सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल से पूछा ‘तीन साल तक बिल रोक कर क्यों रखा हुआ है?’
तारिक खान
डेस्क: तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है कि जनवरी 2020 से विधानसभा में कई बिल पास होने के बाद भी राज्यपाल ने उसपर हस्ताक्षर नहीं किया। जिस पर आज सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुवे तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि से विधानसभा से पास बिलों को रोक कर रखने पर सवाल पूछा है।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली तीन जजों की बेंच ने पाया कि 10 नवंबर को जब तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और कोर्ट के नोटिस जारी करने के बाद भी राज्यपाल ने 10 बिल रोके। बेंच ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से पूछा कि राज्यपाल का कहना है कि उन्होंने 13 नवंबर को इन विधेयकों को डिस्पोज़ कर दिया।
इस पर अदालत ने कहा कि ‘हमने जनवरी 2020 से पेंडिंग पड़े विधेयकों के लिए 10 नवंबर को नोटिस जारी किया, उसके बाद राज्यपाल ने इसे डिस्पोज़ किया। तीन साल तक आखिर उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया? राज्यपाल सरकार के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने का इंतज़ार कर रहे थे?’ अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट से कहा कि उन बिलों को रोक कर रखा गया जिसमें राज्यपाल की यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर नियुक्त करने की शक्ति को छीना जा रहा था। ये एक महत्वपूर्ण विषय है इसलिए इस पर विचार करने की ज़रूरत थी।
इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचुंड ने कहा कि “मिस्टर अटॉर्नी, गवर्नर का कहना है कि उन्होंने 13 नवंबर को इन बिलों का निपटारा कर दिया। हमारी चिंता यह है कि हमारा आदेश 10 नवंबर को पारित किया गया। ये बिल जनवरी, 2020 से लंबित हैं। इसका मतलब है कि गवर्नर ने कोर्ट के आदेश के बाद निर्णय लिया नोटिस। राज्यपाल तीन साल तक क्या कर रहे थे? राज्यपाल को पार्टियों के सुप्रीम कोर्ट जाने का इंतजार क्यों करना चाहिए?”
पीठ ने आदेश में कहा, ‘मुद्दा यह नहीं है कि क्या किसी विशेष राज्यपाल ने देरी की, बल्कि यह है कि क्या सामान्य तौर पर संवैधानिक कार्यों को करने में देरी हुई है।‘ यह सूचित किए जाने के बाद कि विधानसभा ने पिछले सप्ताह आयोजित विशेष सत्र में दस विधेयकों को फिर से पारित कर दिया, पीठ ने राज्यपाल के अगले फैसले की प्रतीक्षा करने के लिए सुनवाई 1 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी।