सपा के पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा पर गर्म हुई सियासत, क्या ये बड़ा मुद्दा 30 लाख मतदाताओ को रिझा पायेगा ?
तारिक़ आज़मी
चुनावी घोषणा होना और उसका पूरा होना दो अलग अलग बात अभी तक सियासत में देखने को मिली है। कई ऐसे सियासत में एलान हुवे है जिसको पूरा नही किया गया। वह भले रोज़गार को लेकर हो, या फिर आम जनजीवन को लेकर हो। मगर इस बार विधानसभा चुनावों के दरमियान सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के द्वारा सरकार बनने पर पुरानी पेंशन बहाली का वायदा करके एक ही बार में 30 लाख मतदाताओं को प्रभावित करने वाला मुद्दा उठा दिया है।
ऐसा नही है कि पहली बार किसी सियासी दल ने ऐसे मुद्दे उठाये है। इसके पहले तमिलनाडु में डीएमके ने भी चुनाव से पहले पुरानी पेंशन लागू करने का वादा किया था लेकिन सरकार बनने के बाद धन की कमी बताकर मामला केंद्र के हवाले कर दिया गया। जबकि पश्चिम बंगाल में पुरानी पेंशन इसलिए लागू है कि क्योंकि वहां 2020 तक पांचवां वेतन आयोग लागू रहा। छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद वहां भी स्थिति बदल गई।
पुरानी पेशन बहाली की मांग काफी समय से चल रही है। इसके लिए कर्मचारी संगठन अटेवा की ओर से राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाया गया। कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी पेंशनर्स अधिकार मंच का भी गठन किया गया है। इनके अलावा शिक्षकों और कर्मचारियों के अलग-अलग संगठनों की ओर से भी आंदोलन चला जो आज भी जारी है। ये भी सच है कि प्रदेश में अभी तक राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे से दूरी बना रखी थी। अखिलेश यादव की इस घोषणा से कर्मचारियों और संगठनो को एक उम्मीद जगी है। हालांकि मुलायम सिंह यादव के समय में ही एनपीएस लागू हुआ था। ऐसे में कई तरह के सवाल हैं, लेकिन अब शिक्षकों और कर्मचारियों का दबाव बढ़ गया है। इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि सपा वादा पूरा करेगी।
कुछ कर्मचारी संगठन के पदाधिकारी अखिलेश यादव की इस घोषणा का स्वागत कर रहे हैं। वही कुछ संशय में भी है। पेंशन राज्य का मुद्दा है। इसलिए एलान का स्वागत करने वालो को उम्मीद हैं कि यह व्यवस्था लागू होगी। वहीं कुछ इसको सिर्फ चुनावी घोषणा मानते हैं। केंद्र में 2004 में एनपीएस लागू हुआ। इसके बाद सबसे पहले उत्तर प्रदेश में यह लागू हुआ और उस समय मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। इसके बाद आन्दोलन के दरमियान 2016 में अखिलेश यादव सरकार में आंदोलनरत शिक्षको पर लाठीचार्ज हुआ था जिसमें शिक्षक की मौत हो गई थी। इसका खामियाजा अगले वर्ष होने वाले चुनावों में सपा को देखने को मिला था और सपा की हार हुई थी। कुछ जानकार मानते है कि सपा अब शिक्षको की ताकत को समझ चुकी है।
पुरानी पेंशन को लेकर सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है। शिक्षकों के एक ग्रुप पर जारी बहस में एक वर्ग अखिलेश यादव की घोषणा के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है तो कुछ विरोध में हैं। शिक्षकों का कहना है कि सांसद रहते हुए योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य भी इसकी वकालत कर चुके हैं लेकिन सरकार बनने के बाद दोनों नेता इसे भूल गए। अब अखिलेश यादव ने भी वही तीर छोड़ा है।
इन आंदोलनों के बीच सपा की ओर से पुरानी पेंशन की बहाली की घोषणा से राजनीतिक गलियारे के अलावा शिक्षकों एवं कर्मचारियों के बीच भी बहस शुरू हो गई है। इस घोषणा के बाद सपा को एक तरफ पुराने पेंशन बहाली की मांग करने वाले संगठनो के समर्थन की उम्मीद जागी है। वही विरोध भी इसका हो रहा है। सरकार बनने के बाद वायदे वफा नही होते है इसकी भी बात लोग करते दिखाई दे रहे है। अब आने वाला वक्त ही इस मुद्दे को अहमियत को बतायेगा।