मोराबी पुल हादसा: मृतकों की संख्या 141, लगभग 100 लोग अभी भी लापता, मीडिया रिपोर्ट्स में फारेंसिक सूत्रों के हवाले से दावा कि भारी दबाव से टूट गया पुराना केबिल, जाने अनसुलझे सवाल और लेटेस्ट अपडेट
तारिक आज़मी
गुजरात के एक सदी से अधिक समय से पुराने मोराबी केबिल पुल के टूटने से 141 लोगो की मृत्यु होने के समाचार ने कल से देश में शोक की लहर दौड़ा दिया है। जिस वक्त ये हादसा हुआ उस वक्त बताया जाता है कि पुल पर 500 से अधिक लोग मौजूद थे जिनमे औरते और बच्चे भी मौजूद थे। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो 170 से अधिक लोगो को इलाज हेतु भर्ती करवाया गया है। वही अभी भी 100 लोगो के करीब लापता होने की जानकारी मिल रही है।
इस दुर्घटना को लेकर सोशल मीडिया पर सियासी दावो की भी भीड़ दिखाई दे रही है। कुछ जहा सरकार को घेरने की कोशिश में है, वही कुछ समर्थक के रूप में उभरे लोग यह बताने में व्यस्त है कि कुछ अज्ञात युवको के द्वारा पुल को तोड़ने की कोशिश हुई है। बहरहाल घटना के वक्त का सीसीटीवी फुटेज वायरल हो रहा है जिसमे पुल टूटने से पहले हिल रहा है। अमूमन केबल पुल होने के कारण हवा के दबाव में भी पुल हिल सकता है इसके इंकार करने की गुंजाइश नही है। वही खबरिया चैनल NDTV की रिपोर्ट को आधार माने तो आज के लिए राहत और बचाव कार्य रोका गया है। ये रपट दावा करती है कि इस हादसे में भाई भी 100 के करीब लोग लापता है।
NDTV की इसी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि फोरेंसिक अधिकारियों ने संरचना के नमूने एकत्र करने के लिए गैस कटर का इस्तेमाल किया और पाया कि लोगों की भारी भीड़ ने केबल ब्रिज की संरचना को कमजोर कर दिया। सोशल मीडिया पर वीडियो में दर्जनों लोगों को पुल पर कूदते और दौड़ते हुए दिखाया गया है, जो मनोरंजन के लिए संरचना को प्रभावित करने का एक जानबूझकर प्रयास प्रतीत होता है। मगर इस खबर में इसकी पुष्टि नही होती है कि आखिर कार्यदाई संस्था ने इस पुल पर क्षमता से अधिक लोगो के जाने की अनुमति कैसे दे दिया। वही गुजरात के गृह राज्य मंत्री हर्ष संघवी ने मोरबी में संवाददाताओं से कहा कि राज्य सरकार ने इस हादसे की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है।
कल हादसे के बाद अब लगभग 24 घंटे बीत चुके है। अब हादसे को लेकर कई बड़े सवाल पैदा हो रहे है। मिल रही जानकारी के अनुसार मच्छु नदी पर बने इस पुल का निर्माण ब्रिटिश काल में हुआ था और उस समय 3 करोड़ 50 लाख रुपया इस पुल के निर्माण पर खर्च हुआ था। इस पुल पर 100-150 लोगों के आने की क्षमता थी। हादसे के दिन यानी रविवार को इस पुल पर क्षमता से 5 गुना ज्यादा लोग सवार थे। 100 लोगों की क्षमता वाले पुल पर 400-500 लोग आ गए थे। यहाँ इसका भी ख्याल नही था कि मरम्मत एवं नवीनीकरण कार्य के बाद इसे आमजन के लिए पांच दिन पहले ही खोला गया था।
वही समाचार एजेंसी ANI ने आईजी राजकोट के हवाले से कहा है कि ऍफ़आईआर पंजीकृत होने के बाद से OREVA कंपनी के मैनेजर और टिकट क्लर्क सहित कुल 9 लोगो को गिरफ्तार किया गया है। टिकट क्लर्क की गिरफ़्तारी पर भी सोशल मीडिया सवाल उठा रहा है कि आखिर टिकट क्लर्क की गिरफ़्तारी क्यों? वही दुसरे तरफ पुल का जीर्णोद्धार करने वाली कंपनी OREVA के दो अधिकारियों को गिरफ्तार होने की जानकारी भी आ रही है जबकि मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो गिरफ्तार अधिकारी इस कंपनी के मध्य स्तर के कर्मचारी हैं। जानकारी यह भी है कि कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी पुल त्रासदी के बाद से लापता हैं।
कंपनी ओरेवा को कई खामियों के लिए दोषी ठहराया जा रहा है, जिसमें फिटनेस प्रमाणपत्र लेने में कथित विफलता और समय से पहले पुल को फिर से खोलना शामिल है। मगर सरकार के ज़िम्मेदार अफसरों को कैसे क्लीन चिट मिल सकती है कि इस पुल को बिना फिटनेस प्रमाण पत्र लिए खोला गया और किसी अधिकारी ने इसके ऊपर आपत्ति नही किया। जबकि यह सब कुछ सार्वजनिक आज हुआ है कि पुल को खोलने के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट नही लिया गया। क्या ये बात हादसे से पहले विभाग को नही पता थी और उसने सम्बन्धित कंपनी को नोटिस जारी किया था? शायद इन सवालों का जवाब मिले या फिर न मिले।