तारिक आज़मी
आज कल सोशल मीडिया पर एक अजीब बहस चल रही है। इतिहास की एबीसीडी भी जिसको नहीं पता है, वह भी इतिहासकार बना बैठा है। अगर कोई कम्पटीशन हो तो शायद पूरा सोशल मीडिया इतिहास में सब डिग्री जीत लेगा। हाल ऐसे है कि कुछ ऐसे ऐसे भी सोशल मीडिया पर इतिहास के पुरोधा है जो इतिहास की इतनी जानकारी रखते है कि प्रोफ़ेसर भी परेशान है कि डिग्री कौन सी दे। ‘आता न जाता, चुनाव चिन्ह छाता’ के तर्ज पर जबरी की बहस ठेलने वालो की पूरी जमात सोशल मीडिया पर मौजूद है।
दरअसल उस समय के एक प्रसिद्ध वकील थे जो बिजनौर के रहने वाले थे। आसफ अली भगत सिंह के न्यायिक परामर्शदाता रहे। भगत सिंह के साथ केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने वाले बटुकेश्वर दत्त का भी न्यायालय में पक्ष उस समय के प्रसिद्ध वकील आसफ अली ने ही रखा था। सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने आठ अप्रैल 1929 को दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम फेंककर विरोध जताया था और स्वेच्छा से गिरफ्तारी दे दी थी। इसके बाद सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर पैनल कोर्ट में मुकदमा चला था। 23 मार्च 1931 को सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर की सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया था।
मुकदमे के दौरान सरदार भगत सिंह ने अपनी पैरवी खुद करने की मांग की थी, जिसे मंजूर कर लिया गया था। लेकिन कोर्ट में की जाने वाली कागजी कार्रवाई के लिए सरदार भगत सिंह ने उस समय के प्रसिद्ध अधिवक्ता आसफ अली की सहायता ली थी। आसिफ अली ने मुकदमे में बटुकेश्वर दत्त का पक्ष कोर्ट में रखा था। उस समय आसफ अली की गिनती देश के वरिष्ठ अधिवक्ताओं में होती थी। मुकदमे की पैरवी के लिए आसिफ अली कई बार भगत सिंह से जेल में भी मिले। आसफ अली की पत्नी अरुणा आसफ अली भी क्रांतिकारियों के मुकदमे में उनकी मदद करती थीं।
आसफ अली का जन्म जनपद के कस्बा स्योहारा में हुआ था। दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से स्नातक करने के बाद आसफ अली इंग्लैंड चले गए थे। 1914 में इंग्लैंड से वापसी के बाद वह स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। आसफ अली कांग्रेस से जुड़ गए तथा कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा के लिए भी चुने गए थे। कांग्रेस द्वारा बनाई गई कमेटी के वह अध्यक्ष थे, कमेटी की ओर से क्रांतिकारियों पर चलाए गए राजद्रोह के मुकदमे की पैरवी आसफ अली करते थे। राजनीतिक इतिहासकार एजी नूरानी की पुस्तक ‘द ट्रायल ऑफ भगत सिंह पॉलिटिक्स ऑफ जस्टिस’ में आसिफ अली का विस्तार से जिक्र किया गया है।
वही जेएनयू के प्रोफेसर रहे डॉ0 चमन लाल ने भी अपनी पुस्तक में आसफ अली को सरदार भगत सिंह का न्यायिक परामर्शदाता बताया है। आसफ अली देश की आजादी के बाद अमेरिका में भारत के पहले राजदूत नियुक्त किए गए। उनकी मृत्यु दो अप्रैल 1953 को स्विट्जरलैंड में हुई।
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