भाजपा का जिला मंत्री नारायण भदौरिया पार्टी से बर्खास्त, आखिर नैतिकता की बात करने वाले भाजपाई क्या नहीं जानते थे नारायण का अपराधिक इतिहास ?
तारिक़ आज़मी
कानपुर। कानपुर के दुर्दांत पेशेवर अपराधी मनोज सिंह को भगाने के मामले में नारायण सिंह भदौरिया को भले पार्टी ने पहले पद से उसके बात पार्टी की सदस्यता से निष्काषित कर दिया है। मगर अब सवाल नैतिकता की बात करने वाली भाजपा पर उठ रहे है। अपराधियों से दरकिनार रहने की बात करने वाली भाजपा के जिला पदाधिकारी का बड़ा अपराधिक इतिहास सामने आने के बाद पार्टी ने अपनी छवि बचाने के लिए भले नारायण सिंह भदौरिया को पार्टी से सस्पेंड कर दिया है। मगर नारायण ने पार्टी के नाम और पद का जमकर फायदा उठाया है।
इसको सत्ता की हनक नही तो और क्या कहेगे कि एक छोटे अपराधी के भी पीछे पुलिस पड़ जाती है और उसके घर की मिटटी खोद डालती है। वही नारायण सिंह भदौरिया पर वर्ष 2017 में लखनऊ की एक अदालत ने उसके घर का कुर्की आर्डर जारी किया है। लखनऊ पुलिस के लिए 2017 से वांटेड चल रहा नारायण सिंह भदौरिया खुलेआम घूमता टहलता था मगर लखनऊ पुलिस उसको गिरफ्तार नहीं कर पाई, या फिर कहे गिरफ़्तारी के लिए सत्ता से विरोध झेल पाने की हिम्मत नही थी। शायद यही कारण था कि वर्ष 2017 में अदालत से कुर्की का आदेश लेने का वक्त लखनऊ पुलिस के पास था मगर उसकी गिरफ़्तारी के लिए कोशिश नहीं हुई। कुर्की करना तो बहुत दूर की बात है।
अब खुद ही सोच सकते है कि भले नैतिकता की बात कहते हुवे जिले में पार्टी के ज़िम्मेदारी इस मामले में संज्ञान न होने की बात कहे। मगर एक बड़ा अपराधिक इतिहास नारायण सिंह भदौरिया का रहा है उसको कैसे इनकार किया जा सकता है। नैतिकता और संयम की दुहाई देने वाली पार्टी में आपराधिक इतिहास होने के बाद भी नारायण 13 साल से जिला स्तर से लेकर क्षेत्रीय इकाई में अहम पदों पर बना रहा। जबकि, उस पर आधा दर्जन से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं।
भले ही अब नारायण की करतूत सामने आने के बाद संगठन के बड़े नेता उससे कन्नी काटने में लगे हैं। ताजा मामले में भी नारायण पर पार्टी की मेहरबानी खूब नजर आई। ऐसे संगीन मामले में पुलिस की ओर से नामजद रिपोर्ट दर्ज करने करने में भी पुलिस को काफी सोचना पड़ा था। इसके बाद मीडिया में उछले नाम और वायरल हुवे वीडियो के बाद पुलिस ने आखिर नारायण को नामज़द किया था। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार नारायण पर पहली रिपोर्ट वर्ष 2006 में किदवईनगर थाने में दर्ज हुई थी। इसके बाद ही वह पार्टी में शामिल हुआ। तब से अब तक संगठन के पदाधिकारी उसे बड़ा नेता बनाते रहे। वर्ष 2017 से वह लखनऊ पुलिस के लिए वांछित अपराधियों में शामिल है। लखनऊ की कोर्ट उसके घर को कुर्क करने का आदेश भी दे चुकी है, लेकिन सत्ता के संरक्षण में वह हर बार बचता आया।
अब अगर कोई इसके बाद भी कहे कि पार्टी में जिले के आला अधिकारी इस अपराधिक इतिहास से बेखबर थे तो यह गले से नीचे उतरने की बात नही हो सकती है। आखिर कैसे ये मुमकिन है कि पार्टी के आला पदाधिकारी अपने जिला मंत्री के आपराधिक इतिहास से अनजान हों। मगर हर बार अहम पद देते समय इसे नजरअंदाज किया गया। बताते हैं कि पार्टी के ही एक बड़े पदाधिकारी का संरक्षण प्राप्त होने के बाद से पार्टी में सिर्फ नारायण नारायण ही था। शायद इसी वजह से 13 साल में एक बार भी नारायण सिंह भदौरिया का अपराध नजर नहीं आए। वो तो शायद कहते है विनाश काले विपरीत बुद्धि, तभी नारायण ने इस बड़े अपराधी को पुलिस पकड़ से छुडवा कर फरार करवा दिया। अब देखना ये होगा कि भले पार्टी ने नारायण को निकला दिया है मगर क्या उसके बड़े पदाधिकारी नारायण सिंह भदौरिया को बचाने का प्रयास नही करेगे, क्योकि इस प्रकार के केसेस में इसी प्रदेश में और कानपुर जनपद में भी युपीपीए और रासुका जैसे अपराध आरोपियों पर लगे है।