नवादा – बाल श्रम में खोता बचपन

सुमित भगत,

नवादा. कानून की दृष्टि में बाल श्रम पर रोक लगी हैं यह  अपराध है. लेकिन आज भी देश मे छोटे छोटे बच्चे मजदूरी कर रहे है. उनकी निर्धनता और लाचारी का फ़ायदा उठाकर ठेकेदार हो या मालिक उन मासूम बच्चों का शोषण करते हैं. जिस उम्र में पढ़ने लिखने और खेलने की उम्र कही जाती है, उसमे वे जी तोड़ मेहनत करते दिखते हैं

इनमें से ज्यादातर कृषि क्षेत्र , कल- कारखाने , होटल और भवन निर्माण में काम कर रहे है। ढाबों और चाय दुकानों एवं किराने की दुकानों पर भी इन्हें मेहनत – मजदूरी करते देखा जा सकता हैं। वाकई यह एक दर्दनाक परिस्थिति बनी हुई हैं. सरकार को इस दिशा में गंभीर कदम उठाने होंगे, तभी बाल मजदूरी बंद होंगे।

इनके परिजनो ने इन मासूम बच्चें को हजार से दो हजार रुपए प्रति माह में काम करने के लिए उन्हें लगा देते है और उनके मालिक उन मासूम बच्चों का कही न कही से शोषण करते है। जरा सोचिए जिन हाथों में कलम – किताब होना चहिए उन हाथों में उनके मालिकों ने उन्हें प्लेट धोने या बोझा ढोने , रिक्शा चलाने, सब्जी बेचने और ऐसे बहुत से ऐसे काम हैं जो इन मासूम बच्चों से कराया जाता हैं। कडवी सच्चाई यह भी है कि सरकार स्कूल में खाने का प्रलोभन देकर किसी को जबरदस्ती शिक्षित नही कर सकती।

इसके लिये कही किसी न किसी प्रकार से इन बच्चो के परिवार की आर्थिक स्थिति ज़िम्मेदार होती है. गौर करके देखिये आपके नुक्कड़ पर चाय की दूकान पर काम करने वाला छोटू कही न कही अपने परिवार का एक बड़ा ज़िम्मेदार होगा जो अपने परिवार के खर्च का ज़िम्मा कुछ या कभी कभी पूरा अपने कंधे पर उठाये है. यह भी हकीकत है कि अगर वह छोटू स्कूल जाने लगा तो उसके परिवार में भुखमरी की हालात पैदा हो सकती है. इसके ऊपर सरकारों को गंभीरता से सोचना चाहिये. गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों को अब कागजों से उतार कर कही न कही धरातल पर लाना होगा वरना आप नज़र उठा कर देख ले जिसने गरीबी उन्मूलन का ज़िम्मा उठाया उसमे से काफी ऐसे मिल जायेगे कि उनके आस पास की गरीबी नहीं हटी होगी हां वो अवश्य जल्दी से जल्दी अमीर बन गये होंगे. अब वक्त है कि इस विषय पर गंभीरता से अध्यन करने के बाद इस बार इसके लिये कागजों पर नहीं बल्कि ज़मीनी हकीकत में काम होना चाहिये.

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