वो गरीब था साहब, बेटी को होली पर नया कपडा नहीं दिला सकता था, बेटी ने दे दिया अपनी जान

तारिक आज़मी/ उर्वशी नेगी

बाँदा. गरीबी भी बहुत अजीब चीज़ होती है. एक गरीब अगर क़र्ज़ में हो तो दुनिया से ही रुखसत हो लेता है. सच माने तो कभी कभी गरीबी एक अभिशाप के तरह हमारे समाज पर असर करती है. आप कभी उस परिस्थिति को सोचे तो रोंगटे खड़े हो जायेगे जहा एक बाप अपनी किशोर बेटी को नया कपडा त्यौहार पर नहीं दिला सके और बेटी कपड़ो की जिद्द पर अपनी जान दे दे, आप सोचो क्या गुज़र जायेगी उस बाप पर. शायद वह इस दर्द से जिन्दा तो रहेगा मगर एक लाश की मानिंद ही रहेगा.

ऐसा ही कुछ गुज़रा होगा बांदा जिले में बबेरू थाना क्षेत्र के टोकाकला गाव के रहने वाले गरीब फूलचंद पर. पुरे गाव में आने वाली होली की खुशिया जहा बिखरी हुई है उसी बीच इस होली की ख़ुशी ने एक गरीब फूलचंद को इतना बड़ा गम दे दिया जिसको वह अपनी पूरी ज़िन्दगी नहीं भूल पायेगा. सिर्फ एक जोड़े नये कपडे की जिद्द के खातिर उसकी 14 साल की मासूम बेटी ने अपनी जान दे दिया. और वह मजबूर बाप कुछ न कर सका.

घटना के सम्बन्ध में प्राप्त जानकारी के अनुसार फूलचंद एक गरीब किसान है. उसकी 14 वर्षीय बेटी सुनीता इस साल होली पर नये कपडे की जिद्द पाल कर बैठी थी, गरीबी से मजबूर एक बाप बेटी की जिद्द नहीं पूरी कर पा रहा था. आखिर सुनीता ने आज खुद को घर के अन्दर बंद कर आग के हवाले कर दिया. बुरी तरह जलने से सुनीता की मौके पर ही मौत हो गई.

घटना की सुचना पाकर मौके पर पहुची बबेरू पुलिस लाश को कब्ज़े में लेकर पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम हेतु भेजने की समाचार लिखे जाने तक कार्यवाही कर रही थी. फूलचंद की गरीबी ने उसकी बेटी को मौत की नींद सुला दिया था. होली तो आयेगी मगर अब उस होली को मनाने के लिये उसकी बेटी पुराने कपड़ो में भी नहीं होगी. शायद इस होलिका की आग एक बाप के अरमानो पर मनो पानी फेर रही होगी या फिर शायद के बाप को इस होलिका की आग एक बाप के दिलो को आग लगा रही होगी. साहब होली तो फिर भी आयेगी…….

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