तारिक आज़मी
डेस्क: अहमदाबाद में गुजरात दंगे में अपने सांसद शौहर एह्सान जाफरी के मौत का इन्साफ लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी गुजरात दंगो की पीडिता जुझारू महिला जकिया जाफरी का इन्तेकाल हो गया। वह 86 वर्ष की थीं और अपने परिवार के पास शनिवार सुबह आखिरी समय तक थीं। 2002 के दंगों में गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड में अहसान जाफ़री सहित 69 लोग मारे गए थे।
ज़किया जाफ़री के बेटे तनवीर ने अपनी माँ के इन्तेकाल की पुष्टि की है। तनवीर ने बताया, ‘वो मेरी बहन के साथ रहने के लिए सूरत से अहमदाबाद आ चुकी थीं। वो उम्र संबंधित बीमारियों से जूझ रही थीं। हालांकि, शनिवार सुबह उनकी तबीयत बिगड़ गई थी। डॉक्टर को घर बुलाया गया था। सुबह साढ़े ग्यारह बजे डॉक्टर ने उनको मृत घोषित किया। मिट्टी अहमदाबाद में पड़ेगी।’
ज़किया जाफ़री ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 63 लोगों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी का गठन किया था। जकिया जाफरी, पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी थीं, जिनकी हत्या 2002 में गुजरात दंगों के दौरान हुई थी। जकिया जाफरी उन नागरिकों में शामिल थीं जिन्होंने 2002 के गुजरात दंगों के खिलाफ कड़ी कानूनी लड़ाई लड़ी।
इन दंगों में उनके पति एहसान जाफरी की हत्या कर दी गई थी। यह हिंसा गोधरा में हुई ट्रेन आगजनी की घटना के बाद भड़की थी, जिसमें 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी। जकिया जाफरी ने अपनी पूरी जिंदगी इस संघर्ष में बिताई कि दंगों में हुई हिंसा की साजिश को उजागर किया जा सके। उन्होंने राज्य और देश के कई राजनीतिक नेताओं को इस हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराने का प्रयास किया। वह अपनी आवाज को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गईं। इस मामले में तीस्तासीतलवाड़ उनकी सह याचिकाकर्ता थी।
सुप्रीम कोर्ट में जकिया जाफरी की याचिका में सह-शिकायतकर्ता रही मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने भी जकिया जाफरी के निधन पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने ट्वीट किया, ‘जकिया आपा का निधन हमारे लिए एक गहरी क्षति है। उनकी दूरदर्शिता को हम हमेशा याद करेंगे। हम उनके परिवार के साथ हैं। शांति से विश्राम करें जकिया आपा!’
क्या हुआ था गुलबर्गा सोसाइटी में और कैसे किया ज़किया जाफरी ने इन्साफ के लिए संघर्ष
ज़किया का जन्म मध्यप्रदेश के खंडवा में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनकी शादी एहसान ज़ाफ़री से हुई जो बुरहानपुर से थे और पेशे से वकील थे। गुजरात आने के बाद ज़किया और उनका परिवार लंबे समय तक चमनपुरा में एक झोपड़ी में रहा। लेकिन 1969 में हुए दंगों में उनका घर तबाह हो गया। उस वक्त गुलबर्ग सोसायटी बन रही थी और इस तरह ये परिवार गुलबर्ग सोसायटी में शिफ्ट हो गया।
28 फ़रवरी 2002 को लोगों की एक भीड़ ने मुस्लिम बहुल गुलबर्ग सोसाइटी पर हमला किया। इस दौरान यहां हुई हिंसा में पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफ़री समेत कुल 69 लोग मारे गए। भीड़ के हमले से बचने के लिए कई मुसलमानों ने एहसान जाफ़री के घर में पनाह ली। भीड़ ने पूरी सोसायटी को चारों तरफ से घेर लिया और कई लोगों को ज़िंदा जला दिया। ज़किया जाफ़री का कहना था कि उनके पति ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ कई और लोगों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने भी उनकी मदद नहीं की।
मार्च 2008 में ज़किया जाफरी और ग़ैर सरकारी संगठन ‘सिटीज़न्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस’ ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जाने माने वकील प्रशांत भूषण को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया। ये ऐसा व्यक्ति होता है जो अधिक जानकारी देकर कोर्ट की मदद कर सकता है, इसे न्यायमित्र भी कहा जाता है। अप्रैल 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पहले से गुजरात दंगों की जांच करने के लिए बनाए गए विशेष जांच दल से इस मामले की जांच करने को कहा।
साल 2010 की शुरुआत में जांच दल ने पूछताछ के लिए नरेंद्र मोदी को बुलाया। मई 2010 में सुप्रीम कोर्ट अपनी रिपोर्ट पेश की। अक्तूबर 2010 में, प्रशांत भूषण को इस मामले से आज़ाद कर दिया गया और सुप्रीम कोर्ट ने राजू रामचंद्रन को न्यायमित्र नियुक्त किया। जनवरी 2011 में राजू रामचंद्रन ने इस मामले में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी। मार्च 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेष जांच दल ने जो सबूत पेश किए हैं और वो जिस निष्कर्ष पर पहुंचा है उसमें तालमेल नहीं है। कोर्ट ने विशेष जांच दल को आदेश दिया कि वो इस मामले में और जांच करे।
मई 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमित्र से कहा कि वो चश्मदीदों और विशेष जांच दल के अधिकारियों से मुलाक़ात करें। सितंबर 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने का आदेश नहीं दिया और विशेष जांच दल से कहा कि वो अपनी रिपोर्ट निचली अदालत में सौंप दे। इस फ़ैसले को मोदी और ज़किया जाफ़री दोनों ने अपनी जीत के तौर पर बताया। 15 अप्रैल 2013 में ज़किया जाफ़री ने इसके ख़िलाफ़ याचिका डाली। ज़किया जाफ़री और विशेष जांच दल के वकीलों के बीच उनकी याचिका पर पांच महीने तक बहस चली। दिसंबर 2013 में मेट्रोपॉलिटन कोर्ट ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य अधिकारियों को इस मामले में क्लीन चिट दे दी। इसके बाद 9 दिसंबर 2021 ज़किया जाफ़री ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
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