दिन भर चली चर्चा के बाद देर रात पास हुआ नागरिकता (संशोधन) बिल, पक्ष में पड़े 311 मत तो विरोध में मात्र 80, कांग्रेस ने किया बिल का विरोध

आफताब फारुकी

नई दिल्ली: बहुचर्चित नागरिकता संशोधन बिल को अंततः दिन भर चली बहस के बाद देर रात लोकसभा द्वारा पास कर दिया गया। बिल के पक्ष में 311, जबकि विरोध में 80 वोट पड़े। इस दौरान जहा ओवैसी ने बिल की प्रति को फाड़ दिया वही कांग्रेस ने इसका जमकर विरोध किया। शिवसेना ने बिल के पक्ष में मतदान किया।

इससे पहले बिल को लेकर सदन में दिन भर चली चर्चा के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने सभी सदस्यों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि मैंने पहले ही कहा था कि ये बिल लाखों- करोड़ों शरणार्थियों को यातनापूर्ण जीवन से मुक्ति दिलाने का जरिया बनने जा रहा है। इस बिल के माध्यम से उन शरणार्थियों को नागरिकता देने का काम होगा।

उन्होंने कहा कि सदस्यों ने आर्टिकल-14 का हवाला देते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया। मैं कहना चाहता हूं कि किसी भी तरह से ये बिल गैर संवैधानिक नहीं है न ही ये आर्टिकल-14 का उल्लंघन करता है। अमित शाह ने कहा कि इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर न होता तो मुझे बिल लाने की जरूरत ही नहीं होती, सदन को ये स्वीकार करना होगा कि धर्म के आधार पर विभाजन हुआ है। जिस हिस्से में ज्यादा मुस्लिम रहते थे वो पाकिस्तान बना और दूसरा हिस्सा भारत बना।

गृह मंत्री ने कहा कि नेहरू-लियाकत समझौते में भारत और पाकिस्तान ने अपने-अपने अल्पसंख्यकों का ध्यान रखने का करार किया, लेकिन पाकिस्तान ने इस करार का पूरा पालन नहीं किया। उन्होंने कहा कि 3 देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के संविधान में इस्लाम को राज्य धर्म बताया है। वहां अल्पसंख्यकों को न्याय मिलने की संभावना लगभग खत्म हो जाती है। 1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23% थी। 2011 में ये 3।7% पर आ गई। बांग्लादेश में 1947 में अल्पसंख्यकों की आबादी 22% थी जो 2011 में 7।8 % हो गई। आखिर कहां गए ये लोग?

उन्होंने कहा कि जो लोग विरोध करते हैं उन्हें मैं पूछना चाहता हूं कि अल्पसंख्यकों का क्या दोष है कि वो इस तरह क्षीण किए गये? 1951 में भारत में मुस्लिम 9।8 प्रतिशत थे। आज 14।23 प्रतिशत हैं, हमने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया। आगे भी किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। ये कानून किसी एक धर्म के लोगों के लिए नहीं लाया गया है। ये सभी प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए है। इसलिए इसमें आर्टिकल-14 का उल्लंघन नहीं होता।

क्या है बिल में और क्यों है बिल पर विपक्ष को एतराज़

नागरिकता (संशोधन) विधेयक का उद्देश्य छह समुदायों – हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध तथा पारसी लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है। बिल के ज़रिये मौजूदा कानूनों में संशोधन किया जाएगा, ताकि चुनिंदा वर्गों के गैरकानूनी प्रवासियों को छूट प्रदान की जा सके। चूंकि इस विधेयक में मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया है, इसलिए विपक्ष ने बिल को भारतीय संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए उसकी आलोचना की है।
कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन विधेयक को असंवैधानिक एवं संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया और कहा कि इसमें न केवल धर्म के आधार पर भेदभाव किया गया है, बल्कि यह सामाजिक परंपरा और अंतरराष्ट्रीय संधि के भी खिलाफ है। कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा, ‘यह विधेयक असंवैधानिक है, संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। जिन आदर्शों को लेकर बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने संविधान की रचना की थी, यह उसके भी खिलाफ है।’

उन्होंने कहा कि नागरिकता कानून में आठ बार संशोधन किया गया है, लेकिन जितनी उत्तेजना इस बार है, उतनी कभी नहीं थी। इसका कारण यह है कि यह अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 और 26 के खिलाफ है। मनीष तिवारी ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 किसी भी व्यक्ति को भारत के कानून के समक्ष बराबरी की नजर से देखने की बात कहता है, लेकिन यह विधेयक बराबरी के सिद्धांत के खिलाफ है।

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