फ़िल्म ‘दंगल’ की “गीता फोगट” यानि ज़ायरा वसीम ने कहा बॉलीवुड को अलविदा, फ़िल्मी कैरियर को धर्म के खातिर छोड़ा
क़ुरान के महान और आलौकिक ज्ञान में मुझे शांति और संतोष मिला। वास्तव में दिल को सुकून तब ही मिलता है जब इंसान अपने ख़ालिक़ के बारे में, उसके गुणों, उसकी दया और उसके आदेशों के बारे में जानता है – जायरा वसीम
आफताब फारुकी
मुम्बई. जायरा वसीम, ये नाम शायद किसी पहचान का मोहताज नही है। फिल्म दंगल में गीता फोगट का किरदार निभा कर चर्चा में आई जायरा वसीम ने बलिवुड को अलविदा कह दिया है। उन्होंने अपने इस फैसले को अपने फेसबुक पेज पर एक लम्बी पोस्ट के माध्यम से जस्टिफाई किया है। उन्होंने कहा है कि मैं फिल्मो के चक्कर में अपने धर्म इस्लाम से भटक गई थी। अब मैं ये फैसला अल्लाह और इस्लाम के लिए ले रही हु।
ज़ायरा ने कहा है कि वो फ़िल्में में काम करने के दौरान अपने धर्म से भटक गई थीं। उन्होंने लिखा है कि पाँच साल पहले मैंने एक फ़ैसला किया था, जिसने हमेशा के लिए मेरा जीवन बदल दिया था। मैंने बॉलीवुड में क़दम रखा और इससे मेरे लिए अपार लोकप्रियता के दरवाज़े खुले। मैं जनता के ध्यान का केंद्र बनने लगी। मुझे क़ामयाबी की मिसाल की तरह पेश किया गया और अक्सर युवाओं के लिए रोल मॉडल बताया जाने लगा। हालांकि मैं कभी ऐसा नहीं करना चाहती थी और न ही ऐसा बनना चाहती थी। ख़ासकर क़ामयाबी और नाकामी को लेकर मेरे विचार ऐसे नहीं थे और इस बारे में तो मैंने अभी सोचना-समझना शुरू ही किया था।
5 years ago I made a decision that changed my life forever. As I stepped my foot in Bollywood, it opened doors of…
Slået op af Zaira Wasim i Lørdag den 29. juni 2019
उन्होंने लिखा है कि आज जब मैंने बॉलीवुड में पांच साल पूरे कर लिए हैं तब मैं ये बात स्वीकार करना चाहती हूं कि इस पहचान से यानी अपने काम को लेकर खुश नहीं हूं। लंबे समय से मैं ये महसूस कर रही हूं कि मैंने कुछ और बनने के लिए संघर्ष किया है। मैंने अब उन चीज़ों को खोजना और समझना शुरू किया है जिन चीज़ों के लिए मैंने अपना समय, प्रयास और भावनाएं समर्पित की हैं। इस नए लाइफ़स्टाइल को समझा तो मुझे अहसास हुआ कि भले ही मैं यहां पूरी तरह से फिट बैठती हूं, लेकिन मैं यहां के लिए नहीं बनीं हूं। इस क्षेत्र ने मुझे बहुत प्यार, सहयोग और तारीफ़ें दी हैं लेकिन ये मुझे गुमराही के रास्ते पर भी ले आया है। मैं ख़ामोशी से और अनजाने में अपने ईमान से बाहर निकल आई।
