बोल के लब आज़ाद है तेरे – जाने कैसे, कब और कहा से हुआ है भाप के इंजन का अविष्कार
तारिक़ आज़मी
आज एक बहुत बड़े ज्ञानी ने एक बड़ा ज्ञान व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी पर सांझा कर डाला कि इंजन का अविष्कार वास्को डिगामा ने बैगन का भुर्ता बनाते वक्त कर डाला था। आप इस शब्द को पढ़ कर तीन बार जोर जोर से हंस सकते है। वैसे मुझको भी पता है कि अगर आपने पढाई करके डिग्री लिया होगा तो आप अपनी हंसी रोक नही पा रहे होंगे। मगर क्या करियेगा साहब, व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी है। कुछ भी कभी भी ज्ञान आपको मिल सकता है। आपकी सोच से परे ऐसे ऐसे ज्ञान आपको मिलेगे जिससे आप परेशान हो जायेगे। वैसे कभी कभी हँसना भी ज़रूरी है तो आप हंस सकते है।
इस ज्ञान को पूर्ण करने के लिए मैंने आज खुद के पढ़े हुवे को संग्रहित कर डाला और एक आखिर पूरा ये बताने का आपको निर्णय लिया कि आखिर ये जो इंजन ट्रेन को लेकर चलता है उसका आविष्कार कहा से शुरू हुआ। क्या वाकई में वास्को डीगामा ने बैगन का भुर्ता बनाया था जिससे इस इंजन का अविष्कार हुआ। तो आइये इंजन के सम्बन्ध में जानकारी को सांझा करता हु। वैसे आप इस जानकारी के लिए गूगल बाबा का भी सहारा ले सकते है। बढ़िया बाबा है, भुत वर्तमान सब बता देते है बस चंद शब्द आप उनके पास लिखे या फिर जिनको लिखना नही आता है वह बोल भी सकते है उनके कानो में। गूगल बाबा ने ये सुविधा भी प्रदान कर डाली है।
तो इंजन की बात पर आते है। वैसे तो भाप के इंजन का इतिहास बहुत पुराना है। थोडा बहुत नही बल्कि लगभग कोई दो हजार वर्ष पुराना। किन्तु पहले की युक्तियाँ शक्ति उत्पादन की दृष्टि से व्यावहारिक नहीं थीं। बाद में इनकी डिजाइन में बहुत सुधार हुआ जिससे ये औद्योगिक क्रान्ति के समय यांत्रिक शक्ति के प्रमुख स्रोत बनकर उभरे। यद्यपि अब भाप से चलने वाली रेलगाड़ियाँ एवं अन्य मशीने कालकवलित हो चुकीं हैं। किन्तु पूरे संसार की विद्युत-शक्ति का लगभग आधी शक्ति आज भी वाष्प टर्बाइनों की सहायता से उत्पन्न किया जा रहा है।
भाप इंजन बनाने के यत्न का सबसे प्राचीन उल्लेख अलेक्जैंड्रिया के हीरो के लेखों में मिलता है। हीरो उस विख्यात अलैक्जैंड्रीय संप्रदाय जो 300 ई०पू० से 400 ई०पु० schwör bei Koran का सदस्य था, जिसमें टोलेमी, यूक्लिड, इरेटोस्थनीज जैसे तत्कालीन विज्ञान के महारथी सम्मिलित थे। हीरो ने अपने लेख में एक ऐसी युक्ति का वर्णन किया है। जिसमें एक बंद बाक्स में वायु गर्म की जाती थी, और एक नली के मार्ग से नीचे पानी भरे बर्तन की ओर फैलती थी। इसमें बर्तन का पानी दूसरी नली में चढ़ता था और एक नकली फुहारा बन जाता था। फिर इसके बाद इस संबंध में कहीं कोई विवरण नहीं मिलता है।
1606 ई। में यानी हीरो से लगभग 2,000 वर्ष बाद, नेपोलियन अकादमी के संस्थापक और तत्कालीन यूरोप में विज्ञान के अग्रणी नेता मार्क्सेव देला पोर्ता ने हीरो के फुहारे वाले प्रयोग में हवा की जगह भाप का उपयोग किया। उन्होंने यह भी सुझाया कि किसी बर्तन को पानी से भरने के लिए यदि उसे एक नली द्वारा पानी से किसी तालाब से संबंधित कर दिया जाय और तब उस बर्तन में भाप भरकर फिर उसे ऊपर से पानी के द्वारा ठंडा किया जाय तो भीतर की भाप संघनित होकर निर्वात उत्पन्न करेगी और उसकी जगह तालाब से पानी बर्तन में भर जाएगा।
1698 ई। में मार्क्सेव देला पोर्ता के इस सुझाव का उपयोग टामस सेवरी ने पानी चढ़ाने की एक मशीन में किया। इस प्रकार सेवरी पहला व्यक्ति था जिसने व्यावसायिक उपयोग का एक भाप इंजन बनाया, जिसका उपयोग खदानों में से पानी खीचने और कुओं में से पानी निकालने में हुआ।
सेवरी के इंजन के आविष्कार के बाद भाप इंजन का अगला चरण न्यूकोमेन इंजन का आविष्कार था। इसका आविष्कार टामस न्यूकोमेन (1663-1729 ई।) ने किया। इस इंजन का खदानों और कुओं से पानी निकालने में 50 वर्षों तक उपयोग होता रहा। इसका ऐतिहासिक महत्व भी है, क्योंकि इसी से जेम्स वाट के आविष्कारों का मार्ग खुला। इस इंजन में पहली बार सिलिंडर और पिस्टन का उपयोग किया गया जो अब तक भाप इंजनों में प्रयुक्त किए जाते हैं। न्यूकामेन इंजन में भाप केवल निर्वात उत्पन्न करने के काम आती है। पिस्टन उठाने का काम, जिससे पानी चढ़ता है, वायुमंडलीय दाब करता है। लेकिन भाप को केवल संघनित करने में बहुत ईंधन व्यर्थ खर्च होता है। जेम्स वाट का महत्वपूर्ण कार्य भाप इंजन को सर्वश्रेष्ठ रूप देना है जिससे मनुष्य की शक्ति दस गुनी बढ़ गई और व्यावसायिक क्षेत्र में बृहद् परिवर्तन हो गया।
तो ये है भाप के इंजन का असली इतिहास। इस इतिहास में कही भी मुझको बैगन का भुर्ता बनाने वाली बात नही मिली। हां शायद हीरो से लेकर जेम्स व्हाट ने किसी व्हाटसएप यूनिवर्सिटी के ज्ञानी को आकर सपने में या फिर कान में बताई होगी कि अपने आविष्कार के दरमियान मैंने बैगन का भुर्ता बनाया था तो बात एक अलग है। वैसे आप सभी इस जानकारी से शायद भली भांति परिचित होंगे। हमारे कहने का उद्देश्य मात्र इतना है कि थोडा समय अपने बच्चो के साथ भी व्यतीत करे। उनके साथ खेले। उनके पढ़ाई पर डिस्कस करे। उनकी समस्याओं को गंभीरता से समझे और साथ ही साथ उनको पढ़ाई में सहयोग करे।