जाने कैसे करे कन्या पूजा और क्या है इसका महत्व
बापू नंदन मिश्रा
व्रत के दौरान अष्टमी यानी कि व्रत के आठवें दिन नौ कन्याओं का पूजन करने का विधान है। यही नहीं जो लोग पूरे नौ दिनों तक व्रत नहीं रख पाते हैं, वे भी अष्टमी या दुर्गाष्टमी का व्रत रखते हैं और कन्या पूजा भी करते हैं। वहीं दूसरी तरफ बंगाल, ओडिशा, त्रिपुरा और मणिपुर में दुर्गा पूजा में अष्टमी का विशेष महत्व है। पंडालों में इस दिन दुर्गा की नौ शक्तियों का आह्वान किया जाता है।
कुमारी पूजा या कन्या पूजन नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। कुमारी पूजा को कन्या पूजा तथा कुमारिका पूजा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि पर कन्या पूजन करने से मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देकर उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करती हैं। शास्त्रों के अनुसार, कन्या पूजन करने से सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कन्या पूजन से पहले हवन करने का भी प्रावधान है। हवन करने और कन्या पूजन करने से मां भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि बरसाती हैं।
धार्मिक ग्रन्थों में नवरात्रि के सभी नौ दिनों में कुमारी पूजा का सुझाव दिया गया है। नवरात्रि के प्रथम दिवस पर मात्र एक कन्या की पूजा की जानी चाहिये तथा नौ दिनों के अनुरूप प्रत्येक दिवस एक-एक कन्या की सँख्या बढ़ानी चाहिये। हालाँकि, अधिकांश भक्तगण अष्टमी पूजा अथवा नवमी पूजा के अवसर पर एक ही दिन कुमारी पूजा करना पसन्द करते हैं। कुमारी पूजा के दिन का चयन अपने कुल व परिवार की परम्परा के अनुसार किया जाना चाहिए।
नवरात्रि या नवरात्र के आठवें दिन अष्टमी मनाई जाती है। इस बार अष्टमी 23 अक्टूबर को है। अष्टमी की तिथि 23 अक्टूबर 2020 को सुबह 06 बजकर 57 मिनट से 24 अक्टूबर 2020 को सुबह 06 बजकर 58 मिनट तक है।
अष्टमी के दिन मां दुर्गा के आठवें रूप यानी कि महागौरी का पूजन किया जाता है। सुबह महागौरी की पूजा के बाद घर में नौ कन्याओं और एक बालक को घर पर आमंत्रित किया जाता है। सभी कन्याओं और बालक की पूजा करने के बाद उन्हें हल्वा, पूरी और चने का भोग दिया जाता है। इसके अलावा उन्हें भेंट और उपहार देकर विदा किया जाता है। वहीं, बंगाली परिवारों में दुर्गा अष्टमी का विशेष महत्व है। इस दिन लोग सुबह-सवेरे नहा-धोकर नए कपड़े पहनकर पुष्पांजलि के लिए पंडाल जाते हैं। जब ढेर सारे लोग मां दुर्गा पर पुष्प वर्षा करते हैं तो वह नजारा देखने लायक होता है। महा आसन और षोडशोपचार पूजा के बाद दोपहर में लोग अष्टमी भोग के लिए इकट्ठा होते हैं। इस भोग के तहत भक्तों में दाल, चावल, पनीर, बैंगन भाजा, पापड़, टमाटर की चटनी, राजभोग और खीर का प्रसाद बांटा जाता है। पूजा पंडालों में इस दिन अस्त्र पूजा और संधि पूजा भी होती है। शाम के समय महाआरती होती है और कई रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि कन्या पूजन सूर्योदय के बाद और सुबह 9 बजे से पहले कर देना चाहिए। इससे दौरान कन्या पूजन करने से मां प्रसन्न होती हैं और भक्तों को शुभ फल की प्राप्ति होती है।