उन्होंने अपने पोस्ट में कहा है कि मैंने ऐसे माहौल में काम करना जारी रखा जिसने लगातार मेरे ईमान में दख़लअंदाज़ी की। मेरे धर्म के साथ मेरा रिश्ता ख़तरे में आ गया। मैं नज़रअंदाज़ करके आगे बढ़ती रही और अपने आप को आश्वस्त करती रही कि जो मैं कर रही हूं सही है और इसका मुझ पर फ़र्क़ नहीं पड़ रहा है। मैंने अपने जीवन से सारी बरकतें खो दीं। बरकत ऐसा शब्द है जिसके मायने सिर्फ़ ख़ुशी या आशीर्वाद तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये स्थिरता के विचार पर भी केंद्रित है और मैं इसे लेकर संघर्ष करती रही हूं। मैं लगातार संघर्ष कर रही थी कि मेरी आत्मा मेरे विचारों और स्वाभाविक समझ से मिलाप कर ले और मैं अपने ईमान की स्थिर तस्वीर बना लूं। लेकिन मैं इसमें बुरी तरह नाकाम रही। कोई एक बार नहीं बल्कि सैकड़ों बार। अपने फ़ैसले को मज़बूत करने के लिए मैंने जितनी भी कोशिशें कीं, उनके बावजूद मैं वही बनी रही जो मैं हूं और हमेशा अपने आप से ये कहती रही कि जल्द ख़ुद को बदल लूंगी। मैं लगातार टालती रही और अपनी आत्मा को इस विचार में फंसाकर छलती रही कि मैं जानती हूं कि जो मैं कर रही हूं वो सही नहीं नहीं लग रहा।
उन्होंने लिखा है कि लेकिन एक दिन जब सही समय आएगा तो मैं इस पर रोक लगा दूंगी। ऐसा करके मैं लगातार ख़ुद को कमज़ोर स्थिति में रखती, जहां मेरी शांति, मेरे ईमान और अल्लाह के साथ मेरे रिश्ते को नुक़सान पहुंचाने वाले माहौल का शिकार बनना आसान था। मैं चीज़ों को देखती रही और अपनी धारणाओं को ऐसे बदलते रही जैसे मैं चाहती थी। बिना ये समझे कि मूल बात ये है कि उन्हें ऐसे ही देखा जाए जैसी कि वो हैं। मैं बचकर भागने की कोशिशें करती और आख़िरकार बंद रास्ते पर पहुंच जाती। इस अंतहीन सिलसिले में कुछ था जो मैं खो रही थी और जो लगातार मुझे प्रताड़ित कर रहा था, जिसे न मैं समझ पा रही थी और न ही संतुष्ट हो पा रही थी। यह तब तक चला जब तक मैंने अपने दिल को अल्लाह के शब्दों से जोड़कर अपनी कमज़ोरियों से लड़ने और अपनी अज्ञानता को सही करने का फ़ैसला नहीं किया।
क़ुरान के महान और आलौकिक ज्ञान में मुझे शांति और संतोष मिला। वास्तव में दिल को सुकून तब ही मिलता है जब इंसान अपने ख़ालिक़ के बारे में, उसके गुणों, उसकी दया और उसके आदेशों के बारे में जानता है। मैंने अपनी स्वयं की आस्तिकता को महत्व देने के बजाय अपनी सहायता और मार्गदर्शन के लिए अल्लाह की दया पर और अधिक भरोसा करना शुरू कर किया। मैंने जाना कि मेरे धर्म के मूल सिद्धांतों के बारे में मेरा कम ज्ञान और कैसे पहले बदलाव लाने की मेरी असमर्थता, दरअसल दिली सुकून और ख़ुशी की जगह अपनी (दुनियावी और खोखली) इच्छाओं को बढ़ाने और संतुष्ट करने का नतीजा थी।
वही जायरा के इस फैसले पर तसलीमा नसरीन ने तंज़ कसते हुए कहा है कि यह एक बेवकूफाना हरकत और फैसला है. तसलीमा नसरीन ने ट्वीट कर लिखा है कि बॉलीवुड की प्रतिभाशाली और टैलेंटेड जायरा वसीम अब एक्टिंग करियर छोड़ना चाहती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके करियर ने अल्लाह में उनके विश्वास को खत्म कर दिया है. क्या अजीब निर्णय है. मुस्लिम समुदाय की कई प्रतिभाएं ऐसे ही बुर्के के अंधेरे में जाने को मजबूर हो रही हैं.’