अंग्रेज इंजीनियर की पहल पर बढ़ी ‘सरस्वती’ की खोज
कनिष्क गुप्ता
इलाहाबाद : उलार वैदिक और महाभारत कालीन जिस पौराणिक सरस्वती नदी के विलुप्त होने की मान्यता है, उसकी खोज की पहल 134 साल पुरानी है। सन 1874 मे ब्रिटिशइंजीनियर सीएफ ओल्डहैम राजस्थान के हनुमानगंज आए थे। वह उस समय सूखाग्रस्त था। यही उन्होने पहली बार सरस्वती की जलधाराओ को तलाशने की जरूरत बताई थी। इस संबंध मे उनका लेख ‘भारत के रेगिस्तान मे खोई हुई सरस्वती और अन्य नदियां’ बाद मे विस्तृत शोध का आधार बना। वेद और पुराणो मे वर्णित सरस्वती को लेकर कौतुहल नया नही है। पिछले पांच दशको से जलसंकट के चलते देश मे अनेक जलधाराओ की खोज की जरूरत महसूस हुई। इसके लिए जहां तहां सर्वे भी हुए।
राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआइ) हैदराबाद द्वारा वर्ष 2013 मे शोध शुरू किया गया। यह शोध पांच अलग-अलग राज्यो मे चल रहा है। कुछ समय पहले हरियाणा और राजस्थान मे भी विलुप्त सरस्वती की खोज के लिए सर्वे हुआ था। इलाहाबाद और कौशांबी जनपद के मध्य सरस्वती नदी की जलधाराएं थी अथवा नही, इस पर कौतूहल है। वैज्ञानिक भले ही अभी तक किसी नतीजे पर नही पहुंचे हो लेकिन माना जा रहा है कि संगम की धारा तक खोजबीन मे डाटा कलेक्शन की जांच के बाद चौकाने वाले निष्कर्ष मिल सकते है।
भूजल वैज्ञानिको को चार पांच दिनो की जांच पड़ताल मे बालू, मिट्टी के कण ही मिल सके है। केद्रीय भूजल बोर्ड इलाहाबाद के विभागाध्यक्ष डा.एमएन खान के मुताबिक जलधाराओ की खोज हो रही है। डाटा कलेक्शन की बाद मे जांच होगी। इसके बाद ही सबकुछ सामने आएगा। तीन से छह माह की अवधि मे किसी निष्कर्ष तक पहुंचा जा सकेगा। इलाहाबाद-कौशांबी जिलो मे एरियल सर्वे 15 फरवरी तक चलेगा। इनसेट पांचवे दिन दो सौ लाइन किमी मे सर्वे जासं, इलाहाबाद : विलुप्त हो रही जलधाराओ की खोज का सर्वे पांचवे दिन रविवार को दो सौ लाइन किलोमीटर मे हुआ।
वैज्ञानिको की टीम ने कौशांबी मे सराय अकिल के समीप दो अलग-अलग उड़ाने भरी। पहला चरण प्रात: 10 बजे और दूसरा दोपहर पौने दो बजे शुरू हुआ। स्काईटेम मशीन से डाटा जुटाए गए। इलाहाबाद और कौशांबी जिलो के 12 सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मे सर्वे होना है। अब तक पांच सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का सर्वे किया जा चुका है। इसमे हेलीकॉप्टर की भी मदद ली जा रही है। ट्राजियेट इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिस्टम से किए जा रहे सर्वे मे वैज्ञानिको को रुटीन के तथ्य ही मिले है। वैज्ञानिको की टीम तथ्यो को लेकर गोपनीयता बरत रही है। रिपोर्ट सीधे उच्चाधिकारियो को दी रही है। जानकारो का कहना है कि पीएमओ भी प्रगति रिपोर्ट देख रहा है।