जय हो नगर निगम और तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ: जलकल के जीएम साहब, सच्ची कहे है हम, आदमपुर ज़ोन का सलेमपुरा एक महीने से तरस रहा है पानी को, हम खुदही प्यासे है साहब, तीन दाई मोटर जल गई
तारिक आज़मी
वाराणसी। एक तरफ जहा उत्तर प्रदेश सरकार ने बढती गर्मी के लिए जल विभाग को साफ़ साफ़ निर्देश दिया है कि किसी भी इलाके अथवा गाँव में पेयजल की दिक्कत न हो। वही नगर निगम वाराणसी का जलकल विभाग है कि मुख्यमंत्री के आदेश को पलीता लगाने की लगता है कसम खाकर बैठा है। पिछले 6 सालो से आदमपुर ज़ोन का कोयला बाज़ार इलाका जहा पीने के पानी को तरस रहा था और आज तक समस्या हल नही हुई। आजिज़ आकर अधिकतर लोगो ने अपने अपने घरो में बोरिंग करवा कर खुद को पानी बिना मरने से बचा लिया। जो गरीब थे उनमे से कई ने तो लोगो से उधार लेकर बोरिंग करवा लिया है।
अब नई समस्या उभर कर सामने आई है सलेमपुरा क्षेत्र की। इस इलाके का मैं भी खुद निवासी हूँ। इलाके में पीने का पानी अच्छा आता था। समय समय पर सिर्फ शुक्रवार को छोड़ कर पानी की सप्लाई में कोई दिक्कत नही थी। हाँ ये ज़रूर है कि शुक्रवार को जुमा होने के कारण शायद जलकल विभाग का पानी भी जुमे की तैयारी करने लगता है और सुबह थोडा आने के बाद फिर जुमे बाद ही अपना दीदार करवाता है। फिर भी काम बढ़िया तरीके से चल जाता था। मगर विगत एक महीने से अधिक समय गुज़र गया पानी की समस्या से ये इलाका त्राहि त्राहि करने के कगार पर बैठा है।
आदमपुर ज़ोन के कोयला बाज़ार चौराहे से बहेलिया टोला रोड और इससे सम्बन्धित गलियों में पानी की समस्या ने अपना मुह बा दिया है। नल सूखे खुद के लिए पानी मांग रहे है। वाटर फ़ोर्स इतना कम है कि घंटो मशीन चलाने के बाद किसी प्रकार एक टंकी भर पाती है। मगर सम्बंधित विभाग है कि सुनने को तैयार ही नही है। मैंने खुद इस सम्बन्ध में दो बार स्थानीय जेई आशुतोष से बात किया और समस्या बताया, हर बार आशुतोष साहब के तरफ से बड़ा वाला आश्वासन मिला मगर वायदे है साहब वायदों का क्या? होते ही है टूटने के लिए। आखिर थक हार कर मैंने खुद समस्या का पता करने की कवायद शुरू कर दिया।
क्या है समस्या की जड़
दरअसल इस इलाके के लिए पानी की सप्लाई हेतु लगे ट्यूबवेल की बोरिंग पूरी तरह से बैठ चुकी है। पाइप लाइन टूट जाने पर सायकल के ट्यूब से पाइप का पंचर बनाने वाला विभाग अब बोरिंग के लिए कागज़ी खानापूर्ति करे ये कैसे इतनी आसानी से सम्भव है। बहरहाल, समस्या सिर्फ इतनी ही नही है। अगर इस बोरिंग को दुबारा करवा भी दिया जाता है तो तो सलेमपुरा इलाके के राजा खान मस्जिद के आसपास से लेकर पानीपट्टी मस्जिद के पीछे की गलियों में पानी नही पहुचता है। वह भी कोई एक दो महीनो से नही बल्कि उन इलाको में तो पानी की समस्या वर्षो से है। उन इलाकों के रहने वाले काफी लोगो ने इस सम्बन्ध में आवाज़ उठाने की कोशिश किया मगर क्या बताया जाए साहब, आवाज़ निकली ही नही।
वैसे भी दबे कुचलो की आवाज़े निकल नही पाती है ये जग जाहिर है। मगर जीएम साहब न मैं दबा कुचला हु और न ही मेरे लब किसी बंदिश में है। हम वो है जो गर्व से कह देते है “बोल के लब आज़ाद है तेरे बोल जुबां अबतक तेरी है।” मगर सियासत से हाथो अठखेलियाँ खेलते हुवे जेई साहब को शायद ये बात नही मालूम थी। हालत बद से बदतर होते जा रहे है। इसी इलाके में हमारा भी आवास होने के कारण मुलभुत समस्याओं का अनुभव मुझको खुद भी है। कई बार ऐसा हो चूका है कि नहाने के लिए पानी पडोसी के टंकी से मांग कर लेना पड़ा है। सच बता रहा हु जीएम साहब एक तो मुश्किल से पानी आ रहा है दुसरे पानी के साथ इतना बालू आ रहा है कि मोटर तक जल जा रही है। हमारी खुद की मोटर तीन बार जल चुकी है। खुलवाने पर एक किलो बालू निकल रहा है। हमारे दोस्त है “बेचारे लड्डू भाई” उनकी मोटर भी जल गई है। उनकी भी मोटर में बालू निकल रहा है। जगप्यासा पाइप एक हमारे मोहल्ले में है। प्यास के मारे बेचारा ऊ पाइप खुदही जबान बाहर निकला पड़ा है।
दुसरे का क्या कहे हमारी खुद के घर में पानी की मोटर तीन दफे जल चुकी है। मगर बात आकर यही रुक जाती है कि “कैसे कहू, कासे कहू, हाय राम, वो माने ही न”। समस्याओं का निस्तारण करने के लिए तो लगता है स्थानीय जेई साहब निकाय चुनाव की घोषणा का इंतज़ार कर रहे है। हमने इस समस्या के समाधान हेतु अपने स्तर पर प्रयास किया और प्रयास सफल होता हुआ भी दिखाई दे रहा है तथा स्मार्ट सिटी के तहत दूसरी बोरिंग की फाइल भी तैयार हो गई और बजट भी पास हो चूका है।
आखिर कब होगा काम ?
फाइल तो दूसरी बोरिंग के लिए तैयार हो चुकी है। बजट भी बताया जा रहा है कि पास हो चूका है। बस काम लगने का इंतज़ार है। अब काम कब लगेगा, समस्या का निस्तारण कब होगा और कैसे होगा। क्या इसी तरह से मामला ठन्डे बस्ते में पड़ा रहेगा। इसका जवाब देने की ज़िम्मेदारी किसकी है आज तक जानकारी में नही आ सका है। इलाका प्यास से तड़प रहा है। एक शेर को कुछ इस तरीके से बदल कर कहना बेहतर होगा कि “उनका जो पैगाम है वह अहल-ए-सियासत जाने, हमारी तो डिमांड है पानी थोडा जल्दी मिल जाए।” हमारी कोशिश है कि अधिकारियों से सामंजस्य स्थापित कर इस पानी की समस्या का निस्तारण हो जाए। फिर उसके बाद सियासी नोबेल अवार्ड जिसको लेना होगा ले सकता है।