इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया भाजपा को जोर का झटका धीरे से, इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता असंवैधानिक करार देते हुवे राजनैतिक पार्टियों को मिले इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने का दिया निर्देश

तारिक खान

डेस्क: बहुप्रतीक्षित इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने आज फैसला सुनाते हुवे इसकी वैधता को असंवैधानिक करार दे दिया है। साथ ही इस बांड के ज़रिये राजनैतिक पार्टियों को मिले बांड की जानकारी देने का निर्देश भी जारी किया है। अदालत के इस फैसले को भाजपा के लिए एक जोर का झटका धीरे से मिलने की बात कहा जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता पर अपना फ़ैसला सुनाते हुए इस पर रोक लगा दी है। सर्वोच्च अदालत ने इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद से उसके बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है। काले धन पर काबू पाने का एकमात्र तरीक़ा इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं हो सकता है। इसके और भी कई विकल्प हैं।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को राजनीतिक पार्टियों को मिले इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की बेंच जिसमे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र  शामिल थे ने इस फैसले को सुनाते हुवे कहा है कि एसबीआई चुनाव आयोग को जानकारी मुहैया कराएगा और चुनाव आयोग इस जानकारी को 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा।

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इस फैसले की तारीफ करते हुवे कहा है कि ‘सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड मामले में एक महत्वपूर्ण फ़ैसला सुनाया, जिसका हमारे लोकतंत्र पर लंबा असर होगा। कोर्ट ने बॉण्ड स्कीम को ख़ारिज कर दिया है। इस स्कीम में ये नहीं पता लगता था कि किसने कितने रुपए के बॉन्ड ख़रीदे और किसे दिए। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे सूचना के अधिकार का उल्लंघन माना है। इसे लेकर जो संशोधन किया गया था, जिसके तहत कोई कंपनी, किसी भी राजनीतिक दल को कितना भी पैसा दे सकती हैं, कोर्ट ने वो भी रद्द कर दिया है।’

प्रशांत भूषण ने कहा, ‘कोर्ट ने कहा कि ये चुनावी लोकतंत्र के ख़िलाफ़ है, क्योंकि ये बड़ी कंपनियों को लेवल प्लेइंग फ़ील्ड ख़त्म करने का मौक़ा देती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो भी पैसा इस स्कीम के तहत जमा किया गया है, वो भारतीय स्टेट बैंक चुनाव आयोग को दे और आयोग की तरफ़ से इसकी जानकारी आम लोगों को मुहैया कराई जाएगी।’

पारदर्शिता के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता अंजिल भारद्वाज ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को ऐतिहासिक बताया है। अंजलि भारद्वाज ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फ़ैसला सूचना के अधिकार की जीत है। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से इलेक्टोरल बॉन्ड्स के ज़रिए मिलने वाले अज्ञात असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग पर रोक लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के अंतरिम आदेश के बाद से ख़रीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड का विवरण सार्वजनिक करने का निर्देश दिया है।’

इलेक्टोरल बॉन्ड के ख़िलाफ़ जो याचिकाएँ दायर की गई थीं, उनमें कहा गया था कि यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि कॉर्पोरेट फंडिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के ख़िलाफ़ है। चुनाव में ख़र्चों और पारदर्शिता पर नज़र रखने वाली संस्था असोसिएशन फोर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में कॉर्पोरेट डोनेशन का 90 फ़ीसदी बीजेपी को मिला।  2022-23 में राष्ट्रीय पार्टियों ने 850.438 करोड़ रुपए चंदा में मिलने की घोषणा की थी। इसमें केवल बीजेपी को 719.85 करोड़ रुपए मिले थे और कांग्रेस को 79.92 करोड़ रुपए। यह यचिका सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 8 वर्षो से लंबित थी। इस फैसले को ख़ास तौर पर भाजपा के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

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