संजय ठाकुर
डेस्क: प्रकृति भी बड़ी कमाल है। कभी कभी कुछ ऐसा कर देती है जिससे लोगो के चेहरों का नकाब हट जाता है और सच्चाई सामने आती है। ऐसा ही कुछ हुआ हाई कोर्ट दिल्ली के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के साथ। जब वह परिवार सहित कही गये हुवे थे, तभी उनके बंगले में आग लग गई।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, इस घटना की जानकारी मिलते ही स्थानीय पुलिस ने अधिकारियों को सूचित किया। जल्द ही ये खबर आग की तरह आला अधिकारियों तक पहुंच गई। उन्होंने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को सूचित किया। सीजेआई खन्ना ने इस मामले को बहुत गंभीरता से लिया और तुरंत कॉलेजियम बैठक बुलाई। कॉलेजियम ने इस बात पर सहमति जताई कि जस्टिस वर्मा का तुरंत ट्रांसफर किया जाना चाहिए। इसके बाद उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया। यहीं से जस्टिस यशवंत वर्मा 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट गए थे।
हालांकि, पांच जजों वाले कॉलेजियम के कुछ सदस्यों का मानना है कि इस तरह की गंभीर घटना के लिए ट्रांसफर काफी नहीं है। इससे न्यायपालिका की छवि धूमिल होगी और संस्था के प्रति लोगों का विश्वास भी कम होगा। उन्होंने कहा कि जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देने के लिए कहा जाना चाहिए। अगर वे मना करते हैं तो सीजेआई द्वारा इन-हाउस जांच शुरू की जानी चाहिए।
बता दें कि संवैधानिक न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ अगर भ्रष्टाचार, गलत काम या अनियमितता के आरोप लगते हैं, तो उनसे निपटने के लिए 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने इन-हाउस जांच की प्रक्रिया शुरू की थी। इसके मुताबिक, शिकायत मिलने पर सीजेआई सबसे पहले जज से जवाब मांगते है। अगर वे जवाब से संतुष्ट नहीं होते हैं या वे इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि मामले की गहन जांच की आवश्यकता है, तो वे इन-हाउस जांच पैनल गठित करते हैं। इस पैनल में सुप्रीम कोर्ट के एक जज और दो हाईकोर्ट के मुख्य जज शामिल होते हैं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने बार एंड बेंच से बातचीत में कहा, ‘इलाहाबाद हाई कोर्ट कूड़े का डिब्बा नहीं है, जो उन्हें (जस्टिस यशवंत वर्मा को) यहां भेज दिया गया है… हम भ्रष्ट लोगों को स्वीकार नहीं करेंगे। अगर जरूरत पड़ी तो हम कोर्ट का काम बंद कर देंगे। सोमवार (24 मार्च) को आम सभा की बैठक होनी है और उसके बाद हम इस मामले को लेकर कार्रवाई करेंगे। अगर जरूरत पड़ी तो हम अनिश्चित काल के लिए (छुट्टी पर) चले जाएंगे।’
उन्होंने कहा कि ‘सुप्रीम के कॉलेजियम के फैसले से एक गंभीर सवाल उठता है कि क्या इलाहाबाद हाई कोर्ट एक डस्टबिन बन गया है? यह मामला तब महत्वपूर्ण हो जाता है, जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय में माननीय न्यायाधीशों की कमी है और लगातार समस्याओं के बावजूद पिछले कई वर्षों से नए न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं हुई है। गंभीर चिंता का विषय ये भी है कि बार के सदस्यों को पदोन्नत करके उन्हें जज बनाते समय, बार एसोसिएशन से कभी भी राय मशविरा नहीं लिया गया। ऐसा लगता है कि जजों को चुनने के लिए ठीक से विचार नहीं किया गया। कहीं न कहीं कुछ कमी है, जिसके कारण भ्रष्टाचार फैला है और इसका नतीजा ये है कि “न्यायपालिका में जनता के विश्वास” को बहुत नुकसान पहुंचा है।’
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