आखिर कब तक…………. वसीम अकरम त्यागी के कलम से
वसीम अकरम त्यागी के कलम से
कि ‘कानून शर्मिंदा है’ जिसकी गलत कार्रावाई की वजह से आप लोगों की जिंदगियां खराब हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में एक और बात कही ‘कि गृह मंत्रालय ने पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर कार्रावाई की जिसकी वजह से इन नौजवानों की जिंदगी के बेशकीमती बारह साल जेल में गुजरे। उस समय गुजरात का गृह मंत्रालय आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास हुआ करता था। चूंकि 16 मई 2014 को ही मोदी लोकसभा का चुनाव जीते थे और प्रधानमंत्री की ताजपोशी के शोर में सुप्रीम कोर्ट का फैसला नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह गया। मोदी आज देश के प्रधानमंत्री हैं अब फिर ‘गुजरात’ शुरू हो गया है। आतंकी संगठन IS के नाम पर ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां की जा रही हैं। कहानी वही है जिसकी पटकथा पहले फ्लाॅप हुई हैं उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, से तथाकथित आतंकी पढे लिखे युवाओं को गिरफ्तार किया जा रहा है और मीडिया ट्रायल किया जा रहा है। न्यायलय में दस बारह पंद्रह साल तक ये कहानियां कितनी टिक पायेंगी यह तो वक्त ही बतायेगा ? मगर इस वक्त हालात ऐसे हो गये हैं कि अगर समुदाय विशेष के घर के बर्तन पर भी ISI की मुहर लगी है वे उसे भी कूड़े में फेंकना चाह रहे होंगे ? वे अंग्रेजी is को भी हिन्दी में इज लिखना चाह रहे होंगे मालूम नहीं कब इंजीनियरिंग और मैडिकल की पढाई करने वाले छात्रों को स्पेशल सेल आकर दबोच ले। सरकारों के इशारों पर जो खेल सुरक्षा ऐजंसियां खेल रहीं हैं वह न पहले ठीक था और न अब ठीक है। ऐसी घटनाऐं एक समुदाय विशेष को दूसरे समुदायों की नजर में घृणा का पात्र बना देती हैं। बेहतर हो कि निष्पक्षता से कार्रावाई की जाये पूर्वाग्रह से ग्रस्त कार्रावाई देश के सिस्टम के प्रति नागरिकों का जो मोह है उसे भंग कर देगी।
लेखन को सही ऊर्जावान दिशा देशहित में लगाये।