अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने एतिहासिक फैसला देते हुवे पलटा 1967 में दिया अपना फैसला, कहा ‘एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का फ़ैसला वर्तमान मामले में निर्धारित परीक्षणों के आधार पर हो’
तारिक खान
डेस्क: सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने शुक्रवार को साल 1967 के अपने उस फ़ैसले को पलट दिया है जिसके तहत अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा हासिल नहीं हो सकता था। सात जजों की संवैधानिक पीठ के बहुमत के फ़ैसले में एस अज़ीज़ बाशा बनाम केंद्र सरकार मामले में दिए फ़ैसले को पलटा है।
इस मामले में फ़ैसला दिया गया था कि कोई संस्थान अगर क़ानून के ज़रिए बनाया गया है तो उसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा हासिल नहीं हो सकता है। हालांकि, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा प्राप्त होगा या नहीं इसका फ़ैसला एक रेगुलर बेंच करेगी। इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने साल 1967 के अपने उस फ़ैसले को पलट दिया है जिसके तहत अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा हासिल नहीं हो सकता था।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने बहुमत का फ़ैसला सुनाते हुए कहा, ‘एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का फ़ैसला वर्तमान मामले में निर्धारित परीक्षणों के आधार पर किया जाना चाहिए। इस मामले पर फ़ैसला करने के लिए एक पीठ का गठन होना चाहिए और इसके लिए मुख्य न्यायाधीश के सामने काग़ज़ात रखे जाने चाहिए।’ मुख्य न्यायाधीष ने अपने, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा के लिए यह फैसला लिखा।
साल 1967 के फ़ैसले के मुताबिक़, एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त नहीं है, क्योंकि इसकी स्थापना कानून के ज़रिए की गई थी। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इसी फ़ैसले को पलटते हुए कुछ परीक्षण भी निर्धारित किए हैं। अब अगली अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्ज पर सुनवाई या फ़ैसला इन्हीं परीक्षणों को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यापक तौर पर परीक्षण यह है कि संस्थान की स्थापना किसने की, क्या संस्थान का चरित्र अल्पसंख्यक है और क्या यह अल्पसंख्यकों के हित में काम करता है?