पत्रकारिता बनाम कफ़न चोरी
तारिक़ आज़मी की कलम के शोले-
बड़े गुमान रहते है लोगो को की उनकी कलम आग उगलती है। हो सकता है उनके कलम से निकले शब्द चिंगारी फेकते हो मगर शायद ऐसे लोगो को ख्याल नहीं कि आज भी इस कलम के सिपाही की कलम शोले उगलती है। कलमकार की कलम अगर न चले तो फिर वो कलमकार किस काम का। मेरे बड़े भाई सामान मित्र है पुनीत निगम भाई। मैं उनका अहसानमंद हु कि आज मुझको उन्होंने शोहरत की एक बुलंदी का रास्ता दिखाया और उंगली पकड़ कर चलाया। उनकी सलाह मानी और शांति से सिर्फ अपने काम और उनके आशीर्वाद से प्राप्त खुद के संस्थान का नाम बढ़ाने में लग गया। मगर अहसास है कि कमबख्त मानता ही नहीं। एक अजीब कसमसाहट सी हर वक्त रहती थी। सोच बड़ी बलवान होती है। तो इसी सोच का सहारा था कि दिलो दिमाग में आया कही कलम में जंग तो नहीं लग गया है। अक्सर हल्का फुल्का लिखकर चेक किया। मगर क्या बताऊ “बन्दर जितना बुड्ढा हो जाय गुलाटी मारना तो छोड़ता नहीं”।
बस इस बात का ख्याल आते ही उठ गई कलम। धन्यवाद देता हु उन मित्र का जिन्होंने इशारे इशारे में कह डाला कि उनकी कलम आग उगलती है। अब तो बन्दर को गुलाटी मारने का ज़बरदस्त मौका मिल गया और साबित करना है कि भाई शोले तो आज भी निकलते है इस कलम के सिपाही की कलम से।
भैया पत्रकारिता एक आर्ट है एक कला है जिसकी हर कलाकार को पूजा करनी चाहिए। मगर पूजा के साथ पेट पूजा भी बहुत ज़रूरी है। अरे तो क्या हुवा कि जिसके खिलाफ हम दहाड कर लिखे कि वो अमुक समाज विरोधी अपराध का कार्य करके पैसा कमाता है उसी के घर बैठ कर चाय नाश्ता विधिवत कर ले। भाई चाय नाश्ता हो सकता है कि अमुक समाज विरोधी पाप की कमाई न होकर किसी मंदिर का प्रसाद हो। भाई खाना पीना तो चाहिए। आदमी पैदा क्यों होता है आखिर ? खाने के लिए ही न? फिर खाने से क्या बैर। क्या देखना कि नाश्ते का पैसा उसने कौन सा कार्य करके कमाया है। भाई चाय तो चाय है पीने में क्या हर्ज है। वो कोई पुजारी की हो या फिर किसी समाज विरोधी की। हमने तो यह लिखा है न कि उसका कार्य समाज विरोधी है। उसके कार्य में साथ देने वाला समाज विरोधी होगा। हमने ये तो मना नहीं किया कभी कि उसकी इस पाप की कमाई की चाय न पियो, नाश्ता न करो। भाई देखो खाओ पियो और ऐश करो। पता नहीं अगला जन्म कहा हो कैसा हो कही चीटी हो गए तो फिर चीनी ढूंढते फिरेंगे, कहा चाय मिलना है फिर।
अब जब बात निकली है तो ये भी बता दू कि अगर आप पत्रकार है और आपके परिवार में कोई शादी है तो आप अपने सगे संबंधियो को दावत दे या न दे सबसे पहले एक बड़ी सी गाड़ी अपने किसी दोस्त की चिरौरी करके उधार ले। फिर अपने क्षेत्रीय थानेदार को सबसे पहले दावत पर बुलाये। फिर उसके बाद क्षेत्राधिकारी के बगल में बैठ कर कुछ देर चापलूसी करे। फिर कार्ड दे। एक घंटे तक लगातार बैठियेगा और खूब चापलूसी कीजियेगा अन्यथा वो नाराज़ होकर आयेगे नहीं। अगर वो न आये तो फिर आपकी इज़्ज़त घट जायेगी, फिर कमाई भी तो उनके ज़रिये आ रही है। अब्बा को बुलाओ न बुलाओ पुलिस वालो को सबको बुलाओ, ध्यान रखे आपके फूफा जी भले छूट जाय मगर आप पुलिस वालो को अवश्य बुलाये अन्यथा शादी नहीं होगी। फेरे तो उनकी उपस्थिति में ही पड़ेंगे। दावत देने का सही समय होता है किसी बैठक के समय पहुच जाओ। दरोगा पैर भी न दबवायेगे और आयेगे भी ज़रूर से। हा ध्यान रखियेगा, ज़रूरत पड़ने पर वही बिछा ले मगर दावत देकर ही वापस आये।
एक और रास्ता बताता हु। किसी की जवान औलाद की हत्या हो जाय। वो मर जाय, कही पुलिस जांच से संतुष्ट न हो, आपकी सहायता चाहता हो। आपके पास खाने पीने का ज़बरदस्त रास्ता है ये। एकदम फिकर न कीजिये कि उस इंसान की जवान औलाद मर गई है। एकदम न सोचिये कि उसकी कमर टूट गई होगी जवान औलाद की लाश अपने कंधे पर उठाने से। आप तत्काल पहुँचे उसके घर। रास्ते में अपनी गाडी किसी पिट्रोल पम्प पर ज़रूर रोके। गाडी में 500 का तेल डालने का आर्डर दे दे। पैसे तो वो देगा ही तेल के। आपने माँगा भी नहीं और तेल का जुगाड़ कई दिनों का हो गया। फिर आप पहुँचे उसके घर और घर पहुचने के बाद चाप के पहले नाश्ता पानी कीजिये। दमदार नाश्ता हो कि कुछ छूटे न। फिर उठाइये माइक आईडी। और दनादन कुछ सवाल पूछ ले। समाचार की ऐसी की तैसी। फिर वहा से धीरे से सरक ले। अब आपको समाज कफ़न खाने वाला कहे मगर आप चिंता एकदम न करे। आखिर खाया पिया साथ जायेगा।
भाई ये ही असली खाने का फण्डा। आप इसका पूरा उपयोग कीजिये। खूब खाइये। पेट भर कर खाओ मन भर खाओ। दुनिया जो कहे कहने दो आप खाने का ध्यान रखो बस।