गंगा-जमुनी तहजीब का मरकज़ ये मस्जिद जिसे आबाद रखे है हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग
तारिक आज़मी
लुधियाना:- नफरत के सौदागर जितने भी नफरतो के बीज बो ले। मगर हमारा मुल्क अमन और सुकून पसंद है। यहाँ हर मज़हब की सभी इज्ज़त करते है। जहा दिवाली और ईद एक साथ हम देशवासी मानते है। न अक्सरियत का जोर न अख्लियत का दबाव। यहाँ किसी भी दरगाह पर आप बृहस्पतिवार को खड़े हो जाये, आने वाले दर्शानाथियो में हिन्दू मुस्लिम दोनों ही दिखाई देंगे।
इसी तरह हमारे मुल्क में एक मस्जिद ऐसी भी है जहा आस पास गावो में कोई मुस्लिम समुदाय का घर नहीं है। मगर इस मस्जिद में आज भी सुबह शाम चिराग रोशन होता है। साफ़ सफाई भी रोज़ होती है। टूटने फूटने पर मरम्मत भी होती है। ये सब काम मुस्लिम सम्प्रदाय नही बल्कि गाव के रहने वाले हिन्दू सम्प्रदाय के लोग करते है।
जी हां हम बात कर रहे है पंजाब के लुधियाना जिले की। लुधियाना के जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम हैडोबेट में एक मस्जिद है। मुल्क के बटवारे के समय यह इलाका मुस्लिम बाहुल्य हुआ करता था। बटवारे का दंश इस ग्राम को लगा और गाव पूरा खाली हो गया और यहाँ के बाशिंदा पकिस्तान चले गये। आज़ादी के पहले यानी बटवारे के पहले इस मस्जिद में पांचो वक्त की नमाज़ भी होती थी और अज़ान भी होती थी। मगर बटवारे के बाद यहाँ से सभी मुस्लिम पाकिस्तान चले गये। इसके बाद पकिस्तान से सियालकोट स्थित मीराख्पुर से आकर यहाँ अन्य धर्मो के लोगो ने आवास बनाये।
अब इस गाव में लगभग 25 सौ की आबादी है। मगर इसमें कोई भी मुस्लिम सम्प्रदाय के घर नही है। फिर भी मस्जिद पूरी तरह आबाद है। गांव के लोगों ने सद्भावना की अनूठी मिसाल पेश की है। कभी धर्म की दीवार बनने नहीं दी। इस मस्जिद को हटाने या गिराने का विचार दूर-दूर तक नहीं आया। मस्जिद में चिराग रोशन करने से लेकर मरम्मत भी कराते आ रहे हैं। कुछ दिन पहले नया दरवाजा भी लगाया है और जल्द नए सिरे से मरम्मत का काम शुरू होगा।
यहाँ के रहने वाले प्रेम सिंह चार साल से मस्जिद की सेवा कर रहे हैं। अगर उन्हें किसी काम से गांव के बाहर जाना होता है तो यह जिम्मेदारी उनके पुत्र गगनदीप संभालते हैं। गांव की आटा चक्की पर नौकरी करने वाले प्रेम सिंह बताते हैं कि सुबह शाम मस्जिद में चिराग जलाने और सफाई से संतुष्टि मिलती है। जब से यह शुरू किया है गांव में खुशहाली है। जुमेरात को मस्जिद में बने मजार पर चिराग जलाने पूरा गांव उमड़ पड़ता है। ताज्जुब की बात है कि किसी को नहीं पता कि यह मजार किसका है? मगर, सभी श्रधा से भर मजार पर शीश नवाते हैं। हर वर्ष जर्दा (चावल से बनी एक मीठी दिश) का लंगर लगता है।
ग्रामीणों ने बताया कि हम लोग यहां मन्नत मांगते हैं और पूरी होने पर चादर चढ़ाने की रस्म अदा करते हैं। यहां शीश झुकाकर कर ही हम कहीं बाहर निकलते हैं। पाकिस्तान के मीरखपुर से आकर बसे सुरजीत सिंह का कहना है कि बंटवारे के समय यहां के मुस्लिम परिवार पाकिस्तान चले गए और वहां से कुछ किसान परिवार यहां आकर बस गए। समय-समय पर मलेरकोटला से मुस्लिम समाज के लोग यहां आकर इबादत करते हैं।
ग्रामसभा के पूर्व सरपंच जसविंदर सिंह बताते हैं कि देश के बंटवारे और मुस्लिम भाइयों के जाने के बाद भी मस्जिद के प्रति यहां के लोगों की श्रद्धा कम नहीं हुई है बल्कि जब भी मौका मिलता है तो वह इस मस्जिद मे माथा टेकने जरूर चले जाते हैं। इस मस्जिद से हमारे ग्राम में खुशहाली है ऐसा हमारे ग्राम में अधिकतर लोगो का मानना है। हम इस मस्जिद को आस्था के नज़र से देखते है। कभी मरम्मत की ज़रूरत पड़ती है तो करवाते है। अभी एक दरवाज़ा जर्जर हो चूका था। हम लोगो ने मिलकर इस दरवाज़े को बदलवाया है। मस्जिद में सुबह शाम चिराग जलाया जाता है।
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