फ़्रांस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा- लड़ाकू विमान खरीदने पर अभी तक नहीं हुवा फैसला
समाचार एजेंसी रॉयटर से बातचीत करते हुए फ्रांसीसी रक्षामंत्री ज्यां-वेस ली ड्रायन (Jean-Yves Le Drian) ने कहा कि सौदा टलता जा रहा है, क्योंकि सौदे पर बातचीत कर रहे दोनों ही पक्षों के लोगों के बीच बहुत-से मुद्दों पर मतैक्य नहीं बन पाया है। गौरतलब है कि लगभग नौ महीने पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी फ्रांस यात्रा के दौरान राफेल लड़ाकू विमानों को सीधे फ्रांस सरकार से खरीदने की योजना का ऐलान किया था, क्योंकि उससे पहले डासॉल्ट एविएशन (Dassault Aviation) से हुआ उससे भी बड़ा सौदा रद्द हो चुका था। जानकारी के मुताबिक इस सौदे की कुल कीमत 65,000 करोड़ रुपये (लगभग 10 अरब अमेरिकी डॉलर) के आसपास रहने की संभावना है, जिसमें फ्लाई-अवे कंडीशन में 36 लड़ाकू विमान, उनमें लगाई जाने वाली हथियार प्रणाली और सपोर्ट मेन्टेनेन्स पैकेज शामिल है। भारत ने अब तक यह फैसला नहीं किया है कि उसे इन विमानों के लिए अगले पांच से 10 सालों में जिन अतिरिक्त कल-पुर्ज़ों की ज़रूरत पड़ सकती है, उनके लिए वह अभी से भुगतान करना चाहता है या नहीं।
दोनों पक्षों में जुर्माने की उस रकम पर भी अंतिम फैसला नहीं हो पाया है, जो खराब प्रदर्शन की स्थिति में फ्रांसीसी लड़ाकू विमान निर्माता को भरना होगा। यहां खराब प्रदर्शन का अर्थ है कि उड़ान भरने ज़रूरत वाले कुल मौकों में से 90 फीसदी या उनसे ज़्यादा में राफेल उपलब्ध नहीं रहे। यह मुद्दा भारतीय वायुसेना के लिए पहले भी चिंता का विषय रहा है, क्योंकि उसके मौजूदा रूस-निर्मित सुखोई 30 एमकेआई लड़ाकू जेट की उपलब्धता दर 60 प्रतिशत से भी कम है, जिसका अर्थ यह हुआ कि हर बार ज़रूरत के वक्त भारतीय वायुसेना के पास ज़रूरत पूरी करने लायक सुखोई उपलब्ध नहीं होते।
इसके अलावा भारत ने अभी यह भी तय नहीं किया है कि उसे राफेल लड़ाकू विमानों के साथ कुल कितनी और किस-किस प्रकार की हथियार प्रणाली की ज़रूरत है, जो सौदे की कुल कीमत का काफी महत्वपूर्ण हिस्सा तय करेंगी।
फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद 25 से 27 जनवरी तक भारत में रहेंगे। वह अपने देश से चंडीगढ़ पहुंचेंगे, और उसके बाद 26 जनवरी को नई दिल्ली में भारत के 67वें गणतंत्र दिवस की परेड में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे।
इसके अतिरिक्त भारत में लागू किए गए नए नियमों के अनुसार 300 करोड़ रुपये से ज़्यादा के रक्षा सौदों को तब तक मंजूरी नहीं मिल सकती, जब तक दूसरा पक्ष सौदे की कम से कम 30 फीसदी राशि जितनी रकम का निवेश भारत में ही निर्माण क्षेत्र में नहीं करे। बताया जाता है कि फ्रांस इस शर्त का ‘भविष्य में’ पालन करने के लिए सिद्धांत रूप से सहमत हो गया है, जिसकी बदौलत दोनों पक्ष विवाद का कारण बन सकने में सक्षम इस नियम को फिलहाल ठंडे बस्ते में डालने में कामयाब हो गए हैं।
भारतीय सैन्य अधिकारी इस बात के लिए चेता चुके हैं कि यदि आधुनिक पश्चिमी लड़ाकू विमान नहीं जुटाए गए, या घरेलू रक्षा कॉन्ट्रैक्टर समय पर वह नहीं बना पाए, जिसकी भारतीय सेना3 को ज़रूरत है, तो भारतीय वायुसेना और चीन व पाकिस्तान की वायुसेनाओं की क्षमताओं के बीच बहुत बड़ी खाई पैदा हो जाएगी। पिछले साल अक्टूबर में केंद्र सरकार ने सेना के अनुरोध को खारिज कर दिया था, जब सेना ने क्षमताओं की इस खाई को पाटने के लिए 36 डासॉल्ट निर्मित लड़ाकू विमानों को खरीदे जाने का अनुरोध किया वैसे, इस सौदे पर दस्तखत हो जाने के बावजूद भारत के पास वास्तव में ये राफेल विमान कम से कम एक साल बाद ही पहुंचने शुरू होंगे, क्योंकि विमान निर्माता डासॉल्ट इस समय फ्रांसीसी एयरफोर्स और मिस्र और कतर के लिए अत्याधुनिक विमान बना रहा है, जिन्होंने हाल ही में सौदों पर दस्तखत किए हैं।
बहरहाल, भारत को जल्द से जल्द विमान दिलाने में मदद के लिए फ्रांस कथित रूप से तैयार हो गया है, हालांकि यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि क्या फ्रांस भारत की मदद के लिए अपनी वायुसेना के विमानों की डिलीवरी को टालेगा, या फिर भारत को उसके लिए बनने वाले विमान तैयार होने तक अपनी सेना के पास पहले से मौजूद लड़ाकू विमानों में से कुछ दे देगा