मैनुअल स्कैवेंजर्स – शुरू हुई 2007 की याचिका पर सुनवाई, कहा अदालत ने, अगर लोग लगातार मर रहे हैं, तो किसी को तो जेल जाना पड़ेगा
तारिक आज़मी
नई दिल्ली: हाल ही में केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया कि मैनुअल स्कैवेंजर्स को काम पर रखने के लिए किसी भी व्यक्ति को दोषी ठहराने या सजा देने के संबंध में कोई जानकारी नहीं है। अब इसको मौजूदा हालात में देखा जाए तो लगभग हर शहर में आपको मैनुअल स्कैवेंजर्स मिल जायेगे। जी हां, वो आपके मुहल्लों में सीवर की हाथो से सफाई करता शख्स भी एक इंसान है और उसके जैसे काम करने वालो को ही मैनुअल स्कैवेंजर्स कहते है। वर्ष 2013 में इसके लिए विशेष कानून बनाकर ऐसे रोज़गार वालो के पुर्नार्वास का मसौदा तैयार हुआ था। मगर हकीकी ज़िन्दगी के ज़मीन पर वह मसौदा काम नही कर सका और कागजों पर घोड़े जमकर दौड़ रहे है।
नौकरी पर न सही ऐसे कामगारों जिन्हें आप मैनुअल स्कैवेंजर्स की श्रेणी में रख सकते है के काम को हर शहर का नगर निगम प्रशासन ठेकेदारो के माध्यम से करवा रहा है। दिलता तो कागजों पर सीवर के साफ़ सफाई को मशीन द्वारा करवाने का ठेका ही है। मगर हकीकी ज़मीन पर ये ठेकेदार सामंती प्रथा के तरह मैनुअल स्कैवेंजर्स से ये काम करवा कर मोटी मलाई खाते है। हर शहर में ही ऐसी घटनाये अक्सर नज़र में आती है कि फला सीवर की सफाई करते हुवे सफाई कर्मी की मौत हुई। मामले में फिर क्या होता है इसकी जानकारी न किसी को होती है और न हुई है। हम रोज़मर्रा के मामूर में ऐसे खो जाते है जैसे कभी कुछ हुआ ही नही।
अब इस तरह के मामलो में अदालत सख्त होती दिखाई दे रही है। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली जल बोर्ड, नई दिल्ली नगर निगम और दिल्ली नगर निगम समेत 10 नगर निकायों का आदेश दिया है कि वे हलफनामा दायर कर बताएं कि वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मैनुअल स्कैवेंजर्स (मैला ढोने वाले लोग) को नौकरी पर रखते हैं या नहीं। लाइव लॉ के मुताबिक, कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर लोग लगातार मर रहे हैं, तो किसी को तो जेल जाना पड़ेगा। कोर्ट ‘नेशनल कैंपेन फॉर डिग्निटी एंड राइट्स ऑफ सीवरेज एंड अलाइड वर्कर्स’ द्वारा साल 2007 में दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम 2013 बनने के बाद कॉन्ट्रैक्टर के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से मैनुअल स्कैवेंजर्स को काम पर रखने के मामले बढ़ गए हैं।
साल 2013 में ये कानून आने के बाद से मैनुअल स्कैवेंजिंग यानी कि मैला उठाने के काम को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया था। हालांकि आज भी ये प्रथा समाज में मौजूद है। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि सभी नगर निकाय मशीन इस्तेमाल करने के बजाय मैनुअल स्कैवेंजर्स से काम करा रहे हैं। सेप्टिंक टैंक साफ करने, सीवर सफाई जैसे कामों के लिए मैनुअल स्कैवेंजर्स को रखा जाता है। जबकि ऐसा करना पूरी तरह से गैरकानूनी है।