस बीवी नागरत्ना ने जहां पीड़ित बेटे को अपने पिता के शव को अपनी निजी ज़मीन में दफ़नाने की मंज़ूरी दे दी। वहीं, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि शव को केवल ईसाइयों के लिए चिह्नित की गई जगह पर ही दफ़नाया जा सकता है। हालांकि, शव कई दिनों से शवगृह में है, इस तथ्य को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क़रीब 20 किलोमीटर दूर ईसाई क़ब्रिस्तान में शव को दफ़नाने का आदेश दिया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी0वी0 नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सोमवार 20 जनवरी को इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा था, ‘हमें बहुत दुख है कि एक व्यक्ति को अपने पिता को दफ़नाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा।’

